अपना अपना भाग्य
अपना अपना भाग्य
उस दिन डुंगडुंग बंदर पेड़ पर उदास बैठा था क्योंकि, उसका दोस्त झब्बर कुत्ता जंगल छोड़कर जा रहा था ।
उसे पता चला था कि इतने दिनों बाद शहर से कुछ लोग आए और झब्बर को लेकर जाने वाले हैं , क्योंकि, उनको झब्बर पसंद आ गया था । उसे मालूम था कि वह उनके घर बहुत खुश रह सकता था क्योंकि, वे लोग बहुत अमीर थे और वे उसका ख्याल रखने वाले थे ,एक ओर वह उसके लिए खुश भी था कि ,वह जंगल के रोज के आने वाले खतरों से बच जाएगा । दूसरी ओर दोस्त खोने का अपार दुख ।
जाने से पहले झब्बर रोया और उसने कहा, "मित्र हो सके तो मिलने आ जाना ।"
डुंगडुंग बंदर उसकी छलछलाती आंखों को न देख सका .. झब्बर गाड़ी में बैठकर मालिक के संग नए घर चला गया ।
बहुत दिनों बाद जब डुंगडुंग को उसने दोस्त की खबर लेने की सोची । वह उस शहर में अपने दोस्त की खुशबू को पहचान कर पहुंच गया ।
वहां उसने जो नजारा देखा उसकी आंखें फटी रह गईं वह तो सबके संग ऐश कर रहा था । कोई उसको नहला रहा था ,तो ,कोई उसके नाखून काट रहा था । कोई उसे दुलार रहा था तो कोई उसे सुला रहा था ,तो कोई उसे खिला रहा था । उसे लगा मनुष्य बड़ी ही कमाल की नायाब कृति है जो ईश्वर ने बनाई है ।
परंतु रात होने पर उसने देखा :
सब लोग सो रहे थे और उसका प्यारा दोस्त झब्बर भौंक रहा था और पूरे मकान का चक्कर लगा रहा था । वह सोया नहीं था , बल्कि सबकी रखवाली कर रहा था ।
अब डुंगडुंग को सारा माजरा समझ आ गया था ,पल में ही मनुष्य के प्रति उसका विचार बदल गया,उसने सोचा "ईश्वर ने मनुष्य को सबसे चालाक और स्वार्थी बनाया है ,वह अपनी आवश्यकता के हिसाब से अपना व्यवहार करता है। अच्छा है कि वह किसी मनुष्य के हाथ नहीं आया ,उसे शहर से जंगल चले जाना चाहिए । यही उसका भाग्य है कि वह स्वतंत्र है , आजाद है ,वह किसी का मोहताज नहीं है न ही किसी के घर का रखवाला है । वह एक आजाद खुश जीव है ।"
सोचता हुआ पेड़ से कूदता हुआ उछल कूद करता हुआ जंगल में गायब हो गया । उस दिन के बाद कभी अपने मित्र से मिलने नहीं गया ।
