दो जुड़वा की कहानी
दो जुड़वा की कहानी
आकाश को छूती गंगन चुंभी इमारतें..। एक सपाट मैदान और उससे लगी हुई खिड़की मेरा और उसका घर ,मेरा और उस युवती का घर ।
उस युवती को पहली बार देखा और हृदय में अकुलाहट सी होने लगी थी ,वह सुंदर थी और मैं ठीक ठाक शहरी युवक ।
एक दिन दूर से देखकर वह मुस्कुराई और मैं उसकी इश्क की गहराईयों को नापने लगा । मैं उसके नजदीक आने की कोशिश करने लगा ,मौन सी वह बस मुस्कुरा कर रह जाती , मुझसे उसने प्रागड़ता की चाह नहीं रखी ,वह क्या चाहती थी मुझे नहीं मालूम था ।
एक दिन एक त्यौहार के अवसर पर मैं मैदान में भीड़ के संग हालेहाल था ,वह फिर मुझे देख कर मुस्काई मैं भी थोड़ी झेंप मिटाकर उसके पास चला गया ..वह बोली,"आप ?"
",जी !"मैं शांत चित से बोला, मैं ही जानता था कि इस सुंदर नयन हिरणी के संग मैं अपने को कितना बंधा पाता रहा था । उसकी सुंदर वाणी से मेरे हृदय के सारे द्वार बिंध चुके थे । मैं ठगा सा था और वह अपनी प्रतिभा में विजय शंखनाद कर रही थी ।
मुझे विजय हो , यशस्वी भव: के स्वर सुनाई पड़ रहे थे ।
तभी किसी ने अवचेतन मन के शांत जल में पत्थर फेंक दिया , आवाज आई ,"-- अरे! गौरी शंकर तुम यहां हो ? कब से तुम्हें ढूंढ रहा हूं । यह सामने देखो तुम्हारी भाभी ...।"
मैंने पलट कर देखा ,मेरा जुड़वा भाई उमा शंकर खड़ा था , हुबहू मेरी शक्ल सूरत और मेरे अंदाज का मानव ,उमा ।
जब मैंने देखा वह तो उस युवती की ओर इशारा कर रहा है ,मैं खिसिया कर रह गया .. सोचने लगा क्या मैं सही देख- सुन रहा हूं ।
तभी ,मेरी प्यारी होने वाली भाभी मेरे पास आई और बोली," गौरी शंकर , मैं तो तुम्हारी होने वाली भाभी हूं , लेकिन,जिस युवती को तुम रोज देखा करते हो वह तो मेरी ही जुड़वा बहन है । मैं उमा और वह गौरी है ।"
ये अजीब सा इत्तेफाक ही था और दो जुड़वा भाईयों के संग दो जुड़वा बहनों का विवाह निश्चित था ,विधी का अजब विधान रचा गया था ।
आज हम एक परिवार में खुशहाल हैं । दो जुड़वा भाई और बहनों की कहानी जो भी सुनता है दांतों तले उंगलियां दबा लेता है ।
