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मिली साहा

Abstract

4.9  

मिली साहा

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सब दिन होत ना एक समान

सब दिन होत ना एक समान

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जीवन में सुख-दुख का आना जाना लगा रहता है

फिर भी जीवन हमारा यूं ही निरंतर चलता रहता है


मानव कभी सुख कभी दुख का अनुभव करता है

पर जीवन का हर दिन कभी समान नहीं रहता है


परिवर्तनशील यह संसार निरंतर बदलता रहता है

आज दुखी कोई तो कल वह खुश भी हो जाता है


सुख दुख तो कुछ दिन रह कर वापस चले जाते हैं

इनके आने जाने से जीवन का अनुभव हम पाते हैं


वक्त जब बदलता है एक राजा भी रंक हो जाता है

दिन जब फिरता है झोपड़ी भी महल बन जाता है


दुख में भी अपनी मुस्कान को जो बनाए रखता हैं

अपने इरादों से वो अपनी तकदीर बदल सकता हैं


मनुष्य जीवन का यह चक्र निरंतर चलता रहता है

प्रकृति के समान यह जीवन सदा बदलता रहता है


सब कुछ पाने पर जो व्यक्ति घमंड में डूब जाता है

वह अपने दुखों के लिए खुद ही जिम्मेदार होता है


बदलता है समय कभी भी एक समान नहीं रहता है

आज जो गरीब है वो कल अमीर भी बन सकता है


समय और भाग्य दोनों सदा परिवर्तनशील होता है

अहंकार ना करना कभी कि यह हमारा ही रहता है!



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