संशय...
संशय...
संशय संशय।आशय काहीच।
तयात नाहीच।काही एक।।
कोण हे बोलले।कोणास माहीत।
जातोच गायीत।चहूकडे।।
कोणी तरी म्हणे।बोलले असेल।
असे सांगितले।ज्याचे त्याने।।
एकाने बोलले।ऐकले दुज्याने।
म्हणे तिसऱ्याने। सांगितले।।
अशीच फिरते।अफवा जोरात।
जातोच कोमात। पापभिरू।।
नसतो फायदा।काहीच तयात।
कुढतो मनात। सज्जनही।।
प्रतिकार कैसा।करेल तो आता।
कलंक हा माथा। घेवोनिया।।
हात हे टेकले।म्हणे एकदाचे।
काय करायाचे। कळेनाच।।
कानफाटे नाव।पडता जनात।
मरतो मनात।नितदिन।।
एकच दिवस।येईल की माझा।
ठरेन मी साजा।वाटोनिया।
जाईल निघोन।वेळ कलंकाची।
वेळ सुदैवाची।आल्यावर।।
तोवर म्हणतो।राम राम राम।
काम काम काम। करताना।।
सारेच अर्पण।पूर्ण समर्पण।
पाहून दर्पण।अंतराचे।।
होतो भाग्यवन्त।जावोनी संशय।
उरतो अक्षय।आनंदात।।
किर्तीवन्त तोच।तोच भाग्यवन्त।
पाही भगवन्त।अंतरात।।
म्हणे झालो देवा।स्वच्छ नी निर्मळ।
होउनी सबळ।स्वावलंबे।।
नको काही आता।दुजे काही मज।
न उरले काज।दुःखासाठी।।
संशय कल्लोळ।निव्वळ फुकाचा।
पैसा घामाचा। लाभतसे।।
म्हणे केले कष्ट।पुरते अमाप।
नाही मोजमाप। कधी केले।।
आता म्हणे बघ। डोळेच फाडून।
देतो की ताडून।निंदकास।।
जोडले सश्रम।सर्वची अगाध।
ताडता मदान्ध।स्वाभिमाने।।
आंनदी आंनद।हा परमानंद।
राहतो स्वानंद। सर्वकाळ।।