सड़क किनारे ज़िन्दगी
सड़क किनारे ज़िन्दगी
बेबसी का चादर ओढ़,
हर रोज़ लोग सो जाते हैं।
सड़क किनारे ज़िन्दगी का हाल,
आज तुम्हें सुनाते हैं।
उम्मीद का दामन फैलाकर,
बच्चे भीख माँग लाते हैं,
कुछ पैसों की ख़ातिर,
औरत को बलि चढ़ाते हैं।
भूख लगे शिद्द्त की,
पानी से भूख मिटाते हैं।
सिग्नल पे दौड़-दौड़ कर,
थोड़ा सामान बेच आते हैं,
इंसान की क़दर कहाँ,
कौड़ियों के भाव लगाते हैं।
मॉल से महँगा ख़रीदकर,
सस्ता सड़क किनारे से ले आते हैं।
सरकारी कर्मचारी आकर,
इनकी कुटिया भी उखाड़ जाते हैं।
हाँ, बिल्कुल ऐसे ही साहेब,
सड़क किनारे ज़िन्दगी बिताते हैं।
सड़क किनारे ज़िन्दगी बिताते हैं।