रेशम की पोटली
रेशम की पोटली
यादें सुहानी है या हकीकत में है कोई
भ्रमित मन उपवन
मन मकरन्द भ्रमर बन
सपनों के शायद सुनहरे पंख।
शब्द सुहाने तितलियां बन
हवा में उड़ते हैं
जब हम गुनगुनी धूप में बैठकर
पन्नों को पलटते हैं।
निर्जन वन सा मेरा मन
अल्फाज़ मचलते हैं
उँगली की गिरफ्त में
कलम बेताब है।
शब्द उड़ जायेंगे एक दिन
पन्नों से फिर भी
कलम लिखने को
अधीर हुई जाती है।
कोमल मन
अबीर हुआ जाता है
ज़मीर पे कुछ तहरीरें
लिखी जाती है।
यादें अविस्मरणीय
संग्रह की जाती है
अनमोल धरोहर सी
संजोकर रखी जाती है।
इन यादों की पोटली में
शब्द भरे हैं
इसलिए
डर से खोलती हूँ।
कहीं हवा के हल्के स्पर्श से
शब्द उड़ न जाए
मन को अपने
हर रोज टटोलती हूँ।
गोद में रखी शब्दों की पोटली को
नजरों से तोलती हूँ
माना कुछ स्नेहिल
कुछ कठोर शब्द इसमें भरे हैं।
कुछ कच्चे कुछ मजबूत
रिश्ते इसमें धरे हैं
बाँधी है स्नेह डोर फिर भी
रेशम की पोटली से।।