भूल
भूल
अपनी भूल को करो, आप स्वीकार
भूल को कभी दुबारा मत करो प्यार
भूल, को भूल जाओ, चलाओ तलवार
भूल का ज्यादा भी न करो, तुम श्रृंगार
भूल दुबारा न हो, ऐसे कर्म करो, यार
परिश्रम से ही चलता है, सारा संसार
कर्महीन तो इस धरा पर है, एक भार
जो कर्म न करते है, करते सिर्फ विचार
लक्ष्य हेतु चलते, रहो, रे मनु लगातार
अंधेरा लुटायेगा, फिर रोशनियां हजार
ये भूल भी लगने लगेगी, तुम्हे उपकार
जिस दिन बनाओगे, इसे तुम हथियार
जिन्हें लगती है, अपनी भूल एक भार
वे पश्चाताप अग्नि से करते, इसे तार-तार
आओ भूतपूर्व भूलों में करे, हम सुधार
अपने परिश्रम से भूलो की कर दे, हार
हम लोग कर्म करे, कुछ ऐसे लगातार
मंजिल भी दौड़ आये, पास में एकबार।