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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Inspirational

फ़लक झुका दोगे,पलकों की तरह

फ़लक झुका दोगे,पलकों की तरह

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खिलोगे, अवश्य ही एकदिन तुम फूल की तरह

लड़ते जाओ, इस ज़माने से बस शूल की तरह

सीधी उंगली से, थोड़ा घी तक नही निकलता है

फिर जग से कैसे लड़ोगे, श्रवण कुमार की तरह


सत्य के लिए कड़वे बनो, तुम नीम वृक्ष की तरह

झूठ का इलाज होगा, अंधेरे में रोशनी की तरह

जो सँघर्ष की आग में जलते है, स्वर्ण की तरह

वो चमकते है, दुनिया मे कोहिनूर हीरे की तरह


जो दुःख समझते, सुख की पूर्व सीढ़ी की तरह

वो फिर पतझड़ में खिलते, एक सावन की तरह

जो पत्थर पर निशां करते, एक रस्सी की तरह

वो मंजिल पर पहुंचते, चहलकदमी की तरह


जो कठिन लक्ष्य पर गिरते है, झरने की तरह

वो फिर प्यास बुझाते है, मधुर अमृत की तरह

आओ करे निरन्तर प्रयास, हम रवि की तरह

जो रोज उगते, अस्त होते, दिन-रात की तरह


एकदिन भी न करते आराम, आलसी की तरह

रोज रोशनी देते, जीवंत कर्म देवता की तरह

सूर्यदेव की ये आदत सीख, कर्मवीर की तरह

सच कहता हूं, फ़लक, झुका दोगे, पलकों की तरह।


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