आज फिर तुम्हारी याद आई है
आज फिर तुम्हारी याद आई है
एक कसक सीने में आज फिर उभर आई है
तेरी यादों ने आज फिर से तबाही मचाई है
एक ज्वाला सी आज फिर से धधक आई है
भीड़ में हो कर भी न जाने क्यों तन्हाई है
आँखों में नमी सी आज फिर घिर आई है
जुदाई की किरचनें आज फिर से चुभ आई है
बीते कल की परछाई आज में उतर आई है
तेरी मोहब्बत ने आज फिर कलम थमाई है
गुजरा वो वक्त ही इस कविता की गहराई है
आज फिर से तुम्हारी याद आई है।