कड़वा सच
कड़वा सच
शादी की झूठी पत्तल पर,
थोड़ा भोजन बाकी था,
मानस का छोटा बच्चा,
देख उसे ललचाया था,
कुत्ते का एक छोटा सा पिल्ला,
पत्तल चाट कर आया था,
ऐ प्रभु ऐसा भाग्य क्यों बनाया,
भूख से बिलबिलाती,
अंतड़ियों के बीच
शर्म का पर्दा क्यों लगाया,
एक अनाथ दीन दुखियारा,
था बचपन तक़दीर का मारा,
देख ऐसे हालात,
उसके मन में ख़्याल आया,
कि काश मैं भी पिल्ला होता,
तो भूखे पेट ना रोया होता,
भूखे पेट ना सोया होता,
दुनिया में गरीबी का
बस यही हाल है,
रहने को मकान नहीं,
खाने को आहार नहीं,
अंधेर नगरी है यहाँ,
कहीं सब कुछ है पर
भूख नहीं और कहीं,
भूख के सिवा कुछ भी नहीं,
भूख के सिवा कुछ भी नहीं I