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Sudershan kumar sharma

Tragedy

4  

Sudershan kumar sharma

Tragedy

गजल (अंगारे)

गजल (अंगारे)

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चुभन दिल में, हँसी लबों पे दिखती है, दौर यारों का आजकल ऐसा है। 

चाहत में अंगारे बसे हैं, कोमल हैं फूलों जैसे, दोस्ती का दौर मानो निराला है। 


यार बीमार को, पूछने पास ज्यों बैठे मानो सारा गम हमारा है, 


बात कोई और छेड़ दी, निगाह कहीं और फेर दी, दाल में कुछ काला है। 


बचपन से ही हालात कुछ ऐसे मिले, दिखाता दोस्त अजब सहारा है। 


मुस्कराहट दिखाकर लबों पे, जिगर पर वार ऐसा किया, मानो जख्म बहुत गहरा है। 


दुआ मुहब्बत की जब भी माँगी, हिला कर सर कह दिया, यह दिल सदा तुम्हारा है। 


अजमा कर जब भी देखा मुसीबत में कभी, चाहत दिखी ठंडक जैसी, मिलन लगा मानो अंगारा है। 


समझ आया नहीं तौर तरीका दुनिया का, रख बगल में छूरी, बाहर से भोला भाला है। 


अजब, गजब की हो गई दोस्ती आजकल, पैसा ही बन गया दोस्त सभी का, पैसा ही रिश्तों का भंडारा है। 


मत कर यकीन अब हर किसी पे सुदर्शन, न जाने कौन अपना कौन पराया है। 



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