पवित्र आत्मा
पवित्र आत्मा
पवित्र आत्मा प्रभु की प्रिय होती है।
हम सब प्रिय बालक है प्रभु के।
पांच तत्व का बना शरीर यह
जल, वायु, धरती, अग्नि और आकाश है।
हम भी प्रकृति का एक रूप है।
आत्मा में परमात्मा का वास है।
माया की आंधी चल रही यहां पर,
कलुषित होते हुए विचार हैं।
सुख सुविधा में ऐसे खोए,
ईर्ष्या द्वेष में उलझ गए
मानव होकर मानव की ही हम
सुनते कहां पुकार है।
पल पल आत्मा रोकती रहती।
बुरा कभी ना करने देती।
अनसुनी करके अंतरात्मा की आवाज को ,
ना सुनते परमात्मा की पुकार है।
परमात्मा के हम प्रिय बालक
परमात्मा की भी नहीं सुनते हैं।
फलस्वरूप जब दुख आते हैं,
तो परमात्मा से भी नाराज होते है।
आत्मा रूप में प्रभु मन में बसे हैं।
उनकी हर आवाज सुनो।
भवसागर से पार हो जाओगे
आत्मा को कलुषित कभी भी ना करो।
पवित्र आत्मा लेकर आए थे।
मन में प्रेम बसाए हुए ्।
प्रेम के पथ पर चलना
अपनी आत्मा की पवित्रता को कभी नष्ट ना करना।
पवित्र आत्मा प्रभु की प्रिय होती है
अपनी आत्मा को कभी कलुषित ना करना।
