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Dr Lalit Upadhyaya

Tragedy

4.2  

Dr Lalit Upadhyaya

Tragedy

कोरोना के डर में होली

कोरोना के डर में होली

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दुनिया की जुबान जगह जगह से यह बोली,

देश में कोरोना के डर में है होली।

गाल गुलाल लगाने हुरियारे कैसे आएंगे,

होली के समारोह यदि स्थगित हो जाएंगे,


गली मौहल्ले में कैसे घूमेगी टोली,

देश में कोरोना के डर में है होली।

दिल्ली में चली थी जब वो गोली,

दंगों के शिकार हुए जो,

कैसे मनेगी उनकी होली,


कहाँ खो गए खून के रंगों में हमजोली,

इस बार कैसी दहशत भरी यह होली।

ओले पड़े, फसल की हुई बर्बादी,

किसानों की कैसी फजीयत कर डाली,

देश में कोरोना के डर में है होली।


निर्भया के दोषियों की फांसी हर बार टली,

माँ की अरदास किसी ने नहीं सुनी,

लंबी जिरह में वकीलों की चली,

कानूनी दांव पेंच में फांसी उनकी फँसी,


कब लगेगी न्याय वाली बोली,

देश में कोरोना के डर में है होली।

सर्दी जुकाम में नाक बह चली,

हाथों से आंख भी सबने मली,


इटली से आया पड़ोसी हमारी गली,

मेडिकल जांचें नोटों की चढ़ा रही बलि,

देश में कोरोना के डर में है होली।


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