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Vishal Kumar

Tragedy

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Vishal Kumar

Tragedy

टूटने दो !

टूटने दो !

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मुझे टूटने दो, बिखरने दो

यूं ही इसी तरह

टूटना-बिखरना भी एक ज़रूरी क्रिया है

जीवन की, सर्जन की

जैसे डाल से टूटी पत्ती पीली

बिखरती है गलकर मिट्टी में

मिट्टी को और उर्वर बनाती हुई।


जैसे आकाश से टूटकर गिरता तारा

धरती पर बिखरते हुए दे जाता है

आंखों को यक़ीन कि पूरे होंगे सपने

जैसे टूटकर-बिखरकर काले धूसर पत्थर

बदलते हैं चिकने-चमकीले रेत-कणों में।


मैं भी टूटकर-बिखरकर गलूंगा-ढलूंगा

एक नई शक़्ल में

लौटूंगा एक नई आंच लेकर

लौटूंगा नई आब लेकर

अभी मुझे टूटने दो बिखरने दो।

यूं ही इसी तरह ...


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