Saad Khan

Tragedy

3  

Saad Khan

Tragedy

मासूम

मासूम

1 min
13.5K


वह तो महज़ आठ साल की मासूम सी जान थी !


क्या लाल है और क्या हरा उससे अनजान थी

वो न हिन्दु थी ना मुसलमान थी

दरिंदों के नफ़रत के तीर की कमान थी

वह तो महज़ आठ साल की मासूम सी जान थी !


ना भगवान, ना खुदा उसकी चीखें सुन पाया

इंसान क्या, शैतानों को भी रोना आया

पर फिर भीं उन् दरिंदों का दिल न घबराया !


जब मिली वह तो शरीर बेजान थी

दर्द के छीटों से लहू लुहान थी

अम्मी - अब्बा के चेहरे की मुस्कान थी

वो तो महज़ आठ साल की मासूम सी जान थी !


Rate this content
Log in

More hindi poem from Saad Khan

Similar hindi poem from Tragedy