मासूम
मासूम
वह तो महज़ आठ साल की मासूम सी जान थी !
क्या लाल है और क्या हरा उससे अनजान थी
वो न हिन्दु थी ना मुसलमान थी
दरिंदों के नफ़रत के तीर की कमान थी
वह तो महज़ आठ साल की मासूम सी जान थी !
ना भगवान, ना खुदा उसकी चीखें सुन पाया
इंसान क्या, शैतानों को भी रोना आया
पर फिर भीं उन् दरिंदों का दिल न घबराया !
जब मिली वह तो शरीर बेजान थी
दर्द के छीटों से लहू लुहान थी
अम्मी - अब्बा के चेहरे की मुस्कान थी
वो तो महज़ आठ साल की मासूम सी जान थी !