भूल करता रहा !
भूल करता रहा !
अपने ही धुन में कुछ यूँ मदमस्त चलता रहा,
औकात झोपड़ी भी न थी, ख़्वाब महलों के बुनता रहा।
मेरी परछाई भी छोड़ गई मुझे, शाम ढलने के बाद,
कोई गैर न जुदा हो जाये, मैं इस बात से डरता रहा।
उसे मोहब्बत न थी कभी, ये जानता था दिल,
हक़ीक़त सामने थी, पर मैं झूठ से लड़ता रहा।
सालों से ग़ालिब, एक यही भूल मैं करता रहा,
कमजोर नींव थी और मरम्मत छत की करता रहा।