Avinash Kumar Barnwal

Tragedy

3  

Avinash Kumar Barnwal

Tragedy

भूल करता रहा !

भूल करता रहा !

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अपने ही धुन में कुछ यूँ मदमस्त चलता रहा,

औकात झोपड़ी भी न थी, ख़्वाब महलों के बुनता रहा।


मेरी परछाई भी छोड़ गई मुझे, शाम ढलने के बाद,

कोई गैर न जुदा हो जाये, मैं इस बात से डरता रहा।


उसे मोहब्बत न थी कभी, ये जानता था दिल,

हक़ीक़त सामने थी, पर मैं झूठ से लड़ता रहा।


सालों से ग़ालिब, एक यही भूल मैं करता रहा,

कमजोर नींव थी और मरम्मत छत की करता रहा।


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