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Kumar Kavi Ashok Singare

Others Tragedy

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Kumar Kavi Ashok Singare

Others Tragedy

केरल की करूण पुकार

केरल की करूण पुकार

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केरल की मृदुभूमि पर,

प्रलय तांडव मचा रहा,

डूब रही हर गलियाँ नुक्कड़,

शेष ना कोई बचा रहा।


पलायन करते लोग सभी,

त्राही त्राही अलाप रहे,

जो मजबूत है बढ़ रहे हैं,

शेष के पैर कांप रहे।


धरती के स्वर्ग को जाने,

क्यों प्रलय की हुंकार लगी,

जलमग्न हो रहे घर मकान सब,

ऐसी विशैली फुंकार लगी।


चलो बढ़ालो कदम मदद के,

हाथ साथी बढ़ा रहे,

अपने ही भाई बहन तुम्हे,

सहायता की गुहार लगा रहे।


थोड़ा थोड़ा जोड़,

साथियों ,हो जाओ तैयार,

अपने के जो काम ना आये,

तो जीवन है बेकार।


जिससे जैसा बन पड़े,

उनके हक़ पर दे देना,

मालिक ने तुम्हे अवसर दिया है,

उसको ना तुम खो देना।


केरल के जनमानस का गर,

विलीप यदि तुम सुन पाये,

समझो माँ भारती के ऋण तुम,

सदा के लिये चुका पाये।


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