सुनना होगा
सुनना होगा
सुनो, सुनती ही तो आई हूँ
कब से ? सदियों से
किससे ? एक पुरुष से
क्यों ? यही नियति बना दी गई है मेरी
तो अब ? बस अब नहीं
अब मै कहूँगी तुम सुनोगे
क्या ? वही जो सदियों से कहना चाहती थी
कब तक ? दिल का गुबार निकल जाने तक।
लो सुनो, हाँ सुनना ही होगा
सुनना होगा उस रुदन को जो
अंतस् मे गहरे से कहीं बैठ गया
सुनना होगा उस अवसाद को जो
अंतस मे गहरे से कहीं पैठ गया
सुनना होगा उस दर्द को जो
अंतस् में गहरे से छेद कर गया।
क्या सुन पाओगे ?
नहीं तुम नहीं सुन पाओगे
क्योंकि तुमने तो अपनी अंतरात्मा को
ही ढक रखा है बेगैरती के लबादे से
सदियों से।