पाखंड
पाखंड
है वेदाविरूद्ध आचरण पाखंड
हैं चार स्तम्भ इसके:-
असत्य, ठोंग, आडम्बर और कपट,
टिका है जिस पर धूर्ततापूर्ण
व्यापार पाखंड का।
है यह युक्ति करने की,
बिन परिश्रम अर्जित धन।
यूँ तो होते हैं दर्शन हर क्षेत्र में पाखंडियों के,
परन्तु राजनीति और धर्म क्षेत्र में है
सर्वाधिक बोलबाला पाखंड का।
हैं आपराधिक आलेख विरूद्ध जिनके,
लगा मुखौटा राजनीतिज्ञ का,
बन जाते हैं राजनेता पहन वस्त्र श्वेत,
देते उपदेश सत्यता और ईमानदारी का,
करके एकत्रित पैसा अनुचित साधनों से।
है उन्नति पर व्यवसाय पाखंड का,
धर्म के नाम पर खेलते खेल पाखंडी,
जकड़ न लेते केवल अशिक्षित वर्ग को,
वरन् ले लेते चपेट में सरलता से,
शिक्षित समाज को भी।
हैं जड़े लम्बी अंधविश्वास की,
ले सहारा पाखंडी इसका,
भर स्वाँग लगा टीका,
पहन रूद्राक्ष की माला नक़ली,
चल देते करने कर्मकाण्ड।
है न ज्ञान मंत्रों का, न हवन का,
न ही किसी रिति रिवाज का,
रट लेते मंत्र थोड़े, न ज्ञान अर्थ का,
न ही आता उच्चारण सही,
बस हैं पारंगत ढ़ोंग विद्या में।
है अति आवश्यक करने की छटनी,
राजनीति से उनकी, हैं जो सूची में
अपराधियों की ।
बने वही राजनेता हों जो शिक्षित
और न हो सूची में अपराधियों की ।
है मुश्किल अत्यंत परन्तु है अति आवश्यक,
भलाई के लिये समाज और देश की,
काटना जडे़ अंधविश्वास के वृक्ष की
जिसकी छाँह तले बैठ पाखंडी,
चलाते दुकान पाखंड की।।
सच कहा है कबीर जी ने,
“ माथे तिलक हाथ जपमाला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया।
मारग छाड़ि कुमारग उहकै, सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥”
