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Rashmi Prabha

Drama

4.8  

Rashmi Prabha

Drama

मोक्ष

मोक्ष

1 min
431


वो तुम्हारे अपने नहीं थे

जिन्हें साथ लेकर

तुमने सपने सजाये

सूरज मिलते

सब अपनी रौशनी के आगे

एक रेखा खींच ही देते हैं !


शिकायत का क्या मूल्य

या इन उदासियों का ?

'आह' कौन सुनता है ?

वक्त ही नहीं !


गर्व करो-

तुम आज अकेले हो !

साथ है वह सत्य

जिसे कटु मान

तुमने कभी देखा ही नहीं !


भीड़, कोलाहल

आंखों औ कानों का धोखा है

सत्य है 'कुरुक्षेत्र'

जिससे मुक्ति के लिए

मिली प्रकृति.......


धरती, आकाश, पेड़, पौधे

ऊँचे पहाड़, हवाएँ, बूंदें...

इनसे बातें करो

हर समाधान है इसमें !


मृत्यु के बाद-

धरती की बाहें 

अग्नि की पवित्र लपटें

पेड़ की शाखाएं

अपने अंक में समेट लेती हैं

रिश्तों से आगे

यही विराम है !


उसके आगे दर्द का सत्य

कटु नहीं कुरूप है

तभी तो

हम उसे जानते नहीं

जानना भी नहीं चाहते.....


उस कुरूपता से

जोड़ा है प्रभु ने मोक्ष द्वार !

पाना है उसे

तो संवारो किसी को...

अपनी निश्छल भावनाएं दो

अंतर्द्वंद से बाहर निकलो

जीते जी अपने संचित पुण्यों में

किसी को शामिल करो !


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