जी लो यार!
जी लो यार!
सुनो आली/मित्र
तुम जो सांस ले रही /रहे हो
तो जी भी तो लो एक बार
ये क्या की हर बार
गहरी सांस में
तमाम दुख भर लेती/लेते हो
अपने गहरे
तहखाने बनाये
दिल में ।
दिखाती/दिखाते नहीं
तुम कुछ भी
लेकिन सुनती हूँ सूनापन
आवाज में तुम्हारी,
पढ़ती हूँ लिखी बातों में
खराश तुम्हारे खूबसूरत
घिसटते मासूम पलों की
अक्सर महसूस होती है
हमेशा दम घोटती
उदासी तुम्हारी।
मगर यार,
फायदा क्या है इन्हें
दिल के अंधे कोने में छिपाने का,
मन जो नहीं बांटती /बांटते हो
कभी खुद से भी
वे तो कभी कहीं पूरा
खंगाला भी नहीं
जाने वाला।
मान लो प्रिय
जला बैठेगा यह तुमको
खुद काठ पर जलने से पहले,
खोल दो दरवाजा उस
अंधेरे गहरे कमरे का
मचाने दो लापरवाह धूप की
धौंस हर तरफ वहां ।
गूंजने दो
भैरवी सुबह सुबह
भले टकरा कर बिखरे
दीवारों से गूंज उनकी,
खोल दो रोशनदान अवसरों के
आने दो कोशिश की हवा को अंदर
बेखौफ घूमने दो उन्हें
अपने बांध कर रखे
बेबस अरमानों के
बीचों बीच।
कुछ न होगा तो
कुछ पल को सीलन ही
मिटेगी यार जिंदगी की
जो भीगा जाती है
अक्सर ही
तुम्हारी निर्दोष आंखें
अकेले में
जो सच मानो हैं सिर्फ
चमकने के लिए
खुशी के अनगिनत
क्षणों में।