यादें...
यादें...
ज़माना कितना बुज़दिल,ख़ुदगर्ज़ है,
फिर भी न जाने कितना
हमने पाला भरम है।
हमने समझा लोगों को
पर हमें समझने में लोग हुए बेरहम हैं।
करते हैं उसूल की,सहानुभूति की बातें,
पर चोट सबसे ज्यादा उसी ने दीं,
जिसने कहा हमारा तुम पर
एहसान-ए-रहम है!
बड़ा हो या कि छोटा,
फ़ायदे सभी ने लिए।
बुरा वक्त आया तो
कहा ये तुम्हारा करम है।
समझे,हम भी उनकी बदनीयती
देर ही से सही ।
ये ऊपरवाले का हम पर की
रहमो-करम है।