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संदीप सिंधवाल

Abstract

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संदीप सिंधवाल

Abstract

एक उड़ती तितली

एक उड़ती तितली

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एक तितली

मेरे बगिया में रहती।

उड़ उड़कर 

इशारे से कुछ कहती।


बस शांत सी

कोई ना शोर

रूप सौंदर्य अपार

मन मोहिनी सी

देख उस खुशी होती।


दुख दर्द सब गुल

कौतूहल वात्सल्य जगता।

कभी डरती भी

अनजान चेहरे बहुत हैं।


पर इंसान तो इंसान है

लालायित उसे पकड़ने का

शायद यही गलती की।

बनाने वाले ने

कि बिटिया को ऐसा बनाया।


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