उम्र हो गयी पचपन की रूह रह गयी बचपन की
उम्र हो गयी पचपन की रूह रह गयी बचपन की
उम्र हो गयी पचपन की
रूह रह गयी बचपन की
ढूंढती है मेरी आँखें
वो सुनहरे सुकून वाली जिंदगी की
डूब जाता हूँ हर बच्चे की चुपड़ी बातों में
पहुंच जाता हूँ खेल के मैदान में
हँसीं ठिठोली, चोर सिपाही ,
लुका छुपी, बॉल गेंद ,
बस उछल उठता मेरा मन
नकल करता, धौंस जमाता
चिढ़ाकर अप्रैल फूल बनाता
बर्फ के गोले की गाड़ी के पीछे भागना
आज भी मन को खूब ललचाती
इमली के सूखे बीज इकट्ठे करना
विद्यालय के दरबान को बहलाना
पल भर झूलने देने की विनती करना
टेढ़े सुनसान रास्ते पर भटक जाना
न कोई डर, बस चंचल शरारती मन
चल पड़ता, दौड़ पड़ता
एक रुपये किराया में
साइकिल चलाना,
अट्ठनी के गोलगप्पे खाना ,
चकित रह जाते आज के बच्चे
हम उनसे काम नहीं थे
बचपन का जोश थामे रखा है
मेरे जीने की वजह हो तुम
आंसुओं को पी सकता हूँ
हर गम को जला सकता हूँ
बचपन की हड्डियां आज भी
लाठी बिन बोझ को झेल पाती है
जब वो खुद के बचपन से खेलती है
पटाखे छोड़ना, गुब्बारे गुलाल लगाना
साथ बैठकर मनोरंजन देखना
जोड़ जोड़ से एसटीडी में बातें करना
आज भी दिल को छू जाती है
बस यादें ताज़ा हो जाती है
जिंदगी खुशनुमा लगती है
अकेलेपन से ठिठुरती जिंदगी
बचपन की रजाई से ढक जाती है
अनमोल अबोध सपनों में
भ्रमण कर लेता हूँ फिर से
दुनियादारी के झमेलों से कुछ दूर
बचपन की हवाएं खा लेता हूँ
दिल धड़कता जोर से
प्यार की ताली बजाकर चीखता हूँ
उम्र हो गयी पचपन की
रूह रह गयी बचपन की ।