अलबेला आम
अलबेला आम
कवि : श्री राजशेखर सी :एच : वी
चैत्र वैशाख में होता है अलबेले आम का सुनहला स्वरूप साकार,
पूरे सालभर रहता है जिसका बेसब्री बेताबी से इंतज़ार,
सुहाने सावन में आई है बेइंतिहा बरखा बहार,
काश मेघालय करें आम की बेधड़क बेझिझक बौछार |१|
अलबेले आम जैसा कोई नहीं है रूपहला फल,
इसके ज़ायके का लुत्फ़ दिलाए सुनहरे पल,
आम की चाहत रहेगी कल आज और कल,
फलों का सरताज बनके हुआ है आम बेहद सफ़ल |२|
मज़ेदार लज़्ज़तदार है आम क खट्टा मीठा रसीला स्वाद,
सैकड़ों-सैकड़ों साल रहे यह अनूठा फल आबाद,
कोई भी फल नहीं पा सकता आम का कद न औकाद,
जिसकी कमज़ोरी से नहीं हो सकता कोई भी आज़ाद |३|