तपिस ज़िंदगी की
तपिस ज़िंदगी की
कहाँ कुछ ज्यादा मांग रही हूँ
एहसासो का उद्वेग तो
महसूस नहीं कर पाये तुम कभी
ना ही दिन रात बह रहे।
चक्षुजल के अशआरों को
कभी पोंछ पाए
एक हक जता लूं
चुटकी सिंदूर के बदले
बस आखरी आँच।
तुम्हारे ही हाथों मिले
वहाँ तक इस जन्म के
बंधन को निभा लो
दिल जली तो हूँ बस
काया को तपिस दे देना।
तो मुक्ति मिल जाये
ये लो तुमने तो जीते जी ही
मेरा रोम-रोम जला दिया
हाँ हाथ तो तुम्हारे भी जले।
दिख रही है एक शीत लकीर
तुम्हारे चेहरे पर चमकती
अगर जीवन इस दोज़ख़
का नाम है तो
अगला जन्म कहाँ चाहिये
इस बदनसीब को।