राजा-फकीर
राजा-फकीर
एक बार राजा ने फ़कीर से कहा,
तुम्हें पता हैं सम्मान कितने बड़े ?
मालूम हैं,
उत्तर देकर फ़कीर आगे चले।
खिल्ली उड़ाते राजा ने कहा,
तुम्हें कैसे पता सम्मान किसे कहते ?
दौलत का मतलब धनवान जाने,
फ़कीर जाने दुःख,
राजा होकर कितना आनंद,
फ़कीर बहुत दूर !
मुस्कुराते फ़कीर ने कहा,
सम्मान न ही होता बड़ा,
न ही देता सुख,
जी भरकर लालच लाती,
दिल में भरती भूख,
आसमान के ऊपर नजर टिकाये,
फ़कीर धीरे से बोले,
उनके सम्मान कितने बड़े,
तारे बन जाते छोटे,
तुम तो केवल सोचते हो तुम्हें,
तभी खोया उन्हें ।
तुम और तुम्हारा सम्मान,
दो दिन के लम्हे,
उनके सम्मान सोच से बाहर,
आसमान से भी ऊँचे ।
जब तुम्हें दिखाई देगी,
भूल जाओगे तुम्हें,
सब कुछ छोड़कर मन कहेगा,
बनूँगा फ़कीर जैसे,
'सम्राट अशोक' ।।