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Debashis Bhattacharya

Romance

4  

Debashis Bhattacharya

Romance

तुम सदा विराजमान दिल में

तुम सदा विराजमान दिल में

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मेरा दिल चाहता है

तुम्हे प्यार करूँ

यद्यपि तुम पता रहित

फिर भी तुम्हारी प्यार में

डूब जाता हूँ मैं आनंद-सागर में


शाश्वत तुम मृत्यु से परे

जनम कभी न लेता

जन्म-मृत्यु तुम्हारी अधीन

तुम निश्चिंत रहते हो सर्वदा 


मुझे समझ में नहीं आता

यह तुम्हारा कैसा लीला

कभी हँसाते हो कभी रुलाते

सुख और दुख के रेगिस्तान में

प्रेम का दीपक लेकर खड़े हो सखा


इस संसार में क्या

और संसार के बाहर क्या है

मुझे नहीं पता

कभी गतिशील कभी गतिहीन

मेरा प्राण का तृषा


यह प्राण समर्पित कर दूँ तुम्हे

इतना ही मेरा आशा

मुझे नहीं पता

तुम्हारे पास मुझे ले चलोगे या नहीं

बीत जाता हैं मेरा दिन

सोचता रहता हूँ तुम्हे सदा


व्याकुल ह्रदय से करता हूँ प्रार्थना

मुझे अवहेलना मत करना

मेरी जिंदगी तुम्हारी तूलिका से चित्र बना

जिसे प्यार की डोर से बांध रखना 


मंदिर के अंदर की मूर्ति में

या किताब के पन्नों में लिखे गए शब्दों में

नेत्रगोलक पहचान न पाते

तुम सदा विराजमान दिल में।


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