तुम्हारे ख़्वाब
तुम्हारे ख़्वाब
सारी रात तुम्हारी यादों में
जाल डाल कर बैठे रहे ,
जागते रहे ये सोच कर
तुम आज फिर आओगी
जब सुबह सुबह इक ख़्वाब ने
जाल में अपने हाथ थपथपाये
नींद और हौसला सब टूट गये
ख़्वाब अधूरा ही रह गया
और तुम फिर से छूट गयी मेरे
कमजोर हाथों सें
तुम्हारा जाना उम्र भर नहीं भूलेगा