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Vivek Mishra

Romance

5.0  

Vivek Mishra

Romance

पास तो बैठो

पास तो बैठो

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रुको, रुको ज़रा

पास तो बैठो।

काफी वक्त गुजरा मगर

ऐसे तो साथ नहीं बैठे कभी।


मैंने कमाई में गवा दिए वो साल

जो साथ तुम्हारे गुजरने थे

सब कुछ कमाने में

तुम्हे धीरे धीरे खोया मैंने।


आज भी तुम्हारे पलट कर देखने पर

वही पहली बार का एहसास आता है

साथ रहता हूं सालों से

मगर अब तुम्हे देखता हूं छुप छुप के।


तुमने भी उम्र गुजार दी घर को घर बनाने में

टटोलती आंखों से बिन पूछे, सब जान लेने में

अपने प

्यार को नया जीवन देने में, उसे सहेजने में

धीरे धीरे चेहरे पर उम्र के निशाँ लेने में।


अब दो पल तो रुको

रुको, रुको जरा,

दो पल पास तो बैठो।


इस बार जब हम साथ होंगे

तो चलेंगे वहाँ जहाँ सिर्फ

तुम और मैं होंगे।


कोई गहराता अँधेरा नहीं,

कोई हल्का उजाला नहीं

कोई झूठ, अपनापन नहीं,

कोई किसी का सहारा नहीं


वहाँ चलेंगे, बैठ कर बातें करेंगे,

सारी पुरानी अपनी बातें

रुको रुको पास तो बैठो।


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