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Vivek Mishra

Abstract

3.5  

Vivek Mishra

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बेमानी छोटी बातें

बेमानी छोटी बातें

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बात इतनी सी ही थी कि अब साथ नहीं रहना

इतनी ज़रा सी बात पर ऐसे भी क्या नाराज़गी।


जरा संभल कर खीचों इन कच्चे धागों को

टूट पड़े तो ज़िन्दगी उलझ जायेगी।

बड़े नाज़ुक है जरा हौले से तोड़ो ये रिश्ते,

बँटवारा ऐसा भी न हो कि दिल ही बटँ जाए।


शिकायतें होंगी तुम्हें, मैं भी तो ज़ब्त रखे हूं

फिर ऐसा भी क्या बस तुम ही अफ़साने कहते हो।

कभी सुनो मेरी भी तो मालूम हो ,

ये शिकायतें एक तरफ़ा कभी न थीं। 


खैर छोड़ो, ये बातें अब बेमानी है


किसी दिन पाँव में एक बेड़ी सी बन रोक ले 

कोई धागा अगर पुरानी कड़ी सी कोई जोड़ लें 

तो उसे दिल से लगा लेना, सुकून देगा तुम्हें,


याद घर और मिट्टी की आएगी, 

याद देहलीज़ और माँ की आएगी

याद आएगी तेरे मेरे बचपन की

याद अपनी और मेरी जवानी आएगी।


याद आएगा की कैसे एक मकां गुलज़ार किया था।

याद आएगा की बड़ी छोटी सी बात ही तो थीं।


बात इतनी सी ही तो थी कि अब हमें साथ नहीं रहना



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