नारी हूं मैं
नारी हूं मैं
माली की तरह मधुवन (घर) को सिंचती हूं
बहा कर खून, पसीना एक संसार बनाती हूं
चलती थकती तो भी मैं हार नहीं मानती हूं
नारी हूं मैं, अपना घर स्वयं बनाती हूं।
परिवार को सुरक्षित रखने की कोशिश करती हूं
मां पिता के स्वाभिमान, संस्कार को ठेस ना पहुंचे
पूरी निष्ठा से अपना हर धर्म निभाती हूं
नारी हूं मैं, हर रिश्तों को ईमानदारी से निभाती हूं।
पिता की सर की पगड़ी हूं तो, मां के हृदय की धड़कन हूं,
भाई का अभिमान हूं मैं, पति का स्वाभिमान हूं
कहलाती हूं दो घर की रानी, कभी न करूं अपनी मनमानी
नारी हूं मैं, बखूबी जानती होती कैसे घर की निगरानी।
सबके मन का विश्वास बनूं मैं, अपने घर की लाज रखूं
खुद को तोल के तराजू पर, पति के गृहलक्ष्मी का मान रखूं
इसलिए तो ढलते नहीं हम, जतक काया में प्राण रहे
नारी हूं मैं, सदैव कोशिश करती मैं कभी न किसी की हाय बनूं।
हर क्षेत्र में आगे बढ़ कर नारी को एक रूप दिया
कर्म भूमि पर चलकर हमने हर लिंग को समरूप किया
हर रणभूमि पर चलकर एक नया इतिहास रचा
नारी हूं मैं, सदैव ही अपनी पहचान को नाम दिया।।