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Jyoti Deshmukh

Tragedy

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Jyoti Deshmukh

Tragedy

एक शहीद की पत्नी की व्यथा

एक शहीद की पत्नी की व्यथा

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अगली छुट्टियों में आओगे ये कह कर गए 

तुम मुझसे मिलने आओगे ये वादा कर गए 

राह तक रही थी ये आखें तुम्हारे इंतजार में 

खबर जो तुम्हारी शहादत की आई तो आँखों को नम कर गए 

शहीद होकर वतन की खातिर तुम आसमाँ के सितारे बन गए 


आए तुम तिरंगे में लिपट कर सब दुःखी हो गए 

माँ बेसुध, बच्चा अनाथ, और घर बेसहारा छोड़ गए 

कितने ख्वाब जो देखे थे अनगिनत सब हमने वो ख्वाब सारे टूट गए 


मंगलसूत्र, टीका, माथे की बिंदिया सब सूना कर गए,

साथ न हो तुम ये सच्चाई जान जिंदगी मेरी वीरान कर गए 

मैंने हंसना, मुस्कराना, सजना, सँवारना सब छोड़ दिया 

जिसमें था सिंदूर मांग का उस डिबिया को तोड़ दिया 


तुम्हारे खत पढ़ कर रोती हू दिन रात 

वो देख तस्वीर तुम्हारी, वो बीते लम्हें याद कर,

जो जिंदगी मेरी कल तक थी उपवन वो जीवन मेरा आज बंजर कर गए 

तुम्हारे माँ पिता का अवलंबन बन सभी की सेवा कर मैं,

जिम्मेदारी परिवार की मुझ पर छोड़ गए 

अब मुझे हिम्मत से काम लेना है जीवन में आगे बढ़ना है 


एक पेड़ की छाया बन परिवार का ध्यान रखना है 

आपके बेटे को काबिल बनाना है 

माँ-पिता दोनों का फर्ज निभाना है 

घाव तो बुहत दिए जिंदगी ने मुझे अब सबका मरहम मुझे बन जाना है 

शहीद की पत्नी हू अपना धर्म निभाएगी 

मैं अपने बेटे को भी सिपाही की वर्दी पहना जाऊँगी 

मैं अकेले जीवन की लड़ाई लड़ पाउ,अपने अंश को मजबूत बनाऊँगी 


गर्व है मुझे आप पर आप देश हित मीट गए ,वतन के नाम अपनी जिंदगी कर गए 

श्रद्धासुमन करती हू अर्पित आपको, अपना जीवन आप देश के नाम कर गए 

सच्चा प्यार अपना वतन से कर गए 

देश को सदा के लिए कर महफूज, अपना नाम रोशन कर गए,

याद रखेगा ये बलिदान आपका भारत एसा नेक काम कर गए।


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