भ्रम!
भ्रम!
शाश्वत प्रेम रुक्मणी,
राधा केवल कृष्ण मनी..!
कृष्ण केवल वृन्दावनी,
गोपिका आहे हृदयी..!
सत्यभामा केवल सह्चरिणी,
जामवन्ती आहे कृष्ण मनी..!
भ्रम आहे हा आपल्या मनी,
जग सर्व आहे त्याचा मनी..!
शाश्वत प्रेम रुक्मणी,
राधा केवल कृष्ण मनी..!
कृष्ण केवल वृन्दावनी,
गोपिका आहे हृदयी..!
सत्यभामा केवल सह्चरिणी,
जामवन्ती आहे कृष्ण मनी..!
भ्रम आहे हा आपल्या मनी,
जग सर्व आहे त्याचा मनी..!