Kishan Negi

Romance Tragedy Thriller

4.5  

Kishan Negi

Romance Tragedy Thriller

यशोदा

यशोदा

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उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में एक छोटा क़स्बा है, गनाई। बहुत ही सुन्दर, रमणीय व् प्राकृतिक सौंदर्य से ओत प्रोत। गनाई एक घाटी है जिसके चारों तरफ़ देवदार व् चीड़ के घने जंगल हैं, बुरांश इसकी सुंदरता पर चार चाँद लगा देता है। यहाँ से दो मील पर एक छोटा-सा गाँव हैं, कुरमान। किशन आज 15 वर्षों के बाद आज अपने गाँव चचेरी बहन पदमा की शादी में शामिल होने आ रहा है। किशन दिल्ली में सरकारी बैंक में अधिकारी है। पांचवी तक की शिक्षा यहीं के प्राथमिक विद्यालय से ग्रहण की थी। 

 किशन के चाचा के घर में आज बहुत चहल-पहल थी, आँगन में आम की छाँव तले महिला संगीत चल रहा था। जब महिला संगीत का कार्यक्रम चल रहा था, एकाएक किशन की नज़र कोने में बैठी एक लड़की पर टिक गई जो एक पहाड़ी गीत गा रही थी। उसके बाल खुले हुए थे, गुलाबी रंग की सलवार कमीज पहनी हुई थी। जाने क्यों किशन उसकी ओर आकर्षित हुआ जा रहा था। 

पदमा से उसे पता चला कि वह साथ वाले गाँव की यशोदा है जिसने चौखुटिया से एम.ए. की है और अभी कुँवारी है। महिला संगीत ख़त्म होते ही पदमा, यशोदा को किशन के पास अकेला छोड़ कर दूसरे कामों में लग गई। 

दोनों बाहर आँगन की दीवार पर आकर बैठ गए। किशन ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "मैं किशन हूँ, पदमा मेरे चाचा की लड़की है। दिल्ली में सरकारी बैंक में एक अधिकारी हूँ।" उसने आगे कहा, "याद करो, मैं और तुम इसी गाँव के प्राथमिक पाठशाला में एक ही कक्षा में थे।" फिर बचपन की कुछ और बातें याद दिलाई तो यशोदा को भी धीरे-धीरे बचपन के वह सुनहरे लम्हे याद आने लगे। 

"पदमा, तुझे तेरी ईजा (माँ) खेत में याद कर रही है, जल्दी बुलाया है।" एक लड़का यशोदा के पास आकर बोला। ये वही अमर था जिससे यशोदा प्रेम करती थी। यशोदा ने अमर और किशन का एक दूसरे से परिचय कराया और फिर दोनों वहाँ से खेतों में चले गए। 

पहाड़ों की सिंदूरी सांझ ढल रही थी, सामने की पहाड़ी से सूरज भी अलविदा कह रहा था। पंछी भी अपने-अपने घरों को लौट रहे थे। कुछ ही देर में पहाड़ी धुन (बेड़ू पाको) पर थिरकती हुई बारात भी आँगन में पहुँच चुकी थो। सभी लोग बारातियों के स्वागत में व्यस्त थे। लेकिन इधर किशन का ध्यान सिर्फ़ यशोदा पर ही टिका हुआ था। 

विवाह के पहाड़ी रस्म शुरू हो चुके थे। किशन और यशोदा बाहर आँगन में आ गए जहाँ कोई नहीं था। यहाँ बैठकर दोनों ने अपनी-अपनी ज़िन्दगी की सारी बातें साझा की, बचपन से अब तक। लेकिन जाने क्यों यशोदा को अभी भी यक़ीन नहीं हो रहा था कि क्या ये वही किशन था जो कक्षा में हर रोज़ उसकी लम्बी चोटी खींच कर अकारण उसे परेशान करता था। 

 यशोदा ने उसे बताया, "" अभी उसकी शादी नहीं हुई, लेकिन इसी गाँव का लड़का अमर और वह एक दूसरे से प्यार करते है। घरवालों को ऐसे वर की तलाश है जो दिल्ली में सरकारी नौकरी में हो। अमर चौखुटिया में सरकारी स्कूल में अध्यापक है। " ये बातें सुनकर किशन की सांसें थम गई, परन्तु कुछ बोला नहीं। बातें करते-करते सुबह हो गई। 

बारात के विदा होने के बाद, सभी रिश्तेदार भी जाने लगे। इधर किशन के चेहरे पर ख़ामोशी व उदासी की रेखाएँ साफ़ झलक रही थी। इतने में यशोदा उसके पास आकर बोली, "अब मैं जा रही हूँ, पता नहीं फिर कब मुलाक़ात होगी। होगी भी या नहीं।" किशन की आँखों से अनायास ही आंसू झरने लगे। उसके दिल में एक अजीब-सी हलचल थी। 

 किशन को इस स्थिति में देख, यशोदा भी अपने आंसुओं पर काबू न रख सकी। किशन ने बताया कि वह एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आया था लेकिन अब लगता है उसे आज ही यहाँ से रवाना होना पड़ेगा। यशोदा ने किशन का हाथ थाम कर कहा, "हम कल प्रातः शिवालय में मिलते हैं। भगवान् शिव के दर्शन भी हो जायेंगे और हमारी बातें भी।" 

दूसरे दिन प्रातः दोनों शिवालय में मिले, भगवान् शिव के दर्शन के बाद, दोनों मंदिर के बाहर एक विशाल चट्टानी पत्थर पर बैठ गए। किशन यशोदा का बचपन की पाठशाला का साथी था, इसलिए उसकी मन की स्थिति व् उसके अंदर की हलचल को समझ रही थी। किशन ने यशोदा का हाथ पकड़कर कहा, " मैं तुम्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहता हूँ, अगर तुम सहमत हो। 

इस बार किशन ने अपनी बात को बहुत ही भावुक मगर गंभीर मुद्रा में आगे बढ़ाते हुआ कहा, "पदमा, तुमसे मिलने के बाद अहसास होने लगा है जैसे मेरी तलाश आज पूरी हो गई। दिल्ली में हमारा अपना मकान है, पिछ्ले महीने ही मैंने कार भी खरीदी है। मैं और मेरे घरवाले तुम्हारा हर तरह से ख़्याल रखेंगे।" 

किशन की बातें सुनकर, यशोदा का दिल भर आया था। आँखों से टपकते आंसुओं को पोंछते हुए यशोदा ने जवाब दिया, "मुझे पूरा विश्वास है कि मैं तुम्हारे साथ खुश रहूंगी, लेकिन मैं क्या करूँ, अमर क्या सोचेगा कि मैंने उसको धोखा दिया है, नहीं, मैं हरगिज़ ऐसा नहीं कर सकती।" यशोदा को एकाएक जाने क्या हुआ कि किशन के कन्धों पर सर रखकर फूट-फूट कर रोने लगी। उधर मंदिर से घंटी की ध्वनि कानों में गूंजने लगी, शायद कोई भक्त दर्शन को आया था। अब किशन को पूरा यक़ीन हो चला था कि अमर और यशोदा एक दूसरे को बहुत चाहते है और उसको कोई हक़ नहीं है कि दो प्रेमियों के बीच में दीवार बन कर खड़ा हो। 

आज किशन दिल्ली वापस जा रहा था। बस स्टैंड पर उसे यशोदा छोड़ने आयी थी। किशन का हाथ पकड़कर भरे स्वर में कहा, "किशन मुझे ग़लत मत समझना। तुम बहुत ही समझदार हो। तुम एक बैंक अधिकारी हो और मैं गाँव की एक भोली भाली लड़की। तुमको एक ऐसी लड़की की ज़रूरत है जो मुझसे अधिक समझदार व् आधुनिक हो।" इतने में बस चल पड़ी, यशोदा तब तक बस को एकटक देखती रही जब तक नज़रो से ओझल नहीं हो गई, आँखों से झरता सावन अपनी चरम पर था। 


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