Kishan Negi

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5.0  

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काफल वाली लड़की

काफल वाली लड़की

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दाज्यू (बड़ा भाई), ताजे काफल ले लो, अभी-अभी तोड़कर लाई हूँ जंगल से।“ जमन की ओर देखते ही गाँव की एक भोली भाली खूबसूरत लड़की ने कहा, जिसकी उम्र लगभग सोलह वर्ष होगी। हाथ में बांस से बनी और बुरांश के चटकीले लाल फूलों से सजी कुछ टोकरियाँ लिए मन्दिर की सीढ़ियों में बैठ कर उत्तराखण्ड के जंगलों में पाया जाने वाला फल काफल बेच रही थी। 


काफल का वृक्ष मध्य हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला सदाबहार वृक्ष है। काफल तीन महीने तक स्थानीय बेरोजगारों के लिए स्वरोजगार का भी साधन बनता है। इसके पेड़ ठंडी जलवायु में पाए जाते हैं। इसका लुभावना गुठली युक्त फल गुच्छों में लगता है और स्वाद में खट्टा मीठा होता है। 


मई का महीना था, उत्तर भारत में भीषण गर्मी का प्रकोप था, धरती पर सूर्य देवता अग्नि की बारिश कर रहे थे लेकिन उत्तराखंड की ऊंची बर्फीली चोटियों से निकलकर ठंडी हवाएँ मन को ठंडक प्रदान कर रही थी। ऐसा ही कुछ नज़ारा था उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित दुनागिरी मंदिर का। दूनागिरी मंदिर गनाई घाटी से पन्द्रह किलोमीटर दूर पहाड़ी पर स्थित है। 


सुबह-सुबह हिमालय से उगता सूरज और शाम को सूरज छिपने पर हिमालय पर पड़ने वाली पीली किरणों से मन को यहाँ अपार सुकून मिलता है। यहाँ पर चीड़ और देवदार के घने पेड़ों के बीच बसा दूनागिरी का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती और हरियाली प्रकृति प्रेम में डूबे दिलों को आनंदित करती है। यहाँ की नम हवा में बसी और दरख्तों से लिपटी सौंधी-सी ख़ुशबू पर्यटकों के तन-मन को तरोताजा करती है। 


उत्तराखंड के सुरम्य पर्वतीय अंचल, खूबसूरत झरने, उछलते-कूदते नदी-नाले, ग्लेशियर और यहाँ के लोग सदा-सदा से मानव मन को सम्मोहित करते रहे हैं। अलसाई वृक्ष लताओं को जगाने वाली मंद-मंद बहती मादक पौन, दिनकर की सर्वदा सुखाय रश्मियों के स्पर्श और स्पष्ट दिखते उजले हिमशिखर का दर्शन करते हुए व्यक्ति अपनी सुध-बुध ही खो देता है। 


दूसरी तरफ़ ऊंचे-ऊंचे चीड़ और बांझ से लदी पर्वत श्रृंखला, दूर शांत स्निग्ध सूर्य की किरणों से चमकती बर्फ से ढकी मेखला और चटकीले लाल रंग के बुरांश के फूलों से लदे दरख़्त दूनागिरी मंदिर के इस पवित्रतम स्थल की रमणीयता में चार चांद लगा रहे थे। 


अपने मामा की लड़की राजुल की शादी में शामिल होने के लिए आजकल शेरू अपने मामा के गांव, दूनागिरी मंदिर के नीचे वाली पहाड़ी पर स्थित, आया हुआ था। गर्मी की छुट्टियाँ होने के कारण आजकल मंदिर आने वाले भक्तों की संख्या अधिक थी। शेरू ने भी आज अपने मामा के लड़के जमन और जमन की बड़ी बहन राजुल के साथ दूनागिरी मंदिर भ्रमण का कार्यक्रम बनाया। 


मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए शेरू की नज़र जब काफल बेचने वाली लड़की पर पड़ी तो फिर हटी ही नहीं। उसे जाने ऐसा क्यों लगा कि पहाड़ों में आज़ पहली बार इतनी खूबसूरत बाला के दर्शन हुए थे मानो पहाड़ों की रानी हिमालय की बर्फीली चोटियों से उड़कर आई थी और मुस्कराते हुए अपने यौवन का इज़हार कर रही थी। 


शेरू के मामा की लड़की राजुल ने उसे पुकारा, "शेरु वहाँ क्या कर रहा है, चल जल्दी कर। माँ दूनागिरी के दर्शन के बाद घर भी तो वापस जाना है।" लेकिन शेरू के कानों तक मानो राजुल की आवाज़ नहीं पहुँची। वह अभी भी एकटक काफल बेचने वाली लड़की पर अपनी आंखें टिकाए हुए था। दूसरी तरफ़ वह लड़की भी मुस्कराते हुए अपलक शेरू को ही देख रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे दोनों एक दूजे को सदियों से जानते हों। 


राजुल की आवाज़ का जब शेरू पर कोई असर नहीं हुआ तो दौड़कर राजुल उसके पास गई और उसे झिंझोड़ कर पूछा, "शेरू इतनी देर से तुझे पुकार रही हूँ लेकिन तू है कि सुनता ही नहीं।" इधर शेरू अभी भी अपनी ही कल्पनाओं की दुनियाँ में कहीं खोया हुआ था। राजुल ने देखा कि शेरू और काफल बेचने वाली लड़की एक दूसरे को टकटकी बाँधे हुए देख रहे थे। 


राजुल ने इस बार शेरु का हाथ पकड़कर झटके से अपनी ओर खींचा तो शेरु को लगा जैसे किसी ने उसे गहरी नींद से जगा दिया हो। आंखें मलते हुए सोचने लगा कि जो कुछ भी उसकी आंखों ने अभी-अभी देखा था वह मात्र एक स्वप्न था या कोई हकीकत। मानव का स्वभाव है कि वह कभी-कभी वास्तविकता का सामना करने से इंकार कर देता है, ऐसा ही कुछ हाल इस पल शेरु का भी था। काफल बेचने वाली लड़की अभी भी टुकुर-टुकुर शेरु को ही निहार रही थी। 


स्वप्लोक की दुनियाँ से बाहर निकल कर शेरु सकपका कर बोला, "अरे राजुल दीदी, तूने कुछ कहा क्या। जमन दादा नज़र नहीं आ रहा, कहाँ है?" 


मुस्कराते हुए राजुल, "शेरु ये सब क्या चल रहा है। इतनी देर से तुझे पुकार रही हूँ मगर तेरा ध्यान तो कहीं और भटक रहा है।" 


सकुचाते हुए शेरु, "दीदी कुछ नहीं बस ताजे-ताजे काफल देखकर मूंह में पानी आ गया।" 


राजुल, "काफल देखकर या फिर काफल वाली को देखकर।" राजुल समझ चुकी थी कि इस काफल वाली को देखकर इसके मन में कुछ-कुछ होने लगा है। 


राजुल के प्रश्न का शेरु के पास जब कोई जवाब नहीं था तो धीमे स्वर में काफल वाली लड़की से पूछा, "काफल की एक टोकरी कितने की है?" 


अपना दुपट्टा संभालते हुए उस सुंदर बाला ने कहा, "दो सौ पच्चीस रूपये लेकिन आपके लिए सिर्फ़ दो सौ रूपये।" शेरू ने झट से जेब से पांच सौ का नोट निकाला और उस लड़की को थमाते हुए काफल की दो टोकरी उठा ली। फिर राजुल का हाथ खींचकर मंदिर की तरफ़ निकल पड़ा। लड़की ने आवाज़ देकर कहा कि बाबू बाक़ी के सौ रूपये तो लेते जाओ लेकिन तब तक राजुल और शेरु मंदिर के द्वार तक पहुँच चुके थे। 


मां दूनागिरी के दर्शन करने के बाद शेरु जब राजुल और जमन के साथ मंदिर की सीढ़ियों से नीचे उतर रहा था तो काफल वाली लड़की अभी भी सीढ़ियों में बैठ कर शेरु का ही इंतज़ार कर रही थी। शेरु पर नज़र पड़ते ही शेरु को सौ रूपये का नोट थमाते हुए बोली, "काफल लेने के बाद तुरन्त यहाँ से चले गए और मैं आवाज़ देती रह गई। ये आपके बचे हुए सौ रूपये।" 


शेरु, "अरे कोई बात नहीं। ये सौ रूपये आप ही रख लो।" 


थोड़ा गम्भीर होते हुए उस लड़की ने कहा, "नहीं मैं नहीं रख सकती। गरीब ज़रूर हूँ किन्तु लाचार नहीं। ये सौ रूपये तो आपको लेने ही पड़ेंगे।" 


घर लौटने की जल्दी थी तो जमन झल्लाकर बोला, "अरे शेरु, ये लड़की जब तेरे रूपये वापस कर रही है तो लेता क्यों नहीं।" उसके बाद सभी गाँव लौट आए। काफल वाली लड़की मन ही मन में सोच रही थी कि इस लड़के का नाम तो पता चल गया लेकिन अब कहाँ उससे भेंट होगी। 


पहाड़ों की सिंदूरी सांझ बर्फीली चोटियों को छूते हुए धीरे-धीरे ढल रही थी, सूरज भी सांझ को अलविदा कहते हुए डूब रहा था, पंछी भी झुंड बनाकर लौट रहे थे। राजुल को अकेला पाकर शेरु ने कहा, "दीदी, तुझसे कोई ज़रूरी बात करनी है। चल सामने आम के पेड़ के नीचे बैठते हैं।" दोनों आम के पेड़ के नीचे आकर बैठ गए। 


राजुल, "शेरु जल्दी बता क्या ज़रूरी बात करनी है। वैसे भी मन्दिर से लौटने के बाद तेरा चेहरा उतरा हुआ क्यों है?" 


शेरू, "दीदी, लेकिन ये बात किसीको बताना नहीं। मंदिर में आज़ काफल वाली जो लड़की मिली थी क्या तू उसको जानती है?" 


राजुल, "भुला (छोटा भाई) तो ये बात है। तभी तो कहूँ मेरा भाई आज़ इतना खोया खोया-सा क्यों हैं। लगता है उसने मेरे भाई को प्रेम की हथकड़ी पहनाकर गिरफ्तार कर लिया है।" 


शेरु, "दीदी, बात को इतना घुमा फिरा कर मत कर। बस इतना बता क्या तू उसे जानती है?" 


राजुल, "हाँ जानती तो हूँ लेकिन तुझे इससे क्या मतलब। कहीं ऐसा तो नहीं कि पहली ही नज़र में क्लीन बोल्ड हो गया है मेरा भाई।" 


शेरु, "दीदी, जल्दी बता तू क्या जानती है उसके बारे में। कौन से गाँव की है? किसकी लड़की है?" शेरु की बेचैनी और भी बढ़ती जा रही थी। 


शेरु के कान खींचते हुए राजुल ने कहा, "तो सुन भुला (छोटा भाई)! इस लड़की का नाम भगवती है। द्वाराहाट में हम दोनों एक ही इंटर कॉलेज में पढ़ते थे। ये मेरे से तीन क्लास पीछे थी। पढ़ने में बहुत होशियार थी लेकिन घर की गरीबी के कारण मैट्रिक के बाद पढ़ाई छोड़ दी। इसके पिता का नाम बालम सिंह राणा है। भगवती से छोटे दो भाई बहन और हैं।" 


शेरु, "दीदी, जितना मुझे उसके बारे में जानना था तूने बता दिया।" 


राजुल, "और हाँ भुला एक बात और। भगवती बहुत ही समझदार और सुशील स्वभाव की है। देखना जिस घर में भी जायेगी उस घर को स्वर्ग बना देगी। गरीब ज़रूर है लेकिन है बहुत ईमानदार और स्वाभिमानी। खेती के कामों में भी बहुत ही निपुण है और उसकी खूबसूरती के दर्शन तो तूने आज़ कर ही लिए।" 


उस रात शेरु की बेचैन आंखों से नींद गायब थी। सारी रात करवट बदलता रहा। आंखें बंद करके जब भी सोने का प्रयास करता काफल वाली लड़की का मुस्कराता हुआ चेहरा आंखों के सामने तैरने लगता। उसके बारे में सोचते-सोचते उसको झपकियाँ आने लगी। क्या देखता है कि काफल वाली लड़की खुली खिड़की से झांककर हाथ से इशारा करके उसको बुला रही थी। 


जैसे ही शेरु ने उसका हाथ पकड़ना चाहा तो उसकी आँख खुल गई। दौड़कर खिड़की के पास जाकर देखा तो वहाँ कोई भी नहीं था। खिड़की से बाहर झांका तो एहसास हुआ कि आसमान में खिला चांद उसके साथ आँख मिचोनी खेल रहा था। उसे अब इंतज़ार था तो बस सुबह के होने का। सुबह होते ही उसके दिल की धड़कनों की रफ़्तार और भी बढ़ने लगी। 


शेरु के मामा के घर में शादी का माहौल था तो सभी अपने-अपने कामों में लगे हुए थे। दिन के बारह बज चुके थे। पंडित खीमा नंद जोशी घर के पुरुषों के साथ दिन के भोजन की तैयारी में मशगूल थे। शेरु की नज़रें बार-बार राजुल को ढूँढ़ रही थी लेकिन राजुल अपनी सहेलियों के साथ शादी का कुछ ज़रूरी सामान लेने बाज़ार गई हुई थी। जब शेरू का धैर्य जवाब देने लगा तो वह रास्ते में ही राजुल के आने का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा। 


जैसे ही उसकी नज़र राजुल पर पड़ी तो दौड़कर उसके पास जा कर बोला, "दीदी, मैं तेरा ही इंतज़ार कर रहा था। सोचा शुभ काम करने से पहले राजुल दीदी का आशीर्वाद लेना ज़रूरी है।" 


राजुल, "कैसा आशीर्वाद, कैसा शुभ काम। भुला (छोटा भाई) मैं कुछ समझी नहीं। तू कहना क्या चाहता है?" 


शेरु, "दीदी, भगवती से अकेले में मिलने का मन कर रहा है। बस एक बार तेरा आशीर्वाद मिल जाय।" 


राजुल थोड़ा गुस्से में, "शेरु तेरा दिमाग़ खराब हो गया है क्या? तुझे पता भी है तू क्या कह रहा है? माना कि भगवती एक अच्छी लड़की है लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि तू आंखें बन्द करके कुछ भी कर बैठे। भुला (छोटा भाई) तू जो कर रहा है मैं उसमें तेरा साथ नहीं दे सकती।" 


शेरू, "दीदी, भगवती से मिलने ही तो जा रहा हूँ, उसे दुल्हन बनाने नहीं। अगर दुल्हन बनाने का विचार कभी मन में आ भी गया तो मेरी दीदी हैं न मेरे साथ।" 


राजुल को जब महसूस हुआ कि शेरू इतनी आसानी से मानने वाला नहीं तो उसे समझाते हुए कहा, "ठीक है भुला लेकिन इस बात का ज़रूर ध्यान रखना कि तेरे कारण कल भगवती को कोई परेशानी न हो। ये गाँव है शहर नहीं। यहाँ दीवारों के भी कान होते हैं।" राजुल से आज्ञा मिलते ही शेरु सरपट दूनागिरी मंदिर की तरफ़ भगवती से मिलने दौड़ पड़ा। 


कुछ ही देर में मन्दिर की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए शेरू की आंखें भगवती को खोजने लगी किंतु भगवती कहीं भी नज़र नहीं आ रही थी। थक हार कर वह एक सीढ़ी पर बैठ कर कुछ सोचने लगा। उसने देखा कि जहाँ बैठकर कल भगवती काफल बेच रही थी ठीक उसी जगह गाँव की कुछ लड़कियाँ काफलों से भरी टोकरियाँ सजाए बैठी थी। शेरु दौड़कर उनके पास गया और भगवती के बारे में पूछने लगा। 


"दाज्यू (बड़ा भाई), भगवती को आज लड़के वाले देखने आ रहे हैं इसलिए वह अब यहाँ काफल लेकर नहीं आयेगी।" उनमें से कमला नाम की एक चंचल लड़की ने हंसते हुए कहा। 


बहुत ही रुआंसे स्वर में शेरु ने कमला से कहा, "भुली (छोटी बहन), सच बता तू मज़ाक कर रही है न। देख तुझे तेरे इस भाई की कसम।" 


तभी उनमें से एक लड़की, जिसका नाम हिमुली था, ने जिज्ञासा भरी आंखों से शेरु को देखते हुए पूछा, "दाज्यू (बड़ा भाई), तुम तो बाखली गाँव के हो न, पार्वती दीदी के लड़के शेरु।"


शेरु मुस्कराते हुए, "ठीक पहचाना तूने, मैं बाखली गाँव का ही हूँ। क्या तू जानती है मुझे?" 


हिमुली, "दाज्यू, तुम्हारे गाँव में मेरा मुकोट (ननिहाल) है! बिशन सिंह अधिकारी मेरे मामा हैं कुछ याद आया क्या?" 


शेरु, "तो तू बिशन काका की भांजी है। तब तो तू रिश्ते में मेरी बहन हुई। समझो मेरा काम हो गया।" 


हिमुली, "दाज्यू कौन-सा काम? मैं कुछ समझी नहीं।" 


शेरु ने हिमुली का हाथ पकड़ा और एक कोने में ले गया। एक ही सांस में भगवती को लेकर मन में चल रही हलचल से हिमुली को अवगत कराया। शेरू की बातें सुनकर हिमुली अपनी हंसी नहीं रोक पाई और मंदिर के द्वार के पास खड़े पीपल के पेड़ की ओर इशारा करते हुए कहा, "दाज्यू, भगवती वहाँ तुम्हारा इंतज़ार कर रही है।" 


पीपल के पेड़ की तरफ़ शेरु ने अभी क़दम बढ़ाए ही थे कि हिमुली ने कहा, "लेकिन भगवती से मिलने से पहले तुमको उसके काफल बेचने होंगे।" मरता क्या न करता, शेरू तुरन्त राज़ी हो गया। हाथों में काफलों से भरी दो टोकरी लेकर आवाज़ लगाने लगा, "काफल ले लो, काफल ले लो। एकदम ताज़ा काफल।" 


तभी एक लड़का शेरु को देखते ही बोला, "अरे शेरु, तू काफल कबसे बेचने लग गया यार। तू तो फ़ौज में भर्ती होने वाला था और तू यहाँ काफल बेच रहा है।" 


ये लड़का कोई और नहीं बल्कि शेरु के गाँव का ही उसका दोस्त चंदन था जो अपने साथियों के साथ माँ दूनागिरी के दर्शन करने आया हुआ था। चंदन को देखते ही शेरु की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। समझ ही नहीं आ रहा था कि इस धूर्त से कैसे निपटा जाय। तभी चंदन को देखकर बोला, "कौन शेरु, मैं किसी शेरु हेरू को नहीं जानता। चल फूट यहाँ से।" 


लेकिन चंदन कहाँ मानने वाला था, तपाक से बोला, "क्या कहा तूने कि तू मुझे पहचानता नहीं। मैं चंदन तेरा लंगोटिया यार। यार मज़ाक छोड़ और बता तूने ये नया धंधा कब से शुरु किया है।" 


शेरु, "कौन चंदन, कैसा दोस्त। मैं किसी चंदन को नहीं जानता। पता नहीं कहाँ-कहाँ से भिखमँगे आ जाते हैं। चल पतली गली से निकल और मुझे मेरा काम करने दे।" 


चंदन मुस्कराते हुए, "अच्छा एक टोकरी काफल कितने के हैं? 


शेरु, "तुझे सुनाई नहीं देता मैंने क्या कहा। चल खिसक यहाँ से। जेब में नहीं एक कौड़ी और चला काफल खरीदने।" अपने दूसरे साथियों के साथ चंदन बेचारा वहाँ से मन मसोस कर चला गया। इतने में मन्दिर घूमने आया हुआ एक नव विवाहित जोड़े ने शेरु से दो टोकरी काफल खरीद लिए। शेरु तुरंत दौड़ा-दौड़ा उस पीपल के पेड़ के पास गया जहाँ भगवती अभी भी उसका इंतज़ार कर रही थी। 


शेरु को देखते ही भगवती दौड़ कर मंदिर के पीछे वाली पहाड़ी की तरफ़ निकल पड़ी। शेरू भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। इस पहाड़ी से बुरांश के लाल फूलों का जंगल अपनी छटा बिखेर रहा था। दोनों वहाँ एक बहुत बड़ी पहाड़ी चट्टान पर बैठ गए। 


एक लंबी खामोशी को तोड़ते हुए भगवती ने शरमाते हुए कहा, "मुझे पता था कि तुम मुझसे मिलने आज़ ज़रूर आओगे।" 


शेरु, "लेकिन तुमने कैसे जाना कि मैं आज़ फिर आऊंगा।" 


भगवती, "बाबू कुसूर तुम्हारा नहीं। ये कमबख्त उम्र ही ऐसी होती है कि मन अपने काबू में नहीं होता। इसीलिए दौड़े-दौड़े चले आए। क्यों ठीक कहा न मैंने।" 


शेरु, "भगवती, तुम ठीक ही कहती हो। इस उम्र में दिल और दिमाग़ अपने नियंत्रण में नहीं होते। जब से तुमको देखा है दिल में इक तूफ़ान-सा मचलने लगा है। तुम्हारे ख्यालों में रात भर चैन से सो भी नहीं पाया। शायद यहीं बेचैनी मुझे तुम्हारे पास आज़ फिर खींच लाई।" 


शेरु की आंखों में झांकते हुए भगवती ने कहा, "बाबू, तुमको क्या लगता है कि मैं रात चैन से सोई थी। रात भर बस तुम्हारे बारे में ही सोचती रही। जब भी सोने की कोशिश करती तुम्हारा चेहरा आंखों के सामने खड़ा हो कर मुझे निहारता रहता। जाने क्यों मुझे पूरा विश्वास था कि तुम आज मुझसे मिलने ज़रूर आओगे।" 


शेरु, "भगवती, तुमको देखने के बाद एहसास होने लगा है कि जिस मंज़िल की तलाश थी आज़ मिल गई है। पिछले जन्म में ज़रूर हमारा कोई रिश्ता होगा इसीलिए माँ दूनागिरी ने अपनी ममता भरी शीतल छांव तले हमें फिर से मिलाया है। हमारी मुलाक़ात किसी चमत्कार से कम नहीं।" 


भगवती, "सच कहते हो बाबू, माँ दूनागिरी के आशीर्वाद से ही हम मिले हैं। अच्छा ये बताओ तुम मेरे बारे में क्या जानते हो।" 


शेरु, "जितने की ज़रूरत थी उतना जान गया हूँ। तुमको याद है कल मेरे साथ एक लड़की भी थी, वह मेरे मामा की लड़की राजुल है। उसने ही मुझे तुम्हारे और तुम्हारे परिवार के बारे में बताया।" 


भगवती, "अच्छा ये बताओ तुमने इस काफल बेचने वाली लड़की में ऐसा क्या देखा कि बेचैन हो कर मुझसे मिलने चले आए। ऐसा कौन-सा आकर्षण है मेरे अंदर कि रात भर ठीक से सो भी नहीं पाए।" 


शेरु, "सच कहूँ तो मुझे भी नहीं मालूम वह कौन-सा जादू है कि मैं तुम्हारी ओर खींचा चला आया। भगवती एक महिला का आकर्षण उसकी सुंदरता में है, उसके श्रंगार में है, उसकी लज्जा में है, उसकी सादगी में है।“


हवा में लहराते अपने बालों को थामे हुए भगवती, "कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे शारीरिक आकर्षण का ये जादू है?" 


शेरू, "नहीं ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। शारीरिक आकर्षण कामुकता को जन्म देता है जबकि प्रेम इस कामुकता के भाव का दमन कर देता है। शारीरिक आकर्षण क्षणिक सुख की अनुभूति है जबकि सच्चा प्यार जन्म जन्मांतर का होता है। अपनी भाषा में कहूँ तो सच्चा प्रेम वह होता है जिसमें हम एक दूसरे को समझते हैं और बिना कहे एक दूसरे के दिल की भाषा को पढ़ सकते हैं।" 


सामने से गुजर रहे बादल के टुकड़े को देखते हुए भगवती ने एक सवाल और दागा, "मेरे चाहने वाले को फिर ये भी ज़रूर पता होगा कि एक सुन्दर नारी में क्या-क्या खूबियाँ होनी चाहिए?" 


बर्फीली चोटियों की ओर देखते हुए शेरू, "भगवती, मेरे विचार में एक सुंदर नारी में प्रेम, ममत्व, दया, करुणा आदि गुण अवश्य होने चाहिए। इसके साथ ही बड़ों का सम्मान, आदरभाव, रिश्तों की सही अहमियत और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजगता भी होना आवश्यक है। यदि कोई महिला इन खूबियों से परिपूर्ण है, तो अवश्य ही उसे सुंदर महिला कहा जा सकता है चाहे उसका रंग रूप कैसा भी हो, मायने नहीं रखता। इन सभी गुणों से परिपूर्ण वह नारी इस पल मेरे सामने बैठी मुस्करा रही है।" 


भगवती, "एक नारी के बारे में इतना ज्ञान कहाँ से सीखे हो बाबू और क्या गुण होने चाहिए एक नारी में?" 


शेरू, "जिस नारी के स्वभाव में दया और विनम्रता का भाव होता है वह समाज में सदैव सम्मान प्राप्त करती है, दूसरी तरफ़ जिस स्त्री का अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं होता वह अपना तो नुक़सान करती ही है साथ पूरे परिवार को भी इस आग में झोंक देती है। इसीलिए धर्म ग्रंथों में भी कहा गया है कि स्त्री को दया और विनम्रता जैसे गुणों को धारण करना चाहिए।" 


शेरू के मुख से नारी दर्शन के अमृत प्रवचन सुनकर भगवती मानो किसी और ही दुनियाँ में खो गई थी। मन में मचल रही जिज्ञासा की तृष्णा को बुझाने के लिए एक और यक्ष प्रश्न किया, "अच्छा ये बताओ एक आदर्श नारी की सही पहचान क्या है तुम्हारी नज़रों में?" 


शेरू, "भगवती, मेरे विचार में एक आदर्श नारी वह है जो मीठे वचन बोलती है, मृदु भाषी है, जिसकी आवाज़ में कोयल जैसी मिठास हो और जो हर किसी से स्नेहिल वाणी में व्यवहार करती हो। आस्तिक, सेवा भाव रखने वाली, क्षमाशील, दानशील, बुद्धिमान, दयावान और कर्तव्यों का पालन पूर्ण निष्ठा से करने वाली लक्ष्मी का रूप होती है और जो स्त्री तन से अधिक मन से सुंदर हो।" 


"आचार्य चाणक्य ने भी नारी के तीन गुणों का वर्णन किया है। पहला दया और विनम्रता, दूसरा धर्म का पालन और तीसरा संचय करने की प्रवृत्ति। तुम्हारी आंखों में झांक कर मैंने महसूस किया है कि ये सारे गुण तुम्हारे अंतर्मन में विचरण कर रहे हैं।" शेरू ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा। 


शेरू के मुख से अपनी अप्रत्याशित तारीफ सुनकर भगवती शरमा गई और कपोल लज्जा से लाल हो गए थे। फिर मुस्कराते हुए कहा, "बाबू, माना कि पहली ही नज़र में किसी लड़की ने तुम्हारा दिल चुरा लिया है लेकिन सिर्फ़ प्रेम करने से ही जीवन नहीं चलता। अब ये भी बता दो मुझसे बेइंतेहा प्रेम करने वाला करता क्या है?" 


शेरू, "दो महीने पहले ही मैंने भारतीय सेना की परीक्षा पास की है। बस इंतज़ार है तो वहाँ से बुलावे का।" 


ये जानकर कि उसे बेइंतहा चाहने वाला भारतीय फ़ौज में भर्ती हो गया था भगवती के पांव आज़ ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। खुशियाँ आसमान में उड़ने को बेकरार थी। आने वाले कल की सुबह सूरज की किरणों में नहा कर कुलांचें भर रही थी। ख्वाहिशों का समन्दर किनारों को चीरकर छलक रहा था। सोचने लगी कि माँ दूनागिरी ने आज़ उसकी झोली दुनियाँ की सारी खुशियों से भर दी थी। 


भगवती, "बाबू, मुझे ख़ुशी है कि कोई तो है दुनिया में जो मुझसे इतना प्रेम करता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि ज़वानी की बेकाबू भावनाओं में बहकर ये सब कह रहे हो।" 


भगवती के दोनों हाथों को पकड़ कर शेरु ने धीमे स्वर में कहा, "मां दूनागिरी की सौगंध मैं तुमसे सच्चा प्रेम करता हूँ। यदि ऐसा न होता तो हमारी मुलाकात मंदिर के प्रांगण में न होती, काफल तो बस एक माध्यम है।"।


अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए शेरू, "भगवती, मेरी दीदी राजुल कहती है कि भगवती जिस घर में भी जायेगी अपने कुशल व्यवहार से वह घर ख़ुद ब ख़ुद स्वर्ग बन जायेगा।" 


भगवती, "मैं एक बहुत ही निर्धन परिवार से हूँ। संभव है मेरे माता पिता इस रिश्ते के लिए मान भी जाएँ लेकिन क्या तुम्हारे घरवाले राजी होंगे। डरती हूँ कि मुझे बीच राह में छोड़कर कहीं दूर तो नहीं चले जाओगे।" 


भगवती की बातें सुनकर शेरू कुछ देर के लिए सोच में पड़ गया। उसकी खामोशी देख कर भगवती ने कहा, "क्यों बाबू किस सोच में खो गए। चुप क्यों हो? कुछ बोलते क्यों नहीं?" 


शेरु ने झट से ज़वाब दिया, "भगवती, दो दिन बाद राजुल दीदी की शादी है। मेरे घरवाले भी वहाँ होंगे। क्यों न राजुल दीदी की मेहमान बनकर तुम भी वहाँ आओ। और हां, हिमुली को भी अपने साथ ज़रूर लाना। मौका पाते ही मैं अपनी ईजा (मां) से तुमको मिलवाऊंगा। कहानी की बाक़ी की पटकथा उसके बाद तक़दीर स्वयं अपनी क़लम से लिखेगी। क्या ख़्याल है तुम्हारा।" 


इससे पहले कि शेरू अपनी बात पूरी करता, पीछे से आते हुए हिमुली ने पुकारा, "अरे भगवती आज यहीं रहने का इरादा है क्या। घर भी जाना है देख शाम होने वाली है।" हिमुली की आवाज़ सुनते ही भगवती झट से खड़ी होकर अपने खुले बालों को बाँधने लगी, फिर दुपट्टा ठीक करते हुए शेरु की ओर देखा और लजाते हुए हिमुली का हाथ थाम कर वहाँ से चल दी। 


रास्ते में चलते-चलते हिमुली ने पूछा, "भगवती कैसी रही आज़ की मुलाकात। अरे शरमाती क्यों है? मैं भी तो जानूं क्या-क्या बातें हुईं शेरु दादा से?" 


भगवती, "चल शैतान कहीं की। जैसे तुझे कुछ पता ही नहीं। अच्छा ये शेरू तेरा भाई कहाँ से हुआ?" 


हिमुली मुस्कराते हुए, "शेरू दादा के गाँव में मेरा मुकोट (ननिहाल) है इसलिए इनके परिवार को भली भांति जानती हूँ। बहुत ही संस्कारी और मिलनसार परिवार है।" हिमुली की बातों को भगवती बहुत ही ध्यान से सुन रही थी। 


अपनी बात को जारी रखते हुए हिमुली ने कहा, "भगवती, चिराग लेकर भी शेरू दादा जैसा लड़का पूरे इलाके में नहीं मिलेगा। सच में तू बहुत क़िस्मत वाली है कि शेरू भाई जैसा लड़का तेरी ज़िन्दगी में आया। उस घर में राज करेगी मेरी प्यारी सहेली भगवती।" हिमुली की बातें सुनकर भगवती के नयनों से खुशियों के आंसू टपक रहे थे। 


राजुल की शादी के कारण शेरू के मामा के घर में आज़ बहुत ही चहल पहल थी। मेहमानों का तांता लगा हुआ था। शाम को आने वाली बारात के स्वागत की ज़ोर शोर से तैयारियाँ चल रही थी। हल्दी की रस्म शुरु होने वाली थी। पहाड़ों की मांगल गीतों की धुन से आंगन चहक रहा था। 


राजुल हल्दी की रस्म निभाने जा ही रही थी कि देखा शेरु बाहर आंगन में खड़ा हो कर कभी इधर कभी उधर देख रहा था। उसके पास जा कर राजुल ने प्रश्न किया, "भुला (छोटा भाई), सुबह से देख रही हूँ तू कुछ परेशान-सा है। किसी ख़ास मेहमान का इंतज़ार है क्या?" 


शेरू ने भगवती के आने की ख़बर जब राजुल को दी तो वह ख़ुशी से झूम उठी और कहा, "तो भुला बात यहाँ तक पहुँच चुकी है। भगवती को बुलाकर तो तूने कमाल कर दिया मेरे भाई।" 


आखिरकार वह घड़ी भी आ ही गई जिसका शेरू अधीरता से प्रतीक्षा कर रहा था। सामने से हल्के धानी रंग का सूट पहने भगवती आती हुई दिखाई दी और साथ में हिमुली भी थी। दोनों के हाथों में बुरांश के फूलों से सजी काफल की टोकरियाँ थी। जैसे ही दोनों दहलीज़ पर पहुँचे, शेरू दोनों को वहाँ ले गया जहाँ राजुल की हल्दी की रस्म शुरु होने वाली थी। 


काफल की टोकरियाँ शेरू को थमाकर दोनों ही राजुल के बगल में बैठ गई। भगवती पर नज़र पड़ते ही राजुल की ख़ुशी की कोई सीमा नहीं थी। हल्दी की रस्म पूरी होते ही भगवती घर के कामों में घर की महिलाओं का सहयोग करने में जुट गई। दिन का खाना होते ही सभी महिलाएँ महिला संगीत के लिए बाहर आंगन में आम के पेड़ की छांव में बैठ गई। 


महिला संगीत शुरु होते ही सभी बारी-बारी से पहाड़ी नृत्य कर रही थी और पुरुष आंगन की दीवार में बैठ कर महिला संगीत का भरपूर आनंद उठा रहे थे। शेरू को इंतज़ार था तो बस भगवती के नृत्य का। तभी राजुल ने भगवती का हाथ खींचकर उसे नृत्य के लिए उकसाया। पहाड़ी धुन पर जैसे ही भगवती के पांव थिरकने लगे, राजुल दौड़कर शेरू को भी खींच लाई। दोनों का अद्भुत नृत्य देखकर सब दंग रह गए। हिमुली ने राजुल से कहा, "दीदी क्या कमाल की जोड़ी है भगवती और शेरू दा की।" 


पहाड़ों की नशीली शाम ढलान पर थी, दिनकर का प्रकाश भी मध्यम हो रहा था। सभी बारात के आने का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे। शेरू की ईजा (मां) पार्वती की नज़र दिन से ही भगवती पर टिकी थी। सोच रही थी जब से आई है काम में लगी है। शादी में आए सभी मेहमानों को भली भांति जानती थी लेकिन भगवती को आज पहली बार देखा था। राजुल को बुलाकर पूछा कि ये शर्मीली स्वभाव की खूबसूरत लड़की कौन थी। 


राजुल ने भगवती को बुलाकर कहा कि ये शेरू की ईजा (मां) है और उसे वहीं छोड़कर दूसरे कामों में लग गई। भगवती ने पार्वती को प्रणाम किया और वहीं उसके बगल में बैठ गई। 


पार्वती, "चेली (बेटी) क्या नाम है तेरा और किस गाँव की है?" 


भगवती, "मेरा नाम भगवती है और दूनागिरी मेरा गाँव है।" 


पार्वती, "चेली (बेटी) तेरा व्याह हुआ है या नहीं।" 


भगवती, "नहीं अभी नहीं हुआ है। घरवाले लड़का खोज रहे हैं।" 


पार्वती, "चेली (बेटी), तेरी जैसी सुशील और संस्कारी लड़की को जन्म देकर तेरे माँ बाप धन्य हो गए हैं। काश मुझे भी मेरे शेरू के लिए तेरी ही जैसी रूपवान और गुणवान ब्वारी (बहू) मिल जाती।" तभी झूमते हुए शेरू भी वहाँ पहुँच जाता है। 


शेरू, "ईजा (मां), किससे इतनी हंस-हंस कर बातें कर रही हो?" 


पार्वती, "शेरू ये भगवती है राजुल की सहेली। बहुत ही संस्कारी और मिलनसार लड़की है। भगवती जैसी लड़की अगर तुझे मिल जाती तो तेरा जीवन सफल हो जाता।" 


शेरू, "ईजा, राजुल दीदी कह रही थी ये बहुत ही नकचढ़ी और तुनुकमिजाज लड़की है। गुस्सा तो जैसे हरदम इसकी नाक पर रहता है। भगवान ही बचाए ऐसी गुस्सैल लड़की से।" शेरू की बातें सुनकर भगवती मूंह में दुपट्टा दबाए मन ही मन मुस्करा रही थी। 


भगवती के सर पर हाथ फेरते हुए शेरू को डांटा, "खबरदार! अगर भगवती को कुछ भी कहा तो। कहाँ तू और कहाँ भगवती। जिस घर में जायेगी वह घर स्वर्ग बन जायेगा।" 


शेरू, "ईजा, अगर ये लड़की तुमको इतनी ही पसंद है तो अपनी ब्वारी (बहू) क्यों नहीं बना लेती इसे। कल सुबह जब राजुल दीदी डोली में बैठकर अपने ससुराल जायेगी तो तुम भी इसे डोली में बैठाकर अपनी ब्वारी (बहू) बना लेना। क्यों ठीक कहा न मैंने।" शेरू की बातें सुनकर भगवती मन ही मन लजा रही थी। इससे पहले कि पार्वती कुछ कहती, वह शर्माते हुए वहाँ से खिसक गईं। 


दूसरे दिन राजुल की विदाई के बाद भगवती अपने घर जाने से पहले शेरू की माँ पार्वती के पांव स्पर्श करते ही उनसे लिपट गई और फफक-फफक कर रोने लगी। पार्वती ने उसके आंसुओं को साफ़ किया और उसके सर पर हाथ रखकर कहा, "चेली (बेटी) तू रो क्यों रही है? देखना माँ दूनागिरी के आशीर्वाद से तुझे तेरा मनचाहा वर अवश्य मिलेगा।" 


ठीक दो महीने के बाद शेरू (शेर सिंह चौहान) को भारतीय सेना से नौकरी का बुलावा आया और दो सप्ताह बाद उसे ट्रेनिंग के लिए माउंट आबू जाना था। जाने से पहले शेरू एक बार भगवती से ज़रूर मिलना चाहता था। हिमुली के हाथों उसने भगवती को संदेश भेजा कि आने वाले इतवार के दिन दूनागिरी मंदिर में भेंट करने आना। 


इतवार के दिन भगवती और शेरू निश्चित समय पर दूनागिरी मंदिर स्थल पर पहुँच गए। शेरू को देखते ही भगवती फूली नहीं समा रही थी। फिर दोनों मन्दिर के पीछे वाली पहाड़ी चट्टान के ऊपर बैठ गए। मौसम भी बहुत सुहावना था। हवा के ठंडे झोंके मन को शीतलता प्रदान कर रहे थे। 


अपने दुपट्टे को संभालते हुए भगवती ने कहा, “क्यों फ़ौजी बाबू, आज़ अचानक से मिलने के लिए क्यों बुलाया है? कोई ख़ास काम था क्या? ?”


शेरू, "हाँ भगवती, ठीक कहा तुमने। किसी ख़ास कारण से आज़ तुमको यहाँ बुलाया है।" 


भगवती, "क्या मैं जान सकती हूँ कि वह ख़ास काम कौन-सा है?" 


शेरू, "भारतीय सेना से मुझे नौकरी का बुलावा आ गया है। तीन दिन बाद डेढ़ साल की ट्रेनिंग के लिए माउंट आबू रवाना होना है। इसलिए जाने से पहले तुमसे एक बार मिलना ज़रूरी समझा।" 


रुआंसे स्वर में भगवती ने कहा, "ये तो ख़ुशी की बात है कि भारतीय सेना ने तुमको देश सेवा के लिए बुलाया है। लेकिन ये डेढ़ साल तुम्हारे बिन कैसे काटूंगी?" 


शेरू, "भगवती, हर छैः महीने बाद छुट्टी पर जब घर आऊंगा तो तुमसे मुलाकात होती रहेगी। देखना ये डेढ़ साल भी पलक झपकते ही कट जायेंगे।" 


भगवती की आंखों से टिप-टिप आंसू गिरने लगे। शेरू की आंखें भी नम हो चुकी थी। भगवती का गला भर आया था। धीमे स्वर में बोली, "फ़ौजी बाबू, वहाँ जाकर कहीं मुझे भूल तो नहीं जाओगे।" 


शेरू, "अरे पगली, ये तुमने सोच भी कैसे लिया कि तुम्हारा फ़ौजी तुमको भूल जायेगा। फ़ौजी कभी अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोड़ता। भूलकर भी ऐसा विचार कभी अपने मन में फिर मत लाना। ट्रेनिंग ख़त्म होते ही अपनी दुल्हन बनाकर तुमको अपने घर ले जाऊंगा।" 


फिर भगवती का हाथ पकड़ कर मन्दिर के अंदर ले गया और कहा, "भगवती, माँ दूनागिरी को साक्षी मानकर आज प्रतिज्ञा लेता हूँ कि तुमको ही अपनी जीवन संगिनी बनाऊंगा।" पंडित जी ने दोनों को तिलक लगाकर आशीर्वाद दिया। 


मां दूनागिरी के दर्शन को आए भक्त भी अब तक यहाँ से निकल चुके थे। मंदिर के चारों तरफ़ एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था। सांय सायं बहती मतवाली हवा तन बदन को गुदगुदा रही थी। आसमान में कहीं-कहीं बादलों के छोटे-छोटे टुकड़े तैरते नज़र आ रहे थे। सूरज का प्रकाश भी धूमिल हो रहा था। ऐसे में शेरू और भगवती मंदिर की सीढ़ियों पर आकर बैठ गए। 


शेरू को एहसास हुआ कि भगवती का मन बहुत उदास था। नयनों से आंसू मोती बनकर टपकते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। अपने रूमाल से भगवती के आंसुओं को पोंछते हुए शेरू ने कहा, "भगवती, अपने मन को इतना उदास मत करो। देखना ये फ़ौजी तुमसे मिलने जल्दी लौटकर आयेगा।" 


भगवती अपनी भावनाओं पर मानो नियंत्रण खो चुकी थी, शेरू के कंधों पर अपना सर रख कर फफक-फफक कर रोने लगी। शेरू ने समझाने की बहुत कोशिश कि लेकिन प्रेमी को अपनी आंखों से दूर जाते देख मल्लिका को समझाने में कालिदास भी असफल रहे थे। भगवती के बालों को सहलाते हुए शेरू ने कहा, "भगवती, अपने फ़ौजी को ख़ुशी-ख़ुशी विदा करो। तुम्हारी आंखों से बरसते सावन के प्रवाह में कहीं मैं बह न जाऊँ।" 


हर छैः महीने बाद शेरू जब भी ट्रेनिंग से गाँव आता, भगवती से मिलने का सिलसिला फिर से अपनी रफ़्तार पकड़ लेता। ट्रेनिंग पूरी होते ही शेरू कुमाऊँ रेजिमेंट में आ गया। कश्मीर में उस समय आतंक के काले बादल मंडरा रहे थे। एक ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए शेरू की रेजिमेंट को कश्मीर रवाना होने के आदेश मिल चुके थे। कश्मीर में क़दम रखते ही शेरू की कम्पनी को तुरन्त अनंतनाग पहुँचने का आदेश मिला। ये वह क्षेत्र था जहाँ आतंकवादी आए दिन कोई न कोई वारदात कर रहे थे। 


अनंतनाग में रविवार की सुबह एक बार फिर से गोलियों की तड़तड़ाहट सुनाई दे रही थी। भारतीय जवानों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ शुरू हो गई। आतंकियों की गोलीबारी का भारतीय सेना के जवानों ने मुंहतोड़ जवाब दिया और सुरक्षाबलों ने 2 आतंकवादी मौत के घाट उतार दिए, जिसमें एक जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा था और वह पाकिस्तानी नागरिक था। कुछ और आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में विशेष सूचना मिलने के बाद रविवार सुबह घेराबंदी और तलाशी अभियान शुरू किया गया।


तलाशी दल संदिग्ध ठिकाने की ओर पहुँचा, तो आतंकवादियों ने ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसानी शुरू कर दी। जवान शेरू का ये पहला अभियान था लेकिन उसके सर पर तो मानो एक-एक आतंकवादी को चुन-चुन कर मारने का जुनून सवार था। तभी एक घर की छत से हथियारों से लैस दो आतंकवादी दिखाई दिए। शेरू ने पलक झपकते ही दोनों को वहीं मौत की नींद सुला दिया लेकिन तभी एक गोली उसके बाएँ कंधे पर लगी। इलाज़ के लिए शेरू को तुरंत आर्मी हॉस्पिटल श्रीनगर लाया गया। अधिक रक्त बहने के कारण उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ तो तत्काल दिल्ली के दिल्ली कैंट स्थित आर्मी हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। 


शेरू के ज़ख्मी होने की सूचना मिलते ही उसके माता पिता दिल्ली कैंट आर्मी हॉस्पिटल पहुँच चुके थे। अपने बेटे शेरू को इस हाल में देखकर पार्वती ख़ूब रोई थी। शेरू के घायल होने की जानकारी जब भगवती को मिली तो उसका रो कर बुरा हाल था। उसने तुरन्त दिल्ली जा कर शेरू से मिलने का फ़ैसला लिया लेकिन ये इतना आसान नहीं था। उसने अपनी बचपन की सहेली हिमुली को अपने इस फैसले से अवगत कराया। 


हिमुली के चाचा अपनी टैक्सी चलाते थे। गाँव से सवारी लेकर दिल्ली जाते और दिल्ली से सवारी लेकर गाँव आते। भगवती की परेशानी हिमुली ने जब अपने चाचा को बताई तो उसके चाचा भगवती की मदद करने को तुरंत तैयार हो गए। हाथ में कपड़ों का एक बैग लेकर भगवती दूसरे दिन दूसरी सवारियों के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गई। 


सभी सवारियों को उनके गंतव्य स्थान पर छोड़ने के बाद हिमुली के चाचा भगवती को लेकर दिल्ली कैंट आर्मी हॉस्पिटल पहुँचे। रिसेप्शन में शेरू के बारे में सारी जानकारी दी। कुछ देर बाद एक नर्स आई और भगवती को उस वार्ड में ले गई जहाँ शेरू का इलाज़ चल रहा था। चार दिन पहले ही एक सफल ऑपरेशन के बाद शेरू के कन्धे में फंसी गोली निकाल दी गई थी और अब वह खतरे से बाहर था, उसकी स्थिति में भी सुधार हो रहा था। 


शेरू की माँ पार्वती वार्ड के बाहर लगी बेंच पर बैठी हुई थी कि तभी अपने सामने अचानक से भगवती को देखकर पांवों के तले की ज़मीन खिसक गई। उसकी आंखों को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि ये भगवती है या फिर उसका भ्रम। जैसे ही भगवती ने पार्वती को देखा तो उससे लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी। अपने यहाँ तक पहुँचने की कहानी पार्वती को विस्तार से सुना दी। 


पार्वती कुछ देर बाद भगवती को वार्ड के अंदर ले गई जहाँ शेरू बेड पर लेटा हुआ आराम कर रहा था। भगवती ने प्रण किया कि चाहे कुछ भी हो जाए शेरू के सामने एक बूंद भी आंसू नहीं बहाएगी। अगर वही टूट गई तो फिर शेरू स्वयं को कैसे संभालेगा। यही तो उसकी परीक्षा की घड़ी थी जब उसको और अधिक मज़बूत होना पड़ेगा और यही एक नारी का कर्तव्य भी था। 


बिस्तर पर लेटे शेरू को देखते ही एक बार तो भगवती का मन हुआ कि उससे लिपट कर आंखों में समाए हुए सागर को आज़ खाली कर दे लेकिन इस क्षण ऐसा करना क्या उचित था, नहीं कदापि नहीं। नियति को जब यही मंजूर था तो कोई कर भी क्या सकता है। समय और भाग्य के सामने मानव सदैव स्वयं को लाचार एवं असमर्थ महसूस करता है। यही सब भाव भगवती के भीतर भी उमड़ घुमड़ कर उसे बेचैन कर रहे थे। 


पार्वती ने शेरू को नींद से जगाते हुए कहा कि देख उससे मिलने कौन मेहमान आया था। जैसे ही शेरू ने आंखें खोली तो देखता है कि सामने खड़ी भगवती मंद-मंद मुस्करा रही थी। उसने सोचा कहीं वह कोई सपना तो नहीं देख रहा था। दाएँ हाथ से अपनी आंखों को मलते हुए एक बार फिर भगवती की तरफ़ नज़र दौड़ाई तो पक्का यक़ीन हो गया कि ये कोई सपना नहीं था बल्कि भगवती स्वयं साक्षात रूप में उसकी आंखों के सामने खड़ी थी। 

अपनी समझदारी का सटीक परिचय देते हुए पार्वती दोनों को अकेला छोड़कर बिना कुछ कहे वार्ड से बाहर निकल आई। एक नारी और एक माँ होने के नाते भगवती की भावनाओं को वह भली भांति समझ रही थी। जैसे ही पार्वती वार्ड से बाहर गई भगवती वहीं पड़े स्टूल पर बैठ गई। काफ़ी देर तक शेरू और भगवती एक दूसरे को एकटक देखते रहे। 


आज़ तक जो बात उनकी ज़ुबान से निकले अल्फाज नहीं कह पाए, आज़ उनकी आंखों की भाषा दिल के हर राज़ परत दर परत खोल रही थी। इस क्षण दोनों ज़ुबान से नहीं बल्कि आंखों से वार्तालाप कर रहे थे। शेरू को पूरी तरह ठीक होने में लगभग तीन महीने लगे। 


इसी दौरान अदम्य साहस और वीरता के लिए शेरू को भारत सरकार द्वारा विशिष्ट सेवा मैडल से सम्मानित भी किया गया था। फिर एक दिन वह भी आया जब शेरू दूनागिरी की पहाड़ियों से भगवती को दुल्हन के शृंगार में सजा कर अपने घर लाया। भगवती ने एक बार फिर शेरू को तिलक लगा कर विदा किया और एक जांबाज फ़ौजी की तरह शेरू भी निकल पड़ा कश्मीर के घने जंगलों में एक नए अभियान में, एक नए शिकार की तलाश में।

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