Kishan Negi

Others

5.0  

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ये मेरी लाईफ है

ये मेरी लाईफ है

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"यामिनी मैडम, आपको राजन साहब ने तुरन्त अपने केबिन में बुलाया हैं।" इतना कहकर ऑफिस बॉय रघु वहाँ से चला गया। यामिनी ने अपने सामने रखी फाईल को बंद किया और अपने बॉस के केबिन की ओर निकल पड़ी। 

बॉस के केबिन में पहुँचते ही यामिनी, "सर आपने बुलाया था?" 

बॉस ने यामिनी को बैठने का इशारा करते हुए पूछा, "यामिनी, जापानी क्लाइंट ताशी हेल्थकेयर की प्रेजेंटेशन तुम ही तैयार कर रही हो न।" 

यामिनी, "जी सर, इसकी प्रेजेंटेशन मैं ही तैयार कर रही हूँ।" 

बॉस, "कंपनी से आज ही फ़ोन आया था। अगले हफ्ते कंपनी के सीईओ के साथ आखिरी मीटिंग है। प्रेजेंटेशन कब तक पूरा हो जायेगा। मीटिंग से पहले मैं स्वयं इसे एक बार देखना चाहता हूँ।" 


यामिनी, "सर, प्रेजेंटेशन अपने अन्तिम चरण में है। कुछ खामियाँ हैं जिन्हें दुरुस्त करने के लिए मुझे दो दिन का वक़्त और चाहिए।" 


बॉस, "ठीक है परसों शाम तक प्रेजेंटेशन का काम पूरा हो जाना चाहिए। यामिनी अगर ये डील कामयाब हो जाती है तो हमारी कम्पनी को बहुत बड़ा फ़ायदा होने वाला है। किसी भी क़ीमत पर ये डील हाथ से नहीं निकलनी चाहिए। ये सिर्फ़ डील ही नहीं बल्कि जापान के बाज़ार में प्रवेश करने के लिए एक बहुत ही सुनहरा अवसर भी है।" 


यामिनी, "जी सर, मैं भी चाहती हूँ कि ये कॉन्ट्रेक्ट हमारी ही कंपनी को मिले। बस दो दिन के बाद फाइनल प्रेजेंटेशन आपकी टेबल पर होगी सर।" इसके बाद यामिनी बॉस के केबिन से बाहर आ कर फिर से अपने काम पर लग गई। 


अंधेरा हो चुका था, कम्पनी में काम करने वाले अधिकतर कर्मचारी निकल चुके थे। कुछ थे जो अभी भी अपने कंप्यूटर पर आंखें गड़ाए बैठे थे। कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाले ये उस श्रेणी के लोग थे जो सारे दिन या तो चाय की चुस्कियाँ लेते थे या फिर ऑफिस गॉसिप में समय बर्बाद करते थे। इनकी खासियत ये थी कि शाम ढलने के बाद ही इनका काम शुरु होता था ताकि बॉस को भी अहसास हो कि मानो यही कम्पनी के सबसे अधिक समर्पित और प्रतिबद्ध कर्मचारी थे। 


अपना काम ख़त्म करने के बाद गोपाल ने अपना बैग उठाया और बाहर निकलने लगा कि तभी उसकी नज़र यामिनी पर जा कर टिक गई जो अभी भी कंप्यूटर पर काम कर रही थी। उसे ख़्याल आया कि यामिनी तो इतनी देर तक ऑफिस के काम से कभी रुकती नहीं थी तो फिर अभी तक कर क्या रही थी। शायद बॉस ने ज़रूर कोई ख़ास प्रोजेक्ट दिया होगा। 


यामिनी के पास जा कर गोपाल ने धीमे स्वर में पूछ ही लिया, "यामिनी, क्या किसी ख़ास प्रोजेक्ट पर काम कर रही हो जो अभी तक कंप्यूटर पर नज़रें गड़ाई बैठी हो।" 


गोपाल की तरफ़ देखे बिना बहुत ही अनमने मन से यामिनी ने जवाब दिया, "नहीं यार बस कुछ काम बाक़ी था उसे ही पूरा कर रही हूँ।" 


गोपाल, "लेकिन तुम इतनी परेशान क्यों हो? क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूँ? वैसे भी मुझे घर जाने की कोई ख़ास जल्दी तो है नहीं। दिल्ली में अकेला रहता हूँ तो घर पर कोई इंतज़ार करने वाला भी नहीं है।" 


गोपाल की बातों में यामिनी की कोई दिलचस्पी नहीं थी तो उसकी बात का जवाब देना भी उचित नहीं समझा। वह अभी भी अपलक अपनी आंखें कम्प्यूटर पर टिकाए हुए थी। 


गोपाल, "यामिनी मौन क्यों हो? मेरी बात का अभी तक जवाब नहीं दिया। तुमको अगर मेरी मदद की ज़रूरत है तो बेझिझक कह सकती हो।" 


उधर यामिनी अपने प्रेजेंटेशन को लेकर पहले ही बहुत परेशान थी और इधर उसे लगा जैसे गोपाल उसकी परेशानी की आग में घी डालने का काम कर रहा था। जब उसके धैर्य का बाँध टूटने लगा तो झुंझलाहट में गोपाल पर अपने आक्रोश का कुछ इस तरह इज़हार किया, "यार तुम पहाड़ के लोग जानते ही क्या हो कि प्रेजेंटेशन कहते किसे हैं। इसे समझने के लिए कुशाग्र बुद्धि के साथ-साथ तकनीकी ज्ञान का होना भी बहुत ज़रूरी है जिसे तुम जैसे पहाड़ी लोग कभी हासिल कर भी नहीं सकते।" यामिनी की झल्लाहट पर गोपाल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और चुपचाप वहाँ से खिसक गया। 


आज़ की रात गोपाल की आंखों से नींद जाने कहाँ गायब हो गई थी। बाहों में तकिया दबाए बार-बार करवट बदल रहा था। यामिनी के ताने अभी भी उसकी कानों में गूंज रहे थे। सोच रहा था क्या सच में हम पहाड़ के लोगों के पास तेज़ दिमाग़ और तकनीकी ज्ञान की कमी है? अगर ये सच होता तो उत्तराखंड के लोग आज़ सेना व दूसरे क्षेत्र में ऊंचे पदों पर आसीन न होते। आज़ यामिनी ने उसका नहीं बल्कि पहाड़ के लोगों का अपमान किया था। ये सब सोचते-सोचते ख़ुद को गहरी नींद के हवाले कर दिया। 


दूसरे दिन भी जब गोपाल अपना दैनिक कार्य ख़त्म करके ऑफिस से घर के लिए निकल रहा था तो उसने देखा कि कल की तरह आज भी यामिनी कंप्यूटर पर काम कर रही थी लेकिन बिना कुछ कहे गोपाल बाहर निकल गया। यामिनी आज़ कुछ ज़्यादा ही परेशान नज़र आ रही थी। झुंझलाहट और बेचैनी उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी। 


प्रेजेंटेशन का काम तो पूरा हो चुका था लेकिन एक छोटी-सी अड़चन अभी भी बाक़ी थी जिसके कारण प्रेजेंटेशन को अंजाम तक पहुँचाने में कठिनाई आ रही थी। इस छोटी-सी अड़चन को सिर्फ़ वही दूर कर सकता था जिसे इस तरह के प्रेजेंटेशन बनाने में महारत हासिल हो लेकिन फिलहाल उसे अपने ऑफिस में ऐसा कोई भी साथी का नाम नहीं सूझ रहा था जो इस खामी को दूर करने में उसकी मदद कर सके। 


मन ही मन में ये डर भी सता रहा था कि अगर कल शाम तक उसका ये काम पूरा नहीं हुआ तो इतने अच्छे वेतन वाली नौकरी से हाथ भी धोना पड़ सकता है। सोच रही थी कि यदि यह कार्य निर्धारित समय सीमा में पूर्ण नहीं हुआ तो हमेशा के लिए बॉस का विश्वास खो देगी। 


अगले दिन सुबह जैसे ही बॉस ऑफिस पहुँचे तो सबसे पहले यामिनी को केबिन में आकर मिलने को कहा। यामिनी समझ चुकी थी कि बॉस ने ज़रूर प्रेजेंटेशन की नवीनतम प्रगति के बारे में जानकारी लेने के लिए ही बुलाया होगा। वह मन ही मन बहुत घबराई हुई थी क्योंकि प्रेजेंटेशन को अंतिम रूप देने में जो मुश्किल आ रही थी उसे दूर करने में अभी तक सफलता नहीं मिली थी। लेकिन जब बॉस ने बुलाया है तो जाना ही पड़ेगा। 


जैसे ही यामिनी बॉस के केबिन में पहुँची तो बॉस ने पूछा, "यामिनी, प्रेसेंटेशन की क्या स्थिति है। तुमको याद है न तुम्हारी प्रेजेंटेशन आज शाम तक मुझे मेरी टेबल पर चाहिए।" 


यामिनी, "जी सर याद है। प्रेजेंटेशन अंतिम चरण में है और टेस्टिंग के बाद शाम तक आपकी टेबल पर होगी। आप निश्चिंत रहिए सर।" 


बॉस, "तुम्हारी आवाज़ क्यों लड़खड़ा रही है। मुझे ऐसा क्यों लगता है तुम कुछ परेशान भी हो। कोई समस्या है तो बताओ।" 


यामिनी, "नहीं सर, ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा आप सोच रहे हैं। प्रेजेंटेशन आज़ शाम तक आपकी टेबल पर होगी।" 


बॉस, "यामिनी, क्या तुम जानती हो कि इतने बड़े डील की प्रेजेंटेशन तैयार करने के लिए मैंने तुनको ही क्यों चुना, क्योंकि मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। आशा करता हूँ मेरा ये निर्णय भी सही साबित होगा।" 


यामिनी, "सर, मुझे ये जिम्मेदारी देने के लिए आपका धन्यवाद करती हूँ। आप बेफिक्र रहिए, मैं आपको निराश नहीं करूंगी।" 


बॉस, "मुझे तुमसे यही उम्मीद है। जापानी कम्पनी के साथ होने वाली ये डील मेरी ज़िन्दगी में आज़ तक की सबसे बड़ी डील होगी। किसी भी क़ीमत पर ये डील हमारे हाथ से नहीं निकलनी चाहिए। अब तुम जा सकती हो।" 


कंप्यूटर पर आंखें गड़ाए यामिनी मन ही मन सोच रही थी कि यदि आज़ शाम तक प्रेजेंटेशन तैयार नहीं हुआ तो बॉस को क्या ज़वाब देगी। मुमकिन है कि उस पर से बॉस का भरोसा ही टूट जाएगा और वह अपनी ही नज़रों में गिर जायेगी। ये सब सोचते-सोचते दर्द के मारे उसका सर फटा जा रहा था, आंखें लाल हो चुकी थी। इस परेशानी से बाहर निकलने के सभी द्वार जैसे बंद पड़े थे। मन में किसी बात या कार्य को लेकर हतप्रभ या अस्पष्ट होने की अवस्था और भाव यामिनी के चेहरे पर साफ़ झलक रहे थे। 


तभी उसने ऑफिस बॉय रघु से एक स्ट्रॉन्ग कॉफी लाने को कहा। टेबल पर कॉफी रखते हुए रघु ने कहा, "मैडम, मैंने देखा है कि कुछ दिनों से आप अपने काम को लेकर बहुत परेशान हैं। दो दिन पहले की ही बात है जब गुस्से में आप अपनी झुंझलाहट गोपाल भैया पर उतार रही थी और वह आपका आक्रोश देखकर वहाँ से चुपचाप खिसक गए।" 


यामिनी, "हाँ रघु, तुम सही कहते हो कि नए प्रोजेक्ट को लेकर मैं कुछ दिनों से बहुत परेशान हूँ, लेकिन तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो। तुम मेरी क्या मदद कर सकते हो।" 


कॉफी पीते हुए मुस्कराई और रघु से कहा, "रघु भैया, जिस विषय का ज्ञान न हो उस विषय पर प्रवचन नहीं देना चाहिए। गोपाल से बड़ी हमदर्दी जता रहे हो।" 


रघु, "मैडम, अगर बुरा न मानो तो एक बार, बस एक बार मेरे कहने पर अपनी परेशानी गोपाल भैय्या से साझा करके तो देखो, मुझे पूरा यक़ीन है कि आपकी समस्या का समाधान उनके पास ज़रूर होगा।" 


मुस्कराते हुए यामिनी, "रघु, क्या इतना भरोसा करते हो अपने गोपाल भैय्या पर। सवेरे-सवेरे क्या मैं ही मिली हूँ मज़ाक करने के लिए। जाओ और मुझे मेरा काम करने दो।" 


रघु, "मैम, आप जितना समझदार और पढ़ा लिखा तो नहीं हूँ लेकिन आज़ भी इस कंपनी का सबसे पुराना कर्मचारी मैं ही हूँ। यहाँ अब तक कितने बॉस आए और चले गए मगर मैं आज़ भी यहीं डटा हुआ हूँ। ऊपर से नीचे तक हर इंजीनियर की कमजोरी और ताकत से भली भांति परिचित हूँ। इसीलिए कहता हूँ कि अपने अहम को किनारे करके आप एक बार गोपाल भैय्या से बात करके तो देखो।" 


यामिनी, "लेकिन रघु भैय्या तुम तो जानते ही हो कि दो दिन पहले ही झल्लाहट में मैंने तुम्हारे प्यारे गोपाल भैय्या का कितना अपमान किया था तो वह क्यों मेरी मदद करेगा।" 


रघु, "मैम, ऐसा आप सोचती हैं गोपाल भैय्या नहीं। इन पहाड़ी लोगों की यही खासियत है जाने किस मिट्टी के बने हैं। गोपाल भैय्या की निष्कपटता, शालीनता और नेकनीयती पर मुझे भी गर्व है। उनकी प्रतिबद्धता और सत्यनिष्ठा पर बॉस ने भी कभी संदेह करने का साहस नहीं किया। एक राज़ की बात बताता हूँ, बॉस को जब भी किसी ख़ास प्रोजेक्ट पर अड़चन आती है तो सिर्फ़ गोपाल भैय्या की मदद लेते है। बॉस को जितना भरोसा गोपाल भैय्या पर है उतना ख़ुद पर भी नहीं।" अपनी बात ख़त्म करके रघु कहाँ से चला गया। 


काफी देर तक रघु की कही बातों ने यामिनी को अंदर तक झिंझोड़ कर रख दिया था। सोचने लगी थी कि रघु है तो ऑफिस बॉय लेकिन बातें ज्ञान की करता है। फिर ये ख़्याल भी आया कि मैंने गोपाल का जो अपमान किया था उसे वह कैसे भुला सकता है। ये कहावत आज़ भी सटीक बैठती है कि डूबते को तिनके का सहारा, मरता क्या न करता। जब सारे विकल्प असफल हो गए हैं तो एक बार रघु की सलाह मानकर गोपाल की मदद लेने में क्या हर्ज है। शायद गोपाल की मदद ही भंवर में उसकी डगमगाती कश्ती को किनारा दिखा सकती है। 


पुरानी सभी बातों को दरकिनार करते हुए आख़िर यामिनी ने गोपाल से एक बार बात करने में ही अपनी भलाई समझी, मगर ये संभव होगा कैसे? अगले ही पल उसे ध्यान आया कि क्यों न यहाँ भी रघु की मदद ली जाय। रघु को बुलाकर अपने मन की दुविधा उसे बताई। रघु ने भी मुस्कराकर उसे आश्वासन दिया मानो कह रहा हो समझो काम हो गया। रघु के कहने पर गोपाल ने अपना अधूरा काम छोड़ा और चाय के बहाने ऑफ़िस बिल्डिंग की दूसरी मंज़िल पर इंडियन कॉफी हाऊस में बैठकर यामिनी का इंतज़ार करने लगा। 


कुछ ही देर में तेज कदमों से चलती हुई यामिनी भी पहुँच गई और गोपाल के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई। यामिनी आज़ हल्के गुलाबी रंग की साड़ी में बला की खूबसूरत लग रही थी मानो स्वर्ग से उतरी कोई अप्सरा हो, उसके खुले घुंघराले चमकीले बाल सावन की घटाओं की तरह उसके कंधों पर लहरा रहे थे, बदन से अल्हड़ यौवन छलक रहा था।

सौंदर्य की दृष्टि से उसका अंग-अंग इंद्रियों व मन को उत्तेजित कर रहे थे। यामिनी का ये आकर्षक और मनमोहक रूप देखकर गोपाल भी कुछ पल के लिए भ्रमित हो गया था। इससे पहले कि उसकी चुंबकीय शक्ति के आकर्षण में उसका विवेक भटकने लगे, गोपाल ने ख़ुद को संभालने का हर प्रयास किया।


यामिनी अभी कुर्सी पर बैठी ही थी कि गोपाल ने वेटर को दो कॉफी लाने को कहा। यामिनी पर गोपाल ने पहला सवाल दागा, "रघु ने मुझे बताया है कि तुम मुझसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहती हो। बताओ क्या बात करनी है?" 


यामिनी, "गोपाल, आक्रोश में आकर परसों मैंने तुम्हारा अपमान…………. !


यामिनी की बात को बीच में ही काटते हुए गोपाल ने कहा, "यामिनी, मुझे क्षमा करना, परसों जो कुछ भी हुआ था उस प्रकरण को याद करने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। उसके अलावा कोई और बात करनी है तो बताओ।" गोपाल के साथ हुए अपने दुर्व्यवहार को लेकर यामिनी को अब पश्चाताप हो रहा था लेकिन अब हो भी क्या सकता था। अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। कुछ ही देर में वेटर टेबल पर दो कॉफी रखकर चला गया और दोनों कॉफी की चुस्कियाँ लेते हुए बातें करने लगे। 


गोपाल की आंखों में झांकते हुए यामिनी ने कहा, "गोपाल, बॉस ने मुझे एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण प्रेजेन्टेशन तैयार करने को कहा है। प्रेजेंटेशन तो लगभग तैयार है लेकिन अंतिम चरण में आ कर अटक जाता है। तीन दिन से इस त्रुटि को दूर करने के सारे प्रयास किए लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। बॉस ने कहा है कि आज़ शाम तक प्रेजेंटेशन उनकी टेबल पर होनी चाहिए।" 


गोपाल ने थोड़ा गंभीर होते हुए पूछा, "प्रेजेंटेशन किस कंपनी की है?" 


यामिनी, "जापान की कंपनी ताशी हेल्थकेयर की। लेकिन तुम ये क्यों पुछ रहे हो?" 


गोपाल पहले तो मुस्कराया, फिर धीमे स्वर में बोला, "ये वही कंपनी है न जिनकी अगले हफ्ते कंपनी के साथ एक बहुत बड़ी डील फाइनल होने वाली है और बॉस इस डील को लेकर बहुत उत्साहित और आशान्वित हैं।" 


यामिनी, "तुम मुस्करा क्यों रहे हो? इस डील के बारे में तुमको कैसे पता है?" 


गोपाल, "क्योंकि ये प्रेजेंटेशन तैयार होने के लिए सर्व प्रथम मेरे पास ही आया था लेकिन समय सीमा की बाध्यता के कारण बॉस ने ये प्रोजेक्ट तुमको सौंप दिया था। मैं पहले से ही किसी अन्य प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था।" 


यामिनी, "गोपाल, क्या तुम मेरी कोई मदद कर सकते हो? जैसा मैंने तुमको बताया कि बॉस को ये प्रेजेंटेशन आज शाम तक तैयार चाहिए। अंदर ही अंदर बहुत घबराई हुई भी हूँ कि यदि शाम तक प्रेजेंटेशन तैयार नहीं हुआ तो नामालूम क्या होगा।" 


गोपाल, "तुम चिंता मत करो। बॉस आज शाम की फ्लाइट से बैंगलोर जा रहे हैं जहाँ कंपनी के सीईओ के साथ उनकी एक ज़रूरी मीटिंग है। बॉस अब कल शाम तक ही वापस आयेंगे। इसका साफ़ मतलब है कि तुमको एक दिन का वक़्त और मिल गया है।" 


आश्चर्य चकित होकर यामिनी ने पूछा, "लेकिन तुमको कैसे पता कि आज़ शाम की फ्लाइट से बॉस बैंगलोर जा रहे हैं और कल शाम तक लौटेंगे।" 


मुस्कराते हुए गोपाल ने जवाब दिया, "बॉस ने ये जानकारी आज़ सुबह ही मुझे अपने केबिन में बुलाकर दी है।" यामिनी सोच रही थी कि रघु ने ठीक ही तो कहा था कि पूरे ऑफिस में एक गोपाल ही था जिस पर बॉस को सबसे अधिक भरोसा था। फिर मुख्य विषय पर लौटते हुए कहा कि गोपाल उसकी क्या मदद कर सकता था। 


गोपाल, "यामिनी, तुमने जो प्रेजेंटेशन तैयार किया है उसे तुम मुझे मेल कर दो। उसे चेक करके देखता हूँ कि क्या खामी है। मुझे आज़ शाम तक का वक़्त दो। इतना तो कर ही सकती हो।" 


यामिनी, "हाँ क्यों नहीं, मैं अभी जाकर तुमको मेल करती हूँ।" 


गोपाल, "और हाँ, क्योंकि ये मामला सीधे तौर पर कंपनी से जुड़ा हुआ है इसलिए मेल मेरे नाम से होनी चाहिए जिसमें तुम्हारी तरफ़ से लिखा होगा कि प्रेजेंटेशन में कुछ खामियाँ है जिसे दूर करने में तुम्हें मेरी मदद चाहिए।" पिछली घटना से गोपाल को यामिनी के प्रोफेशनल चरित्र के बारे में इतना तो पता चल ही गया था कि ये अपनी ज़रूरत के अनुसार कोई भी चाल चलने में शातिर है इसीलिए उसने मेल में ये सब लिखने के लिए दवाब डाला था। 


यामिनी थोड़ा गंभीर होते हुए, "गोपाल, तुमसे मदद तो मैं मांग रही हूँ कम्पनी नहीं तो फिर मेल में ये सब लिखने की क्या ज़रूरत है?" 


गोपाल, "यदि तुम मेरी मदद चाहती हो तो 

फिलहाल जितना कहा है सिर्फ़ उस पर अमल करो। इसके बारे में मैं कोई और बहस नहीं करना चाहता।“


अनमने मन से यामिनी ने जवाब दिया, "ठीक है जैसा तुमने कहा है वैसा ही करती हूँ।" लेकिन उसके मन में एक सवाल अभी भी संदेह पैदा कर रहा था कि गोपाल की आख़िर ऐसी कौन-सी मजबूरी हो सकती है जो उसने मेल में वह लिखने को कहा था जिसका इस प्रेजेंटेशन से कोई लेना देना नहीं था। 


यामिनी का मेल मिलते ही गोपाल ने उसकी भेजी हुई प्रेजेन्टेशन को पहले पायदान से खंगालना शुरु किया लेकिन कहीं भी कोई खामी नज़र नहीं आ रही थी कि तभी उसकी नज़र एक जगह पर ठहर गई। उसे एक मामूली-सा टेक्निकल फॉल्ट नज़र आया। अपने अनुभव और तकनीकी ज्ञान का पूरा फायदा लेते हुए उसने इस अड़चन को कुछ ही देर में दुरुस्त कर दिया था। दो तीन टेस्टिंग के बाद प्रेजेंटेशन जब काम करने लगा तो उसने यामिनी को मेल कर दिया। 



अंधेरा घिर चुका था, कंपनी के अधिकतर कर्मचारी निकल चुके थे लेकिन यामिनी अभी तक गोपाल के मेल का इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही गोपाल ने उसे बताया कि प्रेजेंटेशन की त्रुटि ठीक करके उसके मेल पर भेज दी गई है, आनन फानन में मेल खोलकर प्रेजेंटेशन की टेस्टिंग करने लगी। उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था जब उसने पाया कि प्रेजेंटेशन अब बॉस की टेबल पर रखने के लिए तैयार था। उसे ताज्जुब हुआ कि गोपाल ने इतनी जल्दी ये करिश्मा किया कैसे। 


गोपाल का आभार जताने के लिए फ़ौरन गोपाल की सीट पर गई लेकिन गोपाल तो तब मिलता जब ऑफिस में होता। यामिनी को मेल भेजते ही गोपाल अपना बैग उठा कर ऑफिस से निकल चुका था। इधर उधर बहुत ढूँढा मगर गोपाल कहीं भी नज़र नहीं आया। जब ऑफिस बॉय रघु से गोपाल के बारे में पूछा तो उसका भी यही जवाब था कि गोपाल ऑफिस से निकल चुका था। 


दूसरे दिन सुबह जैसे ही गोपाल ऑफिस पहुँचा तो यामिनी दौड़कर उसके पास गई और बोली, "गोपाल, मेरी मदद करने के लिए तुम्हारा बहुत-बहुत धन्यवाद। जिस अड़चन को मैं इतने दिनों में ठीक नहीं कर पाई तुमने कुछ ही घंटों मैं उसका समाधान ढूँढ लिया। मैं भी तो जानूं आख़िर ये करिश्मा तुमने किया कैसे?" 


गोपाल उसकी बातों का ज़वाब दिए बिना कंप्यूटर पर अपनी आंखें गढ़ाए नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था। गोपाल की सबसे बड़ी खासियत यही थी कि ऑफिस में होने वाली पॉलिटिक्स और गॉसिप से ज़्यादा आनन्द उसे अपने काम करने में आता था इसीलिए ऑफिस में उसके सहकर्मी उससे सिर्फ़ कंपनी से सम्बंधित मामलों पर ही बात करते थे। 


गोपाल की चुप्पी उसे अंदर ही अंदर कांटे की तरह चुभ रही थी। गोपाल का ध्यान अपनी ओर की खींचने की उसने एक बार फिर कोशिश की लेकिन गोपाल तो मानो आज़ मौन व्रत पर बैठा था। यामिनी की झुँझलाहट जब बढ़ने लगी तो गोपाल को झिंझोड़ कर भर्राए हुए स्वर में बोली, "गोपाल, मैं यहाँ तुम्हारा आभार जताने आई हूँ लेकिन तुम हो कि मौन धारण किए कंप्यूटर पर नजरें टिकाए बैठे हो। कुछ बोलते क्यों नहीं।" 


गोपाल ने अपनी चुप्पी तोड़ी और यामिनी की तरफ़ देखे बिना कहा, "तुमने जो कुछ भी कहा है मेरे कानों ने सुन लिया है। तुम्हारी मदद करके मैंने कोई एहसान नहीं किया बल्कि ये मेरी मजबूरी थी।" 


यामिनी, "क्या कहा मजबूरी! ऐसी कौन-सी मजबूरी थी तुम्हारी कि तुम मेरी मदद करने के लिए तैयार हो गए।" 


गोपाल, "मेरे संस्कार जो मुझे मेरे माता पिता से विरासत में मिले हैं। मेरी माँ हमेशा कहती है दूसरों की मदद करने में जो सुख है वह कहीं और नहीं। लेकिन ये सब मैं तुमको क्यों बता रहा हूँ।" 


यामिनी, "रघु ठीक ही तो कहता है कि तुम पहाड़ के लोग जाने किस मिट्टी के बने हो। मैं तुम्हारा धन्यवाद करने आई हूँ और तुम संस्कारों पर प्रवचन देने लगे। कितने निष्ठुर और पत्थर दिल हो यार तुम आज़ जाना। एक लड़की तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा रही है और तुम दिल पर पत्थर रख कर बैठे हो।" जब गोपाल ने उसकी बातों का कोई जवाब नहीं दिया तो झल्लाते हुए वहाँ से चली गई। 


शाम को जैसे ही बॉस ऑफ़िस पहुँचे तो यामिनी को प्रेजेंटेशन के साथ अपने केबिन में आने को कहा। यामिनी ने अपना लैपटॉप उठाया और बॉस के केबिन में पहुँच कर प्रेजेंटेशन दिखाने लगी। जब बॉस को तसल्ली हो गई कि यामिनी द्वारा तैयार किया हुआ प्रेजेंटेशन बहुत ही शानदार और आकर्षक है तो यामिनी से बोले, "यामिनी, इस शानदार प्रेजेंटेशन के लिए मैं अभी से तुमको बधाई देता हूँ।" 


यामिनी, "सर, आपने मुझ पर जो भरोसा किया है ये उसका ही परिणाम है। सर बधाई के पात्र आप हैं मैं नहीं।" 


बॉस, "यामिनी, एक बात हमेशा ध्यान रखना कि भरोसा भी उसी पर किया जाता है जो भरोसे के काबिल हो और आज़ तुम्हारी लगन और मेहनत ने ये सच भी साबित कर दिया है।" 


ऑफिस में आज़ यामिनी को जापानी कंपनी ताशी हेल्थकेयर की टीम के सामने अपने प्रेजेंटेशन का प्रदर्शन करना था। यामिनी जब प्रेजेंटेशन दे रही थी तो जापानी कंपनी के सीईओ बहुत खुश नज़र आ रहे थे जिसका तात्पर्य था कि यामिनी के प्रेजेंटेशन से बहुत संतुष्ट थे। प्रेजेंटेशन ख़त्म होते ही बॉस ने एक नजदीकी होटल में जापानी टीम के सम्मान में रात्रि भोज का आयोजन रखा था। अपनी सफलता पर आज़ यामिनी को असीम गर्व की अनुभूति हो रही थी। 


खाने की प्लेट हाथ में पकड़े हुए यामिनी ने गोपाल को होटल के दक्षिणी कोने की तरफ़ चलने का इशारा किया। लज़ीज़ खाने का लुत्फ उठाते हुए यामिनी ने कहा, "गोपाल प्रेजेंटेशन मैंने ज़रूर बनाया है लेकिन मेरा यक़ीन मानो मेरी इस सफ़लता का श्रेय सिर्फ़ तुमको जाता है। यदि समय रहते तुमने मेरी मदद नहीं की होती तो संभव है कम्पनी ने अब तक मुझे बाहर का रास्ता दिखा दिया होता। तुम्हारा शुक्रिया अदा करने के लिए मेरे पास अल्फाज़ नहीं हैं।" 


गोपाल, "इसकी कोई ज़रूरत नहीं है, तुमको एहसास है यही काफ़ी है। इस सफलता की असली हकदार सिर्फ़ तुम हो। मेरी तरफ़ से तुमको बधाई।" 


यामिनी, "गोपाल, अगर बुरा न मानो तो इस इतवार को कहीं लंच पर चलते हैं।" 


गोपाल, "अरे इसकी क्या ज़रूरत है लेकिन अगर जिद्द करती हो तो ठीक है।" 


इसके बाद यामिनी और गोपाल हर सप्ताहांत कहीं बाहर निकल जाते थे। कभी कनॉट प्लेस में लंच का आनंद उठाते तो कभी चाणक्य थियेटर पर कोई इंग्लिश की एक्शन मूवी देखकर समय गुजारते। धीरे-धीरे दो दिल एक दूसरे के इतने करीब आ गए कि मानो सात जन्मों का अटूट रिश्ता था। कहते हैं न कि जिन रिश्तों की बुनियाद कमजोर होती है कभी भी ढह सकते हैं। क्या यामिनी और गोपाल के रिश्तों की बुनियाद भी एक दिन ढह जाएगी या फिर जन्म जन्मांतर तक एक दूजे का साथ निभायेंगे? 


आज़ सुबह जब बॉस ऑफ़िस पहुँचे तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी और सबको निर्देश दिए कि शाम को एक ज़रूरी मीटिंग है। कम्पनी के सभी कर्मचारी शाम की मीटिंग का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। अपने बॉस के चेहरे पर चटकीली मुस्कान देखकर ही सबको अंदाजा लग गया था कि शाम की मीटिंग में बॉस ज़रूर कोई खुशखबरी देंगे। 


शाम ढलते ही इंतज़ार भी ख़त्म हुआ। सभी की धड़कनें बढ़ने लगी, सबके मन में एक ही सवाल था कि आज़ की मीटिंग का एजेंडा क्या होगा। मीटिंग आरंभ होते ही बॉस ने मुस्कराते हुए कहा, "बहुत ही गर्व की बात है कि जापान की कम्पनी ताशी हेल्थकेयर ने हमारी कम्पनी के साथ दस मिलियन डॉलर का क़रार किया है, उम्मीद है इस बड़ी डील से हमारी कम्पनी को करोड़ों का फायदा होगा।" 


मीटिंग के अन्त में कहा, "इस डील के बाद जापान के बाज़ार में हमारे प्रवेश के द्वार भी खुल जायेंगे। इस सफलता की सबसे बड़ी हकदार यामिनी भार्गव है जिसकी कड़ी मेहनत और लगन से हम ये डील हासिल करने में कामयाब हुए हैं। मेरी तरफ़ से कामिनी और आप सभी को बहुत बधाई। इस शुभ अवसर पर कम्पनी ने यामिनी को प्रबंधक के पद पर प्रमोट करने का निर्णय लिया है।"



मैनेजर बनने के कुछ ही दिनों में यामिनी के व्यवहार में एक अजीब-सा बदलाव आने लगा था। गोपाल को अब यामिनी के अधीन काम करना था। एक दिन वह भी था जब गोपाल के बिना यामिनी लंच भी नहीं करती थी और आज गोपाल से सीधे मूंह बात भी नहीं करती। अक्सर काम को लेकर गोपाल पर बेवजह बरसना जैसे उसकी दिनचर्या में शामिल था। गोपाल की जगह आज यामिनी बॉस की पहली पसंद बन चुकी थी। ऑफ़िस के काम से यामिनी का अधिक समय बॉस के साथ ही व्यतीत होता था, गोपाल को तो मानो भूल ही गई थी। 


उस दिन हल्की-हल्की बरसात हो रही थी, मौसम में भी ठंडक थी, बाहर ठंडी-ठंडी हवाएँ चल रही थी। शाम का वक़्त था, कामिनी अकेली बैठ कर कंप्यूटर पर कुछ काम कर रही थी। मौका देखकर गोपाल यामिनी के पास गया और बोला, "यामिनी, मुझे तुमसे कुछ ज़रूरी बातें करनी है। चलो इंडियन कॉफी हाऊस में बैठकर कॉफी पीते हैं, वैसे भी आज ठंड बहुत है।" 


यामिनी गोपाल की बातों को अनसुनी करके अभी भी कंप्यूटर पर काम कर रही थी। जब गोपाल के सब्र का बाँध टूटने लगा था तो एक बार फ़िर बोला, "यामिनी, मेरी बात का ज़वाब क्यों नहीं देती। चलो इंडियन कॉफी हाऊस चलकर कॉफी पीते हैं। ये भी क्या लाईफ है यार!" 


गोपाल की बातों से यामिनी की आंखों में खीज और झुंझलाहट की चमक साफ़ झलक रही थी। गोपाल को अपने सामने खड़ा देखकर झल्लाते हुए बोली, "तुमको दिखाई नहीं देता कि मैं कुछ काम कर रही हूँ। तुम पहाड़ के लोग क्या जानो कि जिम्मेदारी क्या होती है। जंगलों में घास काटने के सिवा आता ही क्या है तुम लोगों को।" 


गोपाल की ओर देखते हुए आगे कहा, "और हाँ मत भूलो कि मैं अब तुम्हारी मैनेजर हूँ। 

शिष्टाचार नाम की भी कोई चीज़ होती है। और हाँ, ये मेरी लाईफ है जैसे चाहूँ वैसे जिऊंगी।“



बिना कोई प्रतिक्रिया दिए गोपाल ऑफिस से बाहर निकल गया था। रास्ते भर यही सोचता रहा कि वक़्त बदलने पर गिरगिट भी कैसे रंग बदलने लगता है। उसे महसूस होने लगा था कि यामिनी के रहते हुए इस कम्पनी मे उसके लिए अब काम करना मुमकिन नहीं था।


गोपाल को सबके सामने लज्जित करने का यामिनी कोई भी मौका नहीं चूकती थी या यूं कहें कि गोपाल को नीचा दिखाने का हर अवसर तलाशती थी। मार्च का महीना था तो सभी के काम का मूल्यांकन भी हो रहा था। यामिनी की सिफ़ारिश पर गोपाल के सिवा सबकी तनख़्वाह बढ़ी थी। इस महीने गोपाल की मैनेजर के पद पर प्रोमोशन भी होनी थी लेकिन यामिनी ने अड़चन डाल दी। अब तक गोपाल कोई दूसरी कम्पनी में जाने का मन बना चुका था। 


जिस दिन का गोपाल बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था वह दिन आख़िर आ ही गया। गुड़गांव की एक नई स्टार्ट अप कम्पनी में गोपाल को मैनेजर की नई नौकरी मिल गई थी। तनख़्वाह भी यामिनी से अधिक थी। आज घर पहुँचते ही उसने सबसे पहले अपने बॉस राजन को मेल द्वारा अपना इस्तीफा सौंप दिया था। बॉस ने भी तत्काल आगे की कार्रवाई के लिए इसे यामिनी को मेल कर दिया था।


रात के लगभग बारह बज रहे थे, चांदनी रात थी, हवा के हल्के झोंके गालों को गुदगुदा रहे थे। अपनी बालकनी में खड़ी होकर आकाश में झिलमिलाते तारों को निहारते हुए यामिनी इस सुहावने मौसम का आनंद ले रही थी कि तभी उसके मोबाइल पर बॉस ने गोपाल के इस्तीफे की ख़बर दी। यामिनी ने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि गोपाल के इस्तीफे की ख़बर बॉस आधी रात को देंगे। 


इस ख़बर ने यामिनी को ऊपर से नीचे तक हिलाकर रख दिया था, दिल की धड़कनें बढ़ने लगी थी। उसने आनन फानन में अपना मेल चेक किया तो गोपाल का इस्तीफा मिला। उसने तुरन्त गोपाल को विडियो कॉल किया परन्तु गोपाल ने फ़ोन नहीं उठाया, बार-बार कोशिश की मगर निराशा ही हाथ लगी। अनगिनत व्हाट्सएप मैसेज भी भेजे लेकिन उधर से कोई ज़वाब नहीं मिला। थक हारकर सोने की बहुत कोशिश की मगर आज़ आंखों से नींद भी गायब थी। 


दूसरे दिन चेहरे पर मुस्कान लिए गोपाल ऑफिस में दाखिल हुआ और कोई रोमांटिक गीत गुनगुनाते हुए अपने काम पर लग गया। यामिनी उसके चेहरे की मुस्कान से ही समझ गई थी कि गोपाल आज़ बहुत खुश था। वह इंतज़ार कर रही थी कि अपने इस्तीफे के बारे में गोपाल उससे बात करेगा लेकिन गोपाल तो अपनी ही धुन में खोया हुआ था। मायूस चेहरा लेकर यामिनी गोपाल के पास गई। उसने देखा कि गोपाल कोई गीत गुनगुना रहा है जिसके बोल कुछ ऐसे थे। 

"आज़ पांव ज़मीं पर पड़ते नहीं मेरे..." 


यामिनी, "गोपाल, क्या बात है बहुत खुश नज़र आ रहे हो आज़। मुझे अभी और इसी वक़्त तुमसे ज़रूरी बात करनी है, चलो इन्डियन कॉफी हाऊस चलते हैं।" लेकिन गोपाल अभी भी वही धुन गुनगुना रहा था


“आज़ पांव ज़मीं पर पड़ते नहीं मेरे..." 



फिर ऑफिस बॉय रघु को बुलाकर कहा कि गोपाल से कहो यामिनी मैडम ने बुलाया है। 


झूमते हुए गोपाल यामिनी के पास गया और पूछा, "मैम, आपने बुलाया है?" 


गोपाल के इस्तीफे को लेकर दोनों के बीच बहुत देर तक बातें होती रही किन्तु नतीज़ा शून्य ही रहा। यामिनी भी ये हक़ीक़त अच्छी तरह जानती थी कि गोपाल इस कंपनी की रीढ़ है। हेल्थकेयर सम्बंधी हर प्रोजेक्ट की सफलता के पीछे कहीं न कहीं गोपाल का बहुत बड़ा योगदान रहा था। 


ऑफ़िस में भी अक्सर इस बात की चर्चा होती थी कि हेल्थकेयर से सम्बंधित प्रोजेक्ट बनाने में गोपाल को महारत हासिल थी। कंपनी किसी भी सूरत में गोपाल को खोने का जोखिम नहीं उठाना चाहती थी। यामिनी इतना तो भांप चुकी थी कि अब गाज़ उसी पर गिरने वाली थी। इस्तीफा वापस लेने के लिए यामिनी ने गोपाल को हर तरह का लालच दिया लेकिन गोपाल अपने निर्णय पर अभी भी अटल था। 


यामिनी की बातों का जब गोपाल पर कोई असर नहीं हुआ तो यामिनी ने अपनी भावनाओं के तरकश से अंतिम वाण छोड़ते हुए कहा, "गोपाल तुम्हारा अपमान करके तुम्हारी भावनाओं और आत्मसम्मान को मैंने जो ठेस पहुँचाई है उसके लिए मैं बहुत शर्मिन्दा हूँ, कृपया मुझे माफ़ कर दो।" 


गोपाल, "हुजूर बहुत देर कर दी है यथार्थ के धरातल पर आते आते।" 


रुआंसे स्वर में यामिनी, "गोपाल क्या मेरी खातिर इतना भी नहीं कर सकते। यामिनी तुमसे इतनी मिन्नतें कर रही है, फिर भी तुम्हारा हृदय नहीं पसीजता। कितने पत्थर दिल इन्सान हो यार तुम।" 


गोपाल, "यामिनी जी, हम पहाड़ के लोग पत्थर दिल हो सकते हैं लेकिन तुम्हारी तरह संगदिल तो बिल्कुल भी नहीं।" 


यामिनी, "गोपाल, इतने भी बेरहम और दयाशून्य मत बनो यार। तुम मुझसे आख़िर चाहते क्या हो?" 


गोपाल, "सुकून की ज़िन्दगी जीने के लिए तुमसे छुटकारा।" 


यामिनी, "यार तुम पहाड़ के लोग किस मिट्टी के बने हो। मेरी हालत पर कुछ तो तरस खाओ। बॉस तो यही सोचेंगे कि तुम्हारे जाने की वज़ह मैं हूँ।" 


गोपाल, "यामिनी जी हम पहाड़ के लोग उस मिट्टी के बने है जिसकी सोंधी महक से ही मायूस ज़िन्दगी भी चहकने लगती है। एक बात और यदि बॉस ऐसा सोचते भी हैं तो इसमें ग़लत क्या है? मेरे जाने की मुख्य वज़ह तुमसे अधिक भला और कौन जानता है।" 


यामिनी, "लेकिन ये तो सोचो इतनी अच्छी जॉब छोड़ कर अब जाओगे कहाँ? यहाँ से जाने के बाद करोगे क्या?" 


गोपाल, "कहाँ जाऊँ कहाँ न जाऊँ, क्या करूं क्या न करूं, क्या सोचूं क्या न सोचूं, तुमसे मतलब। मैडम कुछ भी करूं ये मेरी लाईफ है।"






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