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Kishan Negi

Tragedy Inspirational Children

4.5  

Kishan Negi

Tragedy Inspirational Children

फ़ौजी काका (ThankYouTeacher

फ़ौजी काका (ThankYouTeacher

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ये कहानी उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव की है। कहानी का मुख्य किरदार भारतीय सेना से रिटायर्ड फ़ौजी सुबेदार शेर सिंह रावत है जो गाँव के बच्चों को खेल कूद और व्यायाम के साथ-साथ फौज़ में भर्ती होने के लिए शारीरिक परीक्षण भी देता है। कहानी का दूसरा मुख्य पात्र गाँव का प्रधान दुर्जन सिंह है जो कच्ची शराब के अवैध धंधे में लिप्त है लेकिन सुबेदार शेर सिंह इसका विरोध करता है और तीसरा मुख्य किरदार रामू है जो बचपन में अनाथ हो जाने के कारण बुरी संगत का शिकार होता है। कैसे अपने अनंत प्रयासों से सुबेदार रामू व गाँव के बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए संघर्ष करता है इस कहानी में दर्शाया गया है। 


ये कहानी भी हिमालय की गोद में बसे हुए एक छोटे से गाँव की है। उत्तराखंड के ज़िला अल्मोड़ा के अंतर्गत गनाई घाटी के पास एक छोटा-सा गाँव है बाखली जो रामगंगा नदी के तट पर बसा हुआ है। 


नैसर्गिक सोंदर्य ईश्वर की अलौकिक, अद्भुत, असीम एवं विलक्षण कला का समूह है। प्रकृति का पल-पल परिवर्तित रूप सौन्दर्य पूर्ण, हृदयाकर्षक होता है। प्रातः काल में उड़ते हुए पक्षियों का कलरव करता झुंड, दमकती शबनम की बूँदें, शीतल सुरभित मलयानिल, भगवान् भास्कर की दीप्त रश्मियाँ, तथा चारों दिशाओं में शांत वातावरण क्या ही अनुपम आनंद का अनुभव कराते हैं। चारों तरफ़ प्राकृतिक सौंदर्य के शृंगार में दुल्हन-सी सजी धरती के आंगन में अलौकिक व अद्भुत नजारा देखने को मिलता है उत्तराखंड की हसीन वादियों में। 


गांव में बुज़ुर्ग लोगों की संख्या अधिक है और युवा पीढ़ी रोजगार की तलाश में शहरों की ओर रुख कर चुकी है। गाँव में अधिकतर महिलाएँ और स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे हैं। उत्तराखंड की देवभूमि वीर सपूतों की शौर्यगाथाओं से भरी पड़ी है। बाखली गाँव भी विरासत में मिली इस परम्परा को आज भी जिन्दा रखे हुए है। हर घर से एक फ़ौजी ज़रूर मिल जायेगा। 


यहाँ के अनजाने और अनछुए ग्रामीण परिवेश शहरों की भीड़भाड़ और चकाचौंध की दुनिया से दूर एक बेहद शांत विशुद्ध प्राकृतिक वातावरण वाले हैं, जहाँ प्रदूषण नहीं होता है। शहरों के शोर गुल और प्रदूषण से दूर उत्तराखंड के शुद्ध स्वच्छ वातावरण में ख़ास कर ग्रामीण परिवेश में कुछ वक़्त बिताना एक अलग ही एहसास देता है। 


"रामू, ये तुम्हारा आख़िरी चक्कर है बस थोड़ा और कोशिश करो। फौज़ में भर्ती होने के लिए ख़ूब पसीना बहाना पड़ता है तब कहीं जाकर देश सेवा का सौभाग्य प्राप्त होता है।" ये कड़ाकेदार आवाज़ भारतीय सेना से सेवानिवृत सुबेदार शेर सिंह रावत जी की थी जो इस वक़्त गाँव के बच्चों को फौज़ में भर्ती होने का शारीरिक परीक्षण दे रहे थे। 


"काका, बहुत थक गया हूँ। पावों में बहुत दर्द हो रहा है। अब मुझसे न होगा।" इतना कहते ही रामू वहीं लड़खड़ाकर धम से गिर पड़ा। गुरुजी समझ गए थे कि रामू आज फिर कोई नया बहाना बना रहा था। लेकिन मन ही मन सोच रहे थे यही बहानेबाज एक दिन फ़ौजी ज़रूर बनेगा। 


सुबेदार जी के पास जो बच्चे आते थे उनमें रामू उनका सबसे प्रिय शिष्य था। ये बात वह भली भांति जानते थे कि फौज़ में जाने की रामू की कोई दिलचस्पी नहीं थी मगर वह ये भी जानते थे कि जो कुछ भी बच्चे उनसे सीखते हैं जीवन के हर क्षेत्र में उनके काम आएगा। सुबेदार जी का अधिक ध्यान अनुशासन, चरित्र निर्माण और शारीरिक विकास पर होता था। यहाँ आने वाले सभी बच्चे सम्मान से उनको काका कहकर पुकारते थे। 


फौज़ में सुबेदार जी का अधिकतर समय नए फौजियों को प्रशिक्षण देने में बीता था। सेना में उनके वरिष्ठ अधिकारी भी मानते थे कि सुबेदार शेर सिंह रावत का तराशा हुआ जवान कभी हार नहीं मान सकता। खेल कूद में भी सुबेदार जी ने अपनी बटालियन के लिए कई मेडल जीते थे। 


सुबेदार रावत जी की हर शाम की नियमित दिनचर्या थी की गाँव की पाठशाला के मैदान में गाँव के बच्चों को कभी कबड्डी तो कभी वॉलीबॉल खिलाते थे। उनका सोचना था कि ऐसा करने से एक तो बच्चों की शारीरिक क्षमता का विकास होगा जो उनके फ़ौजी बनने में भी मददगार साबित होगा और दूसरी तरफ़ बच्चे बुरी संगत से भी बचे रहेंगे। 


रामू इसी गाँव का ही रहने वाला था। रामू जब मात्र पांच वर्ष का था तो उसके पिता प्रेम बल्लभ जोशी एक सड़क दुर्घटना के शिकार हो गए थे। रामू के जीवन में दुखों का दूसरा पहाड़ तब गिरा जब उसकी माँ हिरूली एक दिन नदी के बहाव में बह गईं थी। उस समय रामू दस वर्ष का एक अबोध व मासूम बालक था। किसी भी रिश्तेदार ने रामू की परवरिश की नैतिक जिम्मेदारी नहीं ली जिस कारण धीरे-धीरे ग़लत संगत की ओर खींचा चला गया। गाँव के ही कुछ बिगड़ैल लड़कों के साथ धूम्रपान व नशा करना उसके लिए जैसे अब आम बात हो गई थी। 


कुछ महीने पहले ही सुबेदार शेर सिंह रावत भारतीय सेना से रिटायर होकर अपने गाँव बाखली लौटे थे। गाँव वालों की ज़ुबान से रामू की कई शिकायतें सुन चुके थे। उन्होंने भी अपनी आंखों से अक्सर देखा था कि छोटी-सी उम्र में रामू नशे का शिकार हुआ जा रहा था। ये ख़्याल बार-बार उनके मन को उद्वेलित कर रहा था कि यदि समय रहते कुछ नहीं किया गया तो रामू जैसे ना जाने कितने बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा। 


गाँव के ही कुछ बुजुर्गों से ये भी जानकारी मिली कि गाँव का ही प्रधान दुर्जन सिंह स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर कच्ची शराब का अवैध धंधा करता है। अपने इस अवैध कारोबार को फैलाने के लिए वह आस पास के गांवों के कुछ बच्चों की मदद लेता था। गाँव के लोग उससे डरते थे। किसी में भी इतना साहस नहीं था कि उसके खिलाफ़ कुछ बोल सके। उसके कारण गाँव के बच्चे नशे का शिकार हो रहे थे। 


आज की रात सुबेदार जी के लिए बेचैनियों से भरी रात थी। मन में मचल रही एक अजीब-सी हलचल ने आंखों की नींद चुरा ली थी। इतना तनाव तो तब नहीं था जब सियाचिन ग्लेशियर की बर्फीली चोटियों पर तैनात थे। मन में बार-बार यही ख़्याल उभर कर सामने खड़ा हो जाता था। समझ नहीं आ रहा था कि अपने मन की दुविधा किसके साथ साझा करें। आधी रात करवटें बदलकर कट गई थी। 


इतने में बगल में सोई उनकी पत्नी भगवती नींद से जागी तो क्या देखती है कि सुबेदार जी अभी तक जागे हुए थे। अपनी आंखें मलते हुए भगवती ने चुप्पी तोड़ी, "क्या बात है अभी तक सोए नहीं। घड़ी भी रात के दो बजा रही है।" 


सूबेदार, "कुछ नहीं बस थोड़ा-सा परेशान हूँ।" 


भगवती, "आज तक आपने अपनी हर परेशानी मुझसे साझा की है तो फिर आज क्यों नहीं!" 


सूबेदार, "भगवती क्या बताऊँ बात ही कुछ ऐसी है कि सोचता हूँ कैसे बताऊँ!" 


भगवती, "जैसे आज तक बताते रहे हो!" 


सूबेदार जी ने अपने भीतर मचल रही बेचैनी और परेशानी को विस्तार से भगवती के सामने रख दी। भगवती अपने पति की हर बात को बहुत ही ध्यान से सुन रही थी। जैसे ही सुबेदार जी की बात ख़त्म हुईं कुछ देर के लिए कमरे में सन्नाटा पसर गया था। 


एक लंबी सांस लेते हुए भगवती ने अपनी राय रखी, "बात तो तुम्हारी ठीक है कि यदि रामू की देखभाल की जिम्मेदारी हम ले लें तो उसकी अंधकारमय ज़िन्दगी संवर जाएगी। लेकिन एक अड़चन भी है कि कहीं उसकी बुरी संगत का काला साया हमारे श्याम पर न पड़े।" 


सूबेदार जी को जैसे अपनी समस्या का तत्काल समाधान मिल गया था। तुरन्त उठे और मुस्कुराते हुऐ बोले, "भगवती जिस घर में तुम्हारी जैसी लक्ष्मी का वास हो वहाँ हर समस्या का समाधान भी अवश्य होता है।" 


शर्माते हुए भगवती ने बात आगे बढ़ाई, "छोड़ो जी आप भी कैसी बातें करने लगे। में तुम्हारी सिर्फ़ अर्धांगिनी ही नहीं अपितु तुम्हारी हर परेशानी में हिस्सेदार भी हूँ। मगर ये संभव कैसे होगा।" 


सुबेदार, "ये तुम मुझ पर छोड़ दो। जैसे हर अंधेरे के बाद उजाला भी होता है, वैसे ही कोई न कोई रास्ता हमारा भी इंतज़ार कर रहा होगा।" 


दूसरे दिन खेतों में काम करने के बाद सुबेदार जी शाम के वक़्त स्कूल के मैदान में चले गए जहाँ रोजाना की तरह पहले से ही कुछ बच्चे खेल रहे थे। सुबेदार जी ने उनके पास जाकर पूछा कि क्या वे सब उनके साथ कबड्डी खेलना चाहेंगे। बिना देरी किए बच्चों ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई। कुछ ही दिनों में सुबेदार जी की मेहनत रंग लाई और बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। 


उस शाम सुबेदार जी जब बच्चों को मैदान में कुछ व्यायाम करा रहे थे तो अचानक उनकी नज़र सड़क किनारे दीवार पर बैठे रामू पर पड़ी। तुरन्त उसके पास गए और मुस्कुराकर बोले, "अरे रामू तुम यहाँ अकेले क्यों बैठो हो? इन बच्चों की तरह

क्या तुम्हारा मन नहीं करता खेलने को?" 


रामू, "चाचा जी मन तो मेरा भी बहुत करता है इनके साथ खेलने को लेकिन कोई मुझे अपने साथ खिलाता ही नहीं। गाँव के सब बच्चे मुझसे दूर भागने लगते हैं।" 


सुबेदार, "तुम मेरे साथ चलो कोई भी तुमसे दूर नहीं भागेगा।" 


सुबेदार जी रामू को मैदान में लेकर गए और सभी बच्चों से कहा, "बच्चो, आज से रामू भी हमारे साथ खेलेगा। देखना हम सबको खुब आनंद आएगा।" तभी एक बच्चा जिसका नाम हेमू था, रामू को देखते ही मैदान छोड़कर चला गया। हेमू का अनुसरण करते हुए बाक़ी बच्चे भी धीरे-धीरे वहाँ से खिसकने लगे थे। सुबेदार जी को आभास हो चला था कि रामू के आने से बच्चों में ख़ुशी का माहौल नहीं था। 


सुबेदार जी को थोड़ी निराशा तो हुई लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। सुबेदार जी और रामू बहुत देर तक ख़ूब बातें करते रहे। सुबेदार जी को मालूम हुआ कि रामू पाँचवीं कक्षा का छात्र था जो कभी स्कूल जाता तो कभी नहीं जाता था। सुबेदार जी के अथक प्रयासों के बाद गाँव के बच्चे अब रामू के साथ खेलने के लिए तैयार थे।


समय अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ता रहा और ईधर सुबेदार जी की छत्र छाया में गाँव के बच्चों की आंखों की चमक भी बढ़ने लगी। उनके माता पिता की सोच में भी क्रांतिकारी परिवर्तन ने अपना एक मुकाम हासिल कर लिया था। सुबेदार जी की लगन और प्रतिबद्धता की चर्चा अब तक दूर-दूर तक होने लगी थी। 


आस पास के गाँव वाले भी सुबेदार जी के प्रयासों की सराहना करने लगे थे। अब तक सुबेदार जी गुरुजी के नाम से हर तरफ़ काफ़ी लोकप्रिय हो चुके थे। रामू भी अब नियमित रूप से स्कूल जाने लगा था। ग्राम प्रधान दुर्जन सिंह इस बात से बहुत ख़फ़ा था कि जो बच्चे कल तक कच्ची अवैध शराब के धंधे में उसके साथ काम करते थे अब सुबेदार जी की शाम की पाठशाला में नज़र आते थे। 


शाम का वक़्त था, सूरज पहाड़ों की ढलान से धीरे-धीरे फिसल रहा था, रामगंगा नदी की कल-कल बहती लहरें कानों में मधुर रस घोल रही थी, मतवाली पौन के ठंडे झोंके पहाड़ों की बर्फीली चोटियों के गालों को गुदगुदा रहे थे। कुछ इस तरह की थी पहाड़ की वादियों की सुहानी शाम। ढलती गुलाबी सांझ का आनंद लेते हुए सुबेदार साहब अपने एक साथी के साथ बाज़ार में चाय की दुकान में चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे। तभी वहाँ से गुजरते हुए ग्राम प्रधान दुर्जन सिंह की नज़र जब सुबेदार साहब पर पड़ी तो उनके सामने वाली कुर्सी पर बैठते हुए बोला, "सूबेदार, तुम जो कुछ भी कर रहे हो ठीक नहीं कर रहे।" 


सूबेदार, "दादा मैं कुछ समझा नहीं। आप क्या कहना चाहते हैं। मैंने ऐसा क्या कर दिया जो तुमको ठीक नहीं लग रहा है।" 


दुर्जन सिंह, "सूबेदार जैसे तुम कुछ जानते ही नहीं कि मैं क्या कहना चहता हूँ।" 


सुबेदार, "दादा, ज़रा खुलकर बताओ आख़िर बात क्या है जो तुम इतने ख़फ़ा हो।" 


दुर्जन सिंह, "मेरी बात ध्यान से सुनो। सुबेदार सुना है तुम बच्चों को अपने साथ मिलाकर मेरे खिलाफ़ भड़का रहे हो। जितनी जल्दी हो सके ये सब बंद करो। तुम्हारे कारण गाँव के बच्चे अब मेरे साथ काम नहीं करते। मेरा सारा धंधा चौपट हो रहा है।" 


चेहरे पर हल्की मुस्कान लाते हुए सुबेदार जी ने व्यंग कसा, "दादा तो एक काम करो। कच्ची शराब का अवैध धंधा बंद करके तुम भी मेरे काम में हाथ बंटाओ। सच कहता हूँ बहुत आनंद आयेगा।" 


दुर्जन सिंह, "सुबेदार, तुमको ये मेरी पहली और अंतिम चेतावनी है। मेरे रास्ते से हट जाओ वरना बहुत पछताना पड़ेगा। तुम जानते नहीं मेरी पहुँच कहाँ तक है।" 


सुबेदार, "दादा मैं आपका सम्मान करता हूँ लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं तुम कुछ भी बोलते रहो और मैं चुपचाप सुनता रहूँ। बच्चों का सही मार्गदर्शन करने की जो जिम्मेदारी मैंने अपने फ़ौजी कंधों पर उठा रखी है मेरी अंतिम सांस तक जारी रहेगी। फ़ौजी हूँ कायर नहीं। फौज़ में रहकर चुनौतियों से खेलने का हुनर भी सीखा है और हाँ, तुम भी मेरी एक बात कान खोलकर सुन लो। आज पहली बार तुम्हारा सामना एक फ़ौजी शेर से हुआ है। वक़्त का इन्तज़ार करो फिर देखो क्या-क्या होता है।" 


सुबेदार जी का गुस्सा देखकर दुर्जन सिंह तमतमाता चेहरा लेकर वहाँ से बड़बड़ाते हुए निकल गया। सुबेदार जी को कभी धन के लालच से तो कभी अपने राजनीतिक रसूख के बल से डराने धमकाने के बहुत जतन किए लेकिन जब सारे प्रयास असफल हो गए तो एक दिन अंधेरे का लाभ उठाकर अपने गुंडों से उन पर लाठी डंडों से हमला करवा दिया। इस हमले में सुबेदार जी के सर में चोट ज़रूर आई थी लेकिन दो गुंडों की ऐसी धुलाई करी कि गाँव तो क्या बाज़ार के आस पास भी फिर कभी उनका साया भी नज़र नहीं आया। धीरे-धीरे दुर्जन सिंह की दहशत का सूरज अस्त होने लगा था। 


रामू अब सुबेदार जी के घर में रहता था। सुबेदार जी की पत्नी भगवती उसका उतना ही ख़्याल रखती थी जितना अपने बेटे श्याम का। सुबेदार जी रामू के अन्दर हो रहे परिवर्तन से बहुत खुश थे। रामू अपनी उम्र से पहले ही परिपक्व हो रहा था। रामू की विलक्षण प्रतिभा व निर्णय लेने की क्षमता से अति प्रभावित थे। अपनी बुद्धिमता, निर्भीकता व अनुशासित आचरण के द्वारा रामू अब सबकी आंखों का तारा बन चुका था। सभी उसकी तारीफ़ करते नहीं थकते थे। 


सुबेदार जी को अपने लक्ष्य पर चलते हुए लगभग पांच साल पूरे हो चुके थे। उनके अथक व अनवरत प्रयासों का ही कमाल था कि अब तक आस पास के गांवों के बीस से भी अधिक बच्चे फौज़ में भर्ती हो चुके थे। सुबेदार जी का लड़का श्याम और रामू बहुत गहरे मित्र बन चुके थे। दोनों ने दसवीं की परीक्षा में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होकर विज्ञान विषय में दाखिला लिया। 


सुबेदार जी की ही प्रेरणा से दोनों के अंदर माँ भारती की सेवा करने का जोश कुलांचें भरने लगा था। दोनों का अगला लक्ष्य एनडीए की परीक्षा देकर भारतीय सेना में अधिकारी बनना था। जिस पल का बेसब्री से इन्तज़ार था वह पल आ ही गया। श्याम और रामू पहले ही प्रयास में एनडीए की परीक्षा में सफल होने में कामयाब हुए। 


भारतीय सेना के ट्रेनिंग सेंटर खड़कवासला में आज श्याम और रामू की ट्रेनिंग का अंतिम दिन था। पासिंग आउट परेड के बाद दोनों के कंधों पर सितारे चमक रहे थे। आज दोनों को भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट बनने का अद्भुत गौरव प्राप्त हुआ था। शाम के वक़्त जब दोनों कैंटीन में चाय का आनंद ले रहे थे तो रामू ने श्याम से कहा, "भाई, अब जब छुट्टियों में कुछ दिनों के लिए घर जायेंगे तो मैं सोचता हूँ कि घर पर बिना सूचना दिए जाएंगे। घरवालों को एक सरप्राइज़ देते हैं। तेरा क्या विचार है।" 


श्याम, "भाई क्या दमदार आइडिया है यार तेरा। ये तो मैंने सोचा ही नहीं। आज तूने एक बार फिर बाजी मार ली मेरे भाई।" 


शाम का वक़्त था, ठंडी-ठंडी हवा सबका मन मोह रही थी, सूरज क्षितिज की ओर क़दम बढ़ा रहा था। चौखुटिया बाज़ार में आस पास के गाँव के लोगों के आने से बहुत रौनक थी। सुबेदार जी भी अपनी पत्नी भगवती की दवा लेने बाज़ार आए हुए थे। उसी समय फौज़ के दो अधिकारियों की नज़र सुबेदार जी पर टिक गई। भारतीय सेना के ये दो अधिकारी कोई और नहीं श्याम और रामू थे जो छुट्टियों में अपने गाँव बाखली आ रहे थे। 


रामू ने श्याम के कंधे पर हाथ रखकर कुछ कहा और श्याम उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया। गुप्त योजना के तहत दोनों ही सुबेदार जी के सामने से गुजरे। अपने बाज़ार में दो फ़ौजी अधिकारी देखकर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। सुबेदार जी ने केमिस्ट से पूछा कि ये भीड़ किसको देख रही थी। केमिस्ट ने जवाब दिया कि अभी-अभी दो फ़ौजी अधिकारी यहाँ से गुजरे हैं लोग उन्हीं को देख रहे थे। सुबेदार जी ने दवा ली और गाँव की ओर क़दम बढ़ाने लगे। 


सुबेदार जी जैसे ही भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़े श्याम और रामू ने फ़ौजी स्टाइल में कड़कदार सैल्यूट मारकर उनका अभिवादन किया। सुबेदार जी को अभी भी यक़ीन नहीं हो रहा था ये श्याम और रामू ही थे। दोनों ने उनके चरण स्पर्श किए और सुबेदार जी ने दोनों को गले लगा लिया। आज सुबेदार जी की आंखों से ख़ुशी और गर्व के मोती छलक रहे थे। 


उनकी कड़ी मेहनत का ही करिश्मा था कि आज उनके ही गाँव से निकले भारतीय सेना के दो अधिकारी उनकी आंखों के सामने खड़े थे। किसी ने सच ही कहा है कि अगर हौसलों की उड़ान आसमान से भी ऊंची हो तो आसमान भी बाहें फैलाकर स्वागत करता है। 


(सभी प्रिय पाठकों से निवेदन है कि कहानी पढ़ने के बाद अपने कमेंट अवश्य देने का कष्ट करें)

 



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