कॉलेज का पहला दिन
कॉलेज का पहला दिन
प्रभात बेला खिलने को थी, चिड़ियों की चहचहाहट और कोयल की मधुर आवाज़ जब कानों में गूंजी तो उर्वशी जाग उठी। रात में देरी से सोने के कारण नींद अभी तक अधूरी थी। रात भर इसी ख़्याल में खोई थी कि कॉलेज का पहला दिन कैसा होगा। सोचते-सोचते न जाने फिर से कब आँख लग गई थी।
माँ अंजली सिन्हा ने जब देखा कि उर्वशी अभी तक गहरी नींद में पसरी हुई थी तो सोचा कि स्कूल तो अब जाना नहीं तो उसे थोड़ी देर और सो लेने दो। लेकिन तभी ध्यान आया कि आज तो कॉलेज जाने का पहला दिन है कि तभी*****
अंजली, "उर्वशी बेटा, चलो जल्दी उठो, दिन चढ़ आया है।"
उर्वशी, "मम्मी, क्यों परेशान करती हो। स्कूल से अभी-अभी तो मुश्किल से आज़ादी मिली है और तुम कहती हो कि जल्दी उठो।"
अंजली, "बेटा स्कूल से छुट्टी मिली है, कॉलेज से नहीं। आज कॉलेज का तेरा पहला दिन है। कॉलेज भी तो जाना हैं तुझे, कुछ याद है या नहीं!"
कॉलेज का नाम सुनते ही उर्वशी हड़बड़ाहट में उठी और सामने दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ़ देखकर बुदबुदाकर ख़ुद से कहती है, "अरे उर्वशी, सुबह के आठ बज गए हैं और तू है कि अभी तक कुंभकरण की नींद सो रही है।"
बिस्तर का त्याग करके फटाफट उठी और स्नान करने चली गई। नहा धोकर बाहर निकली तो माँ अंजली ने टेबल पर पहले से ही चाय नाश्ता तैयार करके रखा था। इसी बीच मन में ख़्याल आया कि आख़िर वह दिन आ ही गया। १६ जुलाई का दिन, जब दिल्ली विश्वविद्यालय और उसके महाविद्यालय गर्मियों की छुट्टियों के बाद खुल रहे थे।
बात उन दिनों की है जब उर्वशी स्कूल में पढ़ती थी, महाविद्यालयों (कॉलेजों) में पढऩे वाले छात्र छात्राओं को बड़ी उत्सुकता और ग़ौर से देखा करती थी। कई बार सोचती थी कि वह दिन कब आएगा, जब वह भी मनचाहे कपड़े पहन, किताबों के भारी बस्ते के बोझ से छुटकारा पाकर केवल हाथ लटकाए हुए ही महाविद्यालय की ओर क़दम बढ़ाएगी।
बारहवीं तक एकरसता व नीरसता का स्कूली जीवन जीते-जीते उसका मन पूरी तरह से उकता गया था। दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक प्रसिद्ध महाविद्यालय में पापा के दवाब में Eco. Hon. में प्रवेश भी मिल गया। सो वह स्कूल के सीमित, घुटन भरे व परंपरागत वातावरण से निकल कॉलेज के खुले और स्वतंत्र वातावरण में जाने की तैयारी करने लगी। वर्दी से अब छुटकारा मिल गया था।
उर्वशी ने स्कूल की यूनिफॉर्म को ठेंगा दिखाते हुए अपने मन पसन्द कपड़े पहने, बाल संवारे और कई बार अपना चेहरा दर्पण में निहारा। सच! उर्वशी को आज अपना चेहरा पहले से कहीं अधिक सुंदर, आकर्षक और रूपवान लग रहा था। आज उसे पहली बार अपनी आंखों में आत्म विश्वास का समंदर छलकने का अनुभव हो रहा था। सालों से मन में हिरनी की भांति फुदकती उसकी अभिलाषा आज साकार होने जो जा रही थी।
कॉलेज में पहले ही दिन इतना कुछ देख लेने की इच्छा उर्वशी के मन में जाग उठी थी। समझ ही नहीं आ रहा था कि पहले दिन क्या करूँ? कैसे किसी से बात करने की पहल करूं? चेहरे पर हर किसी को देखकर वही चित-परिचित अंदाज़ वाली हल्की-सी मुस्कान लेकिन बात करने को मन होते हुए भी मन में एक हिचकिचाहट बराबर बनी हुई थी।
वक्त निकला जा रहा था और उर्वशी के मन में नाना प्रकार के सवाल ज्यों के त्यों तन कर खड़े थे। पहली बार जीवन में ऐसी कशमकश व दुविधा का अनुभव हो रहा था, जिसमें हिचकिचाहट के साथ-साथ उत्सुकता बराबर मात्रा में मन को बेचैन कर रही थी। अनेक प्रकार के भाव उर्वशी के अन्तर्मन को आन्दोलित व उत्तेजित कर रहे थे।
जैसे ही उर्वशी कॉलेज के मुख्य द्वार पर पहुँची तो प्रथम अनुभव ये हुआ कि वहाँ का वातावरण व परिवेश काफ़ी ताज़गी भरा था। चारों तरफ़ नए जोश और नई ऊर्जा के सरोवर में नहाए लडक़े-लड़कियों की भीड़-सी उमड़ रही थी। उनकी हंसी और ठहाके कॉलेज के प्रांगण को गुंजायमान कर रहे थे जो इशारा कर रहा था कि किसी देश का कैशोर्य यौवन की तरफ़ क़दम बढ़ाता कुलांचें भर रहा था।
उसने दूर से ही देखा कि कुछ छात्र बड़े जोश और उत्साह से सरगर्मी से आपस में गले मिल रहे थे। तो कुछ दूर से ही हाथ हिलाकर 'हैलो-हाय' कह रहे थे। मुस्कानों से सभी के चेहरे गुलाब की नव पंखुड़ियों की भांति खिलखिला रहे थे। आज की छात्रांए भी भला किसीसे कैसे पीछे रह सकती थी। उन्हें पास से गुजरते देख छात्रों के दल मज़ाक में चहकते हुए पूछ उठते 'यह चिडिय़ों का झुंड किधर उड़ान भर रहा है? जवाब में छात्रांए भी कह उठतीं' जिधर कौए ओर बाज जैसे झपट्टमार परिंदे उड़ान भरने से घबराते हों'। ये सुनकर वातावरण ठहाकों और खिलखिलाहट से गूंज उठता था।
बहुत देर से उर्वशी देख रही थी कि वरिष्ठ छात्र-छात्रांए नए आने वाले छात्रों की रैगिंग का जाल पहले से ही बिछाए चारों तरफ़ मंडरा रहे थे। नए आने वालों को वे लोग झट ताड़ लेते थे और फिर 'नया पंछी' कहकर उनमें कुछ इशारेबाजी होने लगती। बस, कुछ ही क्षण बाद वह नवागंतुक घिर जाता और पता न चल पाता कि उसके साथ फिर क्या हुआ?
ये सब देखकर उर्वशी के मन में भी एक अनजाना-सा डर पैदा हो गया था। हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि गेट के भीतर कैसे प्रवेश किया जाए। हालांकि उर्वशी भी एक निडर और जिद्दी टाइप की लड़की थी लेकिन इतने सारे सीनियर लड़कियों के सामने वह अकेली जान इनका मुकाबला कैसे कर सकती थी। एक बार तो ख़्याल आया कि वापिस लौटा जाए फिर सोचा, आख़िर कब तक बची रह सकती थी। ये विचार भी मन में कौंध रहा था कि जब इसी कॉलेज में इन्हीं लड़कियों के साथ तीन साल गुजारने हैं तो आज या कल भीतर तो जाना ही होगा। अतः जो कुछ भी होना है, क्यों न आज ही भुगत लूं।
अंततोगत्वा क़दम आगे बढ़ाए, पर सामने छात्र-छात्राओं की टोलियों में नए सिरे से घिरे छात्र-छात्राओं को देखकर क़दम फिर रुक गए। तभी गेट के बाहर आकर वरिष्ठ छात्राओं की एक टोली ने उसे घेर लिया। उनमें से एक पहलवान-सी दिखने वाली लड़की ने ज़रा रोबीले स्वर में कहा, "क्यों री हुस्न की परी। देख रही हूँ, कब से यहाँ से खड़े-खड़े लड़कों को ताड़ रही है। ये सब क्या चल रहा है?"
"नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं।" कहकर उर्वशी ने विरोध करना चाहा तो उस लड़की ने फिर कहा, "तो इतनी देर से यहाँ खड़े-खड़े क्या कर रही है?" अब उर्वशी ने सच बताना ही उचित समझा और कहा, "कॉलेज में नया दाखिला हुआ है।" टोली की सरदार यह सुनकर बीच में भड़क गई, "अभी नई-नई मुर्गी है।" कहकर उसने साथियों की तरफ़ देखा और फिर घूरते हुए कहा, "तो अन्दर क्यों नहीं आती?"
उसके बाद उर्वशी को लेकर सीनियर लड़कियों की टोली महाविद्यालय भवन के पीछे वाले खेल के मैदान में पहुँची जहाँ पहले से ही उर्वशी जैसी लाचार कुछ लड़कियाँ मैदान का चक्कर लगा रही थी। उर्वशी को भी ऐसा ही करने का आदेश सुना दिया गया था।
उर्वशी अपने स्कूल की हेड गर्ल रह चुकी थी और कबड्डी टीम की कैप्टेन भी। उसकी कप्तानी में स्कूल ने कई ट्राफियाँ भी जीती थी। स्कूल में सभी छात्र उसे आदर की नज़र से देखते थे। उसकी एक खासियत थी कि अगर अपनी जिद्द पर आ जाए तो सामने वाले के हौंसले पस्त हो जाएँ। मगर अपना असली रंग दिखाने से पहले वह कॉलेज में होने वाली रैगिंग की चश्मदीद गवाह बनना चाहती थी।
"अगर मैदान का चक्कर न लगाऊँ तो!" अपने गुस्सैल और जिद्दी स्वभाव को शांत करते हुए प्यार भरे स्वर में उसने कहा।
टोली की लीडर, "तुम जानती नहीं हम इस कॉलेज की सबस
े सीनियर छात्राएँ हैं। जो कहा है करना तो पड़ेगा। तुम्हारी मनमानी यहाँ चलने वाली नहीं। समझी क्या।"
उर्वशी, "ठीक है बाबा, मैं तैयार हूँ। लेकिन मेरी भी एक शर्त है कि मेरे साथ तुम सबको भी चक्कर लगाने होंगे, वह भी पूरे पांच चक्कर। बोलो मंजूर है।"
टोली की लीडर, "लगता है छोकरी ऐसे नहीं मानेगी। कुछ करना पड़ेगा।" उर्वशी के पास आकर जैसे ही उसके बालों को पकड़ने का प्रयास किया, उर्वशी ने उसका हाथ पकड़ कर झटक दिया और ज़ोर से चिल्लाकर कहा, "खबरदार! अगर किसी ने भी एक क़दम आगे बढ़ाया तो।"
मैदान के एक कोने में बेंच पर बैठी हुई एक लड़की बहुत देर से ये सारा तमाशा देख रही थी। उसने जब उर्वशी को चिल्लाते हुए सुना तो उससे रहा नहीं गया। उसी क्षण गठीले शरीर वाली वह लड़की वहाँ प्रकट होती है। उसने नीले रंग की जींस, सफेद रंग की टी शर्ट और पांवों में सफेद रंग के स्पोर्ट्स जूते पहने हुए थे। उसकी सफेद टी शर्ट के पीछे लिखा था "इंडिया" । शायद राष्ट्रीय स्तर की कोई खिलाड़ी थी।
उसने गुस्सा दिखाते हुए वरिष्ठ छात्राओं से सवाल किया, "बहुत देर से तुम लोगों का ये तमाशा देख रही हूँ। क्यों इस भोली भाली मासूम जान को परेशान कर रही हो? क्या ज़्यादा चर्बी चढ़ आई है?"
तभी टोली की सरगना बोली, "क्या तुझे भी चक्कर लगाने का शौक है?" उस लड़की ने तुरंत अपने दोनों हाथों को तत्परता से हवा में लहराते हुए बॉक्सिंग मुद्रा में लाकर कहा, "मुझे बॉक्सिंग का शौक है, किसी को करनी है क्या!" उसने आगे कहा, "और सुनो, मेरा नाम मोनीदीपा बरुआ है और आसाम से हूँ। भारत की नई जूनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियन।" इस लड़की का विकराल रूप देखकर वह सभी वहाँ से किसी नए शिकार की तलाश में खिसक गए।
मोनीदीपा ने उर्वशी की ओर देखते हुए कहा, "मेरी जान मुझे पहचाना क्या?" पहले तो उर्वशी ने उसे ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा, फिर उछल कर गले लगाते हुए कहा, "मोनी तू यहाँ!" जब उर्वशी को पता चला कि मोनीदीपा ने भी Eco Hons. में ही दाखिला लिया है तो उसके पांव ज़मीं पर नहीं पड़ रहे थे।
उर्वशी, "यार कितनी बदल गई है तू। कभी सोचा भी नहीं था कि अपने बचपन की दोस्त मोनी से इस तरह मुलाकात होगी। यार तेरा बॉक्सिंग एक्शन देखकर तो कॉलेज की सीनियर लड़कियों की सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई। अब देखना कॉलेज में तीन साल शान से कटेंगे।"
बचपन की दोनों सहेलियाँ सालों बाद एक दूसरे को फिर से पाकर बहुत भावुक हो गई थी। दोनों की आंखों में जैसे सावन की घटाएँ धरा पर उतरने को बेताब थी। आंखों से टपकते आंसू बचपन के सुनहरे लम्हों की याद ताज़ा कर रहे थे। बचपन की यादों को ताज़ा करते हुए दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।
मोनीदीपा, "हाँ यार, तू ठीक कहती है। मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि हम दोनों तीन साल तक एक ही क्लास में होंगे। ऐसा लगता है तक़दीर ने कुछ नया करने के लिए हमें आज फिर से मिलाया है।"
उर्वशी, "मोनी, अच्छा ये तो बता कि बॉक्सिंग का तेरा ये सफ़र कब और कैसे शुरु हुआ?" मोनीदीपा ने अपने बॉक्सर बनने की पूरी कहानी विस्तार से उर्वशी को बताई और फिर दोनों कैंटीन की ओर चल पड़े।
कॉलेज में पहला दिन होने के कारण आज कैंटीन में बहुत चहल पहल थी। कोने में एक टेबल खाली देखकर उर्वशी और मोनीदीपा वहाँ जाकर बैठ गए। उनके पीछे वाली टेबल पर कुछ सीनियर लड़के ठहाके मारकर हंस रहे थे कि तभी उनकी नज़र उर्वशी और मोनीदीपा पर पड़ी। वह समझ गए कि ये दोनों कॉलेज में फ्रेशर्स थे।
इस बीच उन लड़कों को एक शरारत सूझी। वे सब उठकर उर्वशी और मोनीदीपा की टेबल के इर्द गिर्द खड़े हो गए। उनमें से एक लड़के ने वेटर को बुलाकर अपने सभी मित्रों व उर्वशी और मोनीदीपा के खाने का आर्डर दिया और कहा कि इन सबकी पेमेंट इन दोनों मैडम से लेना। इससे पहले कि उर्वशी कुछ बोलती, मोनीदीपा ने इशारा करके उसे चुप रहने की सलाह दी।
थोड़ी देर में वेटर आर्डर किया हुआ सामान देकर चला गया। जब सब खा चुके तो वेटर बिल लाया और मोनीदीपा को थमा दिया। वेटर की ओर देखकर मोनीदीपा ने वेटर से पूछा, "आर्डर किसने दिया था।" वेटर ने उन लड़कों की ओर इशारा करके कहा, "मैडम, जो लड़के उस टेबल पर बैठे हैं।" "तो पेमेंट भी वही करेंगे"। मोनीदीपा ने मुस्कुराकर कहा।
वेटर घबराते हुए बिल लेकर उन लड़कों के पास गया तो उन लड़कों ने उसे डांटकर भगा दिया। जैसे ही मोनीदीपा और उर्वशी कैंटीन से बाहर जाने लगे तो उन लड़कों ने उनका रास्ता रोक कर कहा, "मैडम, पेमेंट किए बिना तुम दोनों यहाँ से बाहर नहीं जा सकती।"
मोनीदीपा, "मगर हमने तो कोई आर्डर दिया ही नहीं तो फिर पेमेंट किस बात की।"
तभी उनमें से एक गठीले शरीर वाला लड़का, जिसका नाम भानू था और दाढ़ी भी थी, रौब झाड़ते हुए बोला, " मैडम, शायद तुम हमें जानती नहीं, हम इस कॉलेज के सबसे सीनियर स्टूडेंट्स हैं। मेरे नाम से ही सारा कॉलेज थर-थर कांपता है। चुपचाप पेमेंट कर दो वरना...
गुस्से में झल्लाते हुए उर्वशी, "वरना क्या? बोलो, वरना क्या? सीनियर छात्र हो तो क्या! भाड़ में जाओ हमारी बला से।"
मोनीदीपा, "हमें लड़की समझकर धमकी दे रहे हो। नहीं करेंगे पेमेंट। जाओ जो करना है कर लो।"
विवाद जब ज़्यादा बढ़ गया तो भानू नाम के लड़के ने उर्वशी का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने की कोशिश की। इससे पहले कि वह लड़का कोई बदतमीजी करता, मोनीदीपा ने अपना बैग सामने लगी टेबल पर झटके से फेंका और बहुत ही मुस्तैदी से उस लड़के के चेहरे पर एक झन्नाटेदार पंच मारा। पंच लगते ही लड़के के मुंह से खून बहने लगा। मोनीदीपा का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वह दूसरा पंच मारने ही वाली थी कि उर्वशी ने उसका दाहिना हाथ पकड़ कर कहा, "मोनी, आज के लिए बस इतना ही।"
मोनीदीपा का गुस्सा अभी शांत भी नहीं हुआ था कि भानू के साथी ने मोनीदीपा का हाथ पकड़कर मरोड़ना चाहा लेकिन तभी उर्वशी ने उसे धक्का दे कर अलग कर दिया। इसके बाद शेरनी की दहाड़ मारते हुए मोनीदीपा ने उस लड़के के चेहरे पर मुक्कों की बौछार लगा दी। वहाँ खड़े किसी भी लड़के में इतना साहस नहीं था कि मोनीदीपा को रोक सके। मोनीदीपा अभी भी मुक्कों की लगातार बौछार कर रही थी। जब उर्वशी को लगा कि बहुत हो गया तो उसने मोनीदीपा का हाथ रोक लिया।
फिर उन लड़कों को धमकाते उर्वशी हुए बोली, "हम कॉलेज में नए ज़रूर हैं लेकिन तुम जैसे कायर नहीं। रैगिंग के नाम पर नई लड़कियों से बद्तमीजी करते हुए शर्म नहीं आती। जिससे तुमने पंगा लिया है ये कोई और नहीं बल्कि भारत की नई नेशनल बॉक्सिंग चैम्पियन मोनीदीपा बरुआ है।"
फिर मोनीदीपा ने उन लड़कों को घूरते हुए कहा, "हम लड़कियाँ ज़रूर हैं लेकिन अपनी अस्मिता और सम्मान की रक्षा करना जानते हैं। आज़ की नारी तुम जैसे गुंडे मवालियों से मुकाबला करने में सक्षम हैं और हाँ, आज़ के बाद अगर किसी लड़की के साथ फिर ऐसी घिनौनी हरकत की तो समझो तुम्हारी खैर नहीं।"
कैंटीन में बैठी हुई सभी लड़कियाँ मोनीदीपा और उर्वशी का ये रौद्र रूप देखकर अचंभित थे लेकिन मन ही मन खुश भी थे कि कोई तो है जिसने इन गुंडों को आज़ सबक सिखाया है। सबने मोनीदीपा को चारों ओर से घेर लिया और उसके साहस और बहादुरी की तारीफ़ करने लगे।