यह कैसा इंसाफ
यह कैसा इंसाफ
मौसम में आक्रामक सर्दी का प्रकोप दस्तक दे चुका था। कोहरे की खून जमा देने वाली भयंकर सर्द रात में छेनू फुटपाथ पर पड़ा खुद को एक पतले से कम्बल में लपेट सोने की कोशिश कर रहा था। शीत लहरें उसके शरीर को बेधती हुई रोम छिद्रों से प्रवेश कर उसकी रूह को भी कंपित- स्पंदित कर रही थी।
सामने वाली जगमग लकदक बिल्डिंग में कितने सुकून से लोग अपनी नरम रेशमी रजाइयों में लिपटे , टी वी देखते, काफी पीते , मूंगफली टूंगते इस शीत का सुखद आनंद ले रहे हैं और वो अपना घर छोड़कर दो पैसे कमाने शहर आया , सामने वाली बिल्डिंग के हर फ्लैट को अपने हाथों के छालों, पसीने, धूप, धूल की परवाह न करके उनको अपने सुघड़ हाथों से सुंदर आकार व मजबूती दे निर्मित किया लेकिन क्या सिला मिला ?सबके घरों को रोशन करने वाले आज स्वयं उसके सिर पर छत तक नहीं।
सर्द हवाओं को रोक पाने के लिए दीवारें तक नहीं!! कोहरे की धुंध में उसे अपना भविष्य ,अपना अस्तित्व अदृश्यमान हो रहा था। अपने रहने को एक छत तक नहीं जुटा पा रहा, कैसे अपने परिवार को घर मुहैया करा पाएगा। उसकी आंखों से आंसू निकले तो लगा कोहरे की सर्द रातों से जमी मन की बर्फ पिघल रही है। उसने अपने कम्बल के ऊपर एक और चादर लपेट ली ,घने कोहरे की --और जिस कुत्ते को वो दुर् दुर् करता रहता था आज पुच पुच कर उसे पास सोने के लिए बुलाया ताकि उसके शरीर की गरमाहट से उसके जम रहे रक्त में कुछ उष्णता आ सके
यह कैसा इंसाफ है तेरा भगवान!!
किसी का जीवन फूलों की शय्या
किसी को नहीं इक छत भी मुहैया
कोई नरम रजाइयों में सोते तन कर
कोई मर जाते फुटपाथ पर जम कर
