इस दीवाली चलो कुछ नया हो जाए
इस दीवाली चलो कुछ नया हो जाए
आज चार साल बाद विदेश से आए बेटा, बहू और पोते, पोतियों से गुप्ता दम्पति का घर रोशन हो गया था । चार सालों से तो दीवाली पर बस वे पूजा भर कर लेते ,न कोई साज सज्जा, न रोशनी, न झालर लड़ियां,न ही कोई पकवान, मिठाई।सच तो है बिना बच्चों के क्या रौनक , त्योहार। वो समझ सकते थे बच्चों के बगैर त्योहार पर तो और भी सूनेपन का एहसास होता है इसलिए इस बार उन्होंने इस दीवाली "कुछ नया" करने की सोची जिससे सही मायने में दीपोत्सव का प्रकाश उज्जवलित कर सकें।
उन्होंने कुछ मिठाइयां,फल, खील बताशे और दियों के अलग-अलग पैकेट बनवाए और सबसे पहले एक ओल्ड एज होम में गए। वहां सभी बुजुर्गों को बच्चों के हाथ से पैकेट दिलवाए ।सभी बुजुर्ग जो कि इस समय परिवार से विरक्त होकर अपने मन की शून्यता के अंधेरों से उदासीन थे , एक सुखद और खुशनुमा एहसास से भर गए।सभी भाव विभोर हो कर नम आंखों से उन्हें भर भर के आशीर्वाद दे रहे थे।
अब वे एक अनाथालय में गए ।उन बच्चों के लिए उन्होंने इन पैकेट्स के साथ ही कुछ पटाखे भी लिए थे ।
अब वहां उन्होंने अपने पोते पोतियों से बच्चों में वो पैकेट बंटवाए। अप्रत्याशित व मनपसंद गिफ्ट पाकर बच्चों की खुशी देखते ही बनती थी।
उन बच्चों के चेहरे की "चमक और खुशी" में उन्हें हजारों दियों से बढ़कर रोशनी प्रतिबिम्बित हुई।आज इस "नई पहल" से उन्होंने सही मायनों में दीवाली का त्योहार सार्थक कर दिया था।