सर्दी की गुनगुनी यादें
सर्दी की गुनगुनी यादें
करीब चालीस वर्ष पहले की बात है। मेरे पापा का शुरू से ही बहुत भावुक और सहृदय स्वभाव के थे।
एक बार सर्दियों के दिनों में एक बिल्ली पता नहीं कहाँ से भीगी कंपकंपाती हुई हमारे आँगन में आ गई । पापा ने उसे ऐसे कंपकंपाते देखा तो तुरंत एक बोरी बिछाकर आँगन में धूप वाले स्थान पर बिठा दिया ।मम्मी से चाय बनवाकर चपटी वाली प्याली में उसे चाय पीने को दी ।
पापा होम्योपैथी किताबें पढ़कर कुछ हौम्योपैथिक दवाइयाँ भी अपने बाॅक्स में रखते थे और छोटे मोटे सर्दी जुकाम में हम बच्चों को वही दे देते थे और हम लोग भी मीठी गोली खाने के चक्कर में एक छींक भी आने पर दवाई माँग के खाते थे।
उन्होंने बिल्ली को भी वही दवा खाने को दी।
इतनी सब सेवा के बाद वो अब काफी बेहतर लग रही थी। कँपकँपाना भी बंद हो गया था फिर पता नहीं किस समय वो वहाँ से चली गई लेकिन कहते हैं ना कि जीवों पशुओं में भी हम इंसानों की तरह बल्कि उससे ज्यादा भावनाओं और प्यार को समझने की क्षमता होती है !!यह सच है । जीवों के प्रति उदारता का एहसास उसे हमारे घर में हो गया था इसलिए हमारे आँगन के पास ही बनी कोठरी में पता नहीं कब उसने अपने तीन बच्चों को जन्म दिया और जब भी वो अपनी भूख मिटाने घर से निकलती वह निश्चिंत रहती अपनी बच्चों की सुरक्षा के लिए ।
वह तो निश्चिंत हो कर चली जाती लेकिन उसके छोटे छोटे छौने हमारे घर बरामदे को अपने बाप दादा की रियासत समझ कर बेखौफ टहलते घूमते। लेकिन मम्मी की मुसीबत आ जाती ।हम बच्चे तो उस के नन्हे रूई जैसे सफेद मुलायम बच्चों को साथ खेल कर खुश होते लेकिन उनके जगह जगह सू सू पाॅटी करने की वजह से मम्मी बहुत परेशान थीं ।कभी कभी तो वो बेड के नीचे, सोफे के नीचे जाकर गन्दा कर आते और वहाँ से साफ करना तो नामुमकिन सा लगता ।इसके अलावा एक और समस्या थी क्यों कि हमारा घर ग्राउन्ड फ्लोर पर था और अब की तरह दरवाजे भी हरदम बंद नहीं रहते थे तो बिल्ली के बच्चों की गंध पाकर कभी भी कोई कुत्ता आँगन में अचानक घुस आता और झपट पड़ता उन पर तो अब हर समय उनकी देखरेख और चौकसी भी करनी पड़ती ।
बिना मतलब का काम बढ़ गया था ।बिल्ली महारानी तो कभी कभी आकर दूध पिलाती लेकिन बच्चों को चीं पीं करने पर हममें से कोई भी प्लेट में उनको दूध पिलाने हाजिर रहता
इतनी परेशानियों के कारण मम्मी पापा को सुनाते हुए कहती" क्या मुसीबत मोल ले ली ।एक तो उसको सर्दी से बचाया और अब दिन रात का चैन नहीं मुझे ।आ बैल मुझे मार !!! बैल को बुलाया तो तुमने और सींग मुझे झेलने पड़ रहे हैं ।"
इस बात को लगभग चालीस साल गुजर गए हैं लेकिन वर्ष दर वर्ष उसके मादा वंशज आज भी हमारे घर को "निशुल्क ,धर्मार्थ,सब सुविधाओं से युक्त प्रसूति गृह" समझकर अपने बच्चों की डिलीवरी यहीं करतीं हैं और फिर वही सब तामझाम करना पड़ता है मम्मी को। वो बड़बड़ाती भी रहती हैं और सेवा टहल भी करती रहतीं हैं उनकी।
