नए साल का तोहफा
नए साल का तोहफा
हर साल की तरह रजत और नैना इस बार भी फुटपाथ पर रूह को बेधती आक्रामक शीत लहरों से अपनी जिजीविषा के लिए संघर्षरत लोगों को कम्बल बांट रहे थे।जब करीब ६० साल की बुढ़िया ,जो अलाव की बुझती सेंक के आगे कंपकंपाती अपनी देह को कुछ देर और जानलेवा सर्द हवाओं से से बचाने की कोशिश इस तरह कर रही थी मानो उस तपिश को सांसों के साथ अपनी हड्डियों में सोख लेना चाह रही हो, उसे वे कम्बल देने लगे तो पैर पकड़ कर फफक पड़ी "बेटा ये कम्बल मेरे जीर्ण हो चुके शरीर को इस खून जमा देने वाली सर्दी से बचा पाने में समर्थ नहीं है। कोई भी टूटी फूटी खपरैल के नीचे ही सही मुझे सिर छुपाने का आश्रय दे दो ,मैं तुम्हारे घर का सारा काम कर दूंगी बिना किसी पगार के ,दो रोटी दे देना बस।"उसकी इतनी कितना अनुनय सुन दोनों का दिल पसीज गया।
इन दोनों ने अपने घर के पीछे खाली जगह पर कुछ आर्गेनिक सब्ज़ियां,फल ,फूल लगा रखे थे । बस एक दिक्कत थी कि कभी बन्दर ,कभी मोहल्ले के शरारती बच्चे चारदीवारी से फांद कर सब उजाड़ देते थे ।एक स्टोर रूम को साफ करा के बुढ़िया के रहने को जगह बना दी गई।उसका काम बस इतना था कि आराम से धूप सेंकते हुए बस डंडा हाथ में रख पौधों की रखवाली करना ।नए साल का इससे अच्छा गिफ्ट क्या हो सकता था।बुढ़िया उनको ढेरों आशीर्वाद दे रही थी।
