एक पाती हिन्दी के नाम
एक पाती हिन्दी के नाम
मेरी प्रिय हिन्दी !!
तुम्हारी कुशलक्षेम का सुखद समाचार नहीं मिलता आजकल। सुना है अपने ही घर में अपनी अवमानना से कुंठित होकर तुम अवसाद से ग्रसित हो गई हो । हो भी क्यों ना!! "मातृभाषा" जैसी गरिमामयी उपाधि से अलंकृत करके तुम्हें औपचारिक रूप से तो प्रतिष्ठित पद पर आसीन कर दिया गया लेकिन वास्तविकता में तो
,शैक्षणिक, प्रशैक्षणिक संस्थानों ,व्यावसायिक या व्यवहारिक प्रबंधन के अधिकांशतः अधिकार तुम्हारी प्रतिद्वंद्वी अंग्रेजी को ही सौंप दिए गए हैं जिससे तुम्हारा अवसाद ग्रसित हो जाना स्वाभाविक ही है।
भारतीय संस्कृति, भारतीय साहित्य और रामायण- गीता जैसे महाग्रंथों के महात्म्य के समक्ष आज पाश्चात्य संस्कृति भी नतमस्तक हो रही है मगर हम "अपनी हिन्दी" की अवहेलना कर पाश्चात्यीकरण के अनुयायी हो रहे हैं ।
आजकल लेकिन फिर तुम्हारी जयजयकार हो रही है ।मीडिया हो या लेखन ,गोष्ठी हो या वार्ता ,तुम्हारे ही महात्म्य का महिमामंडन किया जा रहा है आखिर क्यों न हो "हिन्दी दिवस" जो आ रहा है तो एक सप्ताह या
एक पखवाड़े तुम्हारा "जयघोष" कर तुम्हें "सम्मानित" कर अपने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली जाएगी और फिर वही सब वैसे ही --
अंग्रेजी पटरानी बन कर रही राज
कार्यालयों, संस्थानों, स्कूलों में
अपने घर की रानी भटक रही गली ,सड़कों, मोहल्लों में
कहने को तो कहते हैं हिन्दी को राष्ट्र की बिन्दी
हमने ही कर रखी है लेकिन इसकी गरिमा की चिन्दी
लेकिन प्रिय हिन्दी!! निराश न हो , एक सुखद बदलाव का आगाज हो रहा है । धीरे धीरे समाज में स्वभाषा के प्रति नवचेतना का प्रस्फुटन हो रहा है , अपनी भाषा के प्रति समाज में सकारात्मक जाग्रति ऊर्जस्वित हो रही है । उससे तुम्हारी अवगुन्ठित प्रतिष्ठा के पुनः उज्ज्वलित होने की पर्याप्त संभावनाएं दृष्टिगोचर हो रहीं हैं ।
तुम्हारे आशातीत स्वर्णिम भविष्य के लिए हमारी बहुत बहुत शुभकामनाएं
और हमारी तरफ से तुम्हें हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं
तुम्हारी शुभाकांक्षी--पूनम