अब आई याद !!!
अब आई याद !!!
#विषय--घुटन
आभास जब छोटा था तभी पिता गाँव में आए सन्यासियों की टोली के साथ बिना बताए लापता हो गए थे ।उनका खेती बाड़ी में मन नहीं लगता था न ही पत्नी -बच्चे के प्रति वह अधिक अनुरक्त थे। अपनी जिम्मेदारियों से बचने का उन्हें यह आसान उपाय लगा।
जैसे तैसे बूढ़े दादा और माँ ने उसकी परवरिश की, पढ़ाया लिखाया। बड़ा होकर वह पढ़ाई के साथ साथ खेतीबाड़ी में भी हाथ बँटाता। कुछ समय बाद दादा जी भी नहीं रहे।
आज बीस साल बाद पिता आए गाँव में।"सन्यासी" को पहचान कर सब उनके आगे नतमस्तक हो गए माँ भी।
लेकिन उन्होंने जब आभास को बुलाया तो वह दूर हट गया। उन्होंने कहा बेशक "मैंने मोह माया का त्याग कर दिया है लेकिन फिर भी तुम मेरा अंश हो "
आओ !! आलिंगन करो हमारा। तुम्हारे स्पर्श को ये बाहें व्याकुल हैं !! आभास ने कहा
तब कहाँ था आपका प्यार जब अपने बुजुर्ग बाप , घर ,खेत और मासूम बच्चे को नवविवाहिता के कोमल कंधों पर डालकर चले गए थे? तब आपको हमारी याद नहीं आई? मैंने देखा है अपनी माँ का अकेलापन ,उनकी घुटन ,उनका दिन में तिल तिल खटना और रात को दबा दबा कसकना सिसकना।
मैं अपने लिए तो एक बार आपको माफ कर भी देता लेकिन अपनी माँ के आँसुओं के लिए आपको कभी माफ नहीं करूँगा।
त्याग जिम्मेदारियों से भाग कर संन्यासी हो जाने का नाम नहीं ।
आज अपनी माँ की तपस्या के फलस्वरूप मैं अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ तो अब आपको हमारी याद आ गई!! अब आप आ गए अपने रिश्ते निभाने और अपना अधिकार जताने !!!
त्याग आपने नहीं किया। अपने घुटन, दर्द को दरकिनार कर, सब जिम्मेदारियां निभा कर असली त्याग तो मेरी माँ ने किया है ।वो ही मेरे लिए माँ और वो ही पिता हैं।
