Sonia Chetan kanoongo

Tragedy

5.0  

Sonia Chetan kanoongo

Tragedy

ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी है

ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी है

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ये क्या सुलेखा आज भी खाने में नमक ज्यादा कर दिया, कभी कम कर देती हो, सच है तुम्हें तो खाना बनाना भी नहीं आता, और ये क्या कितनी बार कहा है जब मैं खाना खाने बैठु तब रोटी सेका करो, ठंडी रोटी दे देती हो।

अमूमन ये ताने देखा जाए तो ज्यादातर सास के अपनी बहू के लिए होते है, पर सुलेखा की जिंदगी में रितेश ही सास बन गया था, पति के सुख से ज्यादा सास रूपी तानों से सुलेखा का दिल हर रोज़ छलनी होता था।

जब शादी की बात चल रही थी तो रितेश के आये रिश्ते में सब यही कहते थे कि सुलेखा अच्छे से अपना जीवन जी पाएगी, सास नहीं है, वहाँ तेरा ही राज होगा, जो तू चाहेगी वही होगा, पर मेरा दिल घबराता था, वहाँ कोई महिला नहीं थी, एक रितेश और एक उसके पापा, और मेरा घर तो लोगों से भरा पड़ा था, हर सुख दुख के साथी थे यहाँ, कोई भाभी के रूप में कोई चाची के रूप में, माँ दादी , छोटी बहने सब थे, जिंदगी खुशहाल थी, कभी तन्हा जीवन जिया नहीं, इसीलिए घबराहट होती थी, की कभी जरूरत पड़ी तो मैं किसे अपना दुखड़ा बताऊँगी।

बीती यादों से निकल कर हकीक़त से रूबरू हुई, रितेश पता नहीं शुरू से ही छोटी छोटी बातों में दखलंदाज़ी करते थे, उन्हें लगता था कि कोई नौकरानी आ रही है जिस पर वो सिर्फ हुक्म चलाये। रात को अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए पत्नी जैसा प्यार देते और दिन भर तानों की बरसात, कभी कभी तो हाथ भी उठ जाता था पर वो मेरे गालों तक पहुँच नहीं पाता था, अंदर ही अंदर घुट रही थी मैं, बर्दाश्त की सीमा खत्म हो रही थी, जानी अनजानी ख्वाहिशों के बलि अब चढ़ना मंज़ूर नहीं था, पर क्या करती ये भी समझ के बाहर था।

घर का एक सामान भी इधर से उधर नहीं होना चाहिए, दो बोल प्यार के तो दूर ,कुछ पूछो तो सही जवाब भी नहीं देते थे, ये रोज़ की बात थी, पर इस जिंदगी की सुलेखा ने परिकल्पना भी नहीं की थी।

वक़्त बीतते बीतते वो वक़्त भी आया जब वो माँ बनने की दहलीज पर कदम रखी, पर खुशी के बजाय वो परेशान हो गयी, ऐसे माहौल में सुलेखा अपने बच्चे को जन्म नहीं देना चाहती थी।

रात को जैसे ही रितेश आया ,रोज़ की तरह, दरवाज़ा खोलने में इतनी देर क्यों लगा दी, सारा दिन टी वी देखती रहती है, खून का घूंट पीकर सुलेखा ने अनसुना कर दिया, कोई इंसान ऐसा कैसे हो सकता है, सुलेखा कभी कभी यही सोचती थी।

खाना खाने के बाद सुलेखा ने बहुत हिम्मत कर आज रितेश को हकीक़त से अवगत कराना मुनासिब समझा।

रितेश मैं तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ।

अब रात को तो चैन लेने दो, इतना थका हुआ हूँ मैं, और तुम पंचायत करना चाहती हो।

आपको और मुझे सारी उम्र चैन मिल सके इसीलिए आज मैं ये बात करना चाहती हूँ।

मैं अब और आपके साथ नहीं रह सकती, शायद मैं आपकी इच्छाओं पर खरी नहीं उतर पाई, और अब जब मुझे पता चला है कि मैं माँ बनने वाली हूँ तो शायद ये निर्णय सही भी लगता है, आज तक मैं खुद के लिए तो खड़ी नहीं हो पाई पर मेरे बच्चे को मैं इस माहौल में नहीं लाना चाहती, जहाँ उसका पिता उसकी माँ को महज एक नौकरानी के सिवा कुछ नही समझता, जहाँ उसकी माँ की भावनाओं की कद्र नहीं वहाँ उसकी इच्छाओं की पूर्ति कैसे होगी।

ये सुन रितेश के हाथों से फ़ाइल छूट गयी, ये क्या कह रही हो तुम, इतनी बड़ी बात और तुमने मुझसे छुपाई, तुम ऐसा कैसे कर सकती हो, खुद को समझती क्या हो तुम।

यही इसी वजह से मैं कभी नहीं चाहती कि मेरा बच्चा भी आपके इस व्यवहार से पीड़ित हो। 

तुम्हें क्या लगता है कि अकेले तुम बच्चे को पाल लोगी, तुम अबला हो ये याद रखना, तुम्हें मेरी जरूरत है, मुझे तुम्हारी नहीं, और मेरे बच्चे के लिए आज नहीं तो कल तुम्हें आना ही पड़ेगा।

ये तुम्हारी ग़लतफ़हमी है रितेश, और दोष तुम्हारा नहीं क्योंकि इतने वक़्त से मैंने ही तुम्हारी इस ग़लतफ़हमी को बढ़ने दिया, काश जब पहली बार तुमने मुझसे बदसलूकी की उसी वक़्त मुझे ये कदम उठाना चाहिए था, और ये भी तुम्हारी ग़लतफ़हमी है कि मुझे तुम्हारी जरूरत है, हाँ औरत हूँ पर अबला, नहीं और चुप रही क्योंकि तुम कही खुद की इज़्ज़त करना भी नहीं छोड़ दो।

और सवेरा होते ही सुलेखा घर छोड़ कर चली गयी, ये शायद सुलेखा के लिए आज़ादी की सुबह थी पर रितेश की मुश्किलें इसी सवेरे से शुरू होने वाली थी।

 सुलेखा अभी तक मेरी चाय क्यों नही आई, इतनी आवाज़े लगाने पर भी जब जवाब नहीं मिला तो, रितेश ने बाहर आकर देखा, सभी जगह देखा पर कोई नहीं था।

सामने बाबूजी थे, आपने सुलेखा को देखा है क्या, कहाँ है, क्या सुबह सुबह बाजार निकल गयी।

नहीं बेटा वो तेरे पिंजरा तोड़ कर उड़ गई, काश तूने उसकी कद्र की होती तो आज वो इस तरह घर छोड़ कर नहीं जाती।

अच्छा तो इतना घमंड की घर छोड़ कर चली गयी,जाने दो बाऊजी ,वो क्या समझती है ,ये घर उसके बिना चलेगा नहीं। 

बेटा घर तो उसके आने के बाद ही बसा था, तेरी माँ के चले जाने के बाद ये घर बेजान मकान बन गया था, फिर से घर सुलेखा ने बनाया था, तुझे ममता की छाँव मिलती तो तो तू इतना कठोर ह्रदय का नहीं होता, एक औरत की भावनाओं की कद्र करता, पर तेरी माँ तुझे बचपन मे छोड़ कर चली गयी और मैं रुपये कमाने में व्यस्त हो गया, जिसका नतीजा आज ये निकला कि तूने खुद ने अपनी गृहस्थी पर ग्रहण लगा दिया।

 ये बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी है तेरी की उसे तेरी जरूरत है। एक मर्द कितना भी आगे निकल जाए पर एक मोड़ पर उसे एक औरत ही पूरा करती है, जो माँ बनकर उसे जन्म देती है,लालन पालन करती है,बहन बनकर उसे दोस्त की तरह मदद करती है,और एक पत्नी बनकर उसके अधूरे जीवन को पूरा करती है ,और एक बेटी बनकर उसके बचपन को फिर से जीवंत करती है, काश तू ये बात वक़्त रहते समझ जाता।

आज ये सब सुनकर रितेश की आँखों में नमी तो दिखाई दी, पर शायद अहम उससे ज्यादा बड़ा था।

आप चिंता मत करो बाऊजी मैं सब कर लूँगा, उधर देखा ऑफ़िस के लिए देर हो रही है और सुबह की चाय जो बिस्तर पर ही मिल जाया करती थी, वो अभी पतीली का इंतजार कर रही थी, रितेश ने कदम रसोई की तरफ बढ़ाये, पर जब से सुलेखा आयी थी तो इस और के हिस्से पे नजर भी नहीं पड़ी थी, इतने वक़्त के बाद फिर से वही जिंदगी जीना जैसे भूल गए थे, जैसे तैसे चाय बनी, एक प्याला बाऊजी के लिए और एक खुद के लिए,आज चाय की चुस्की में वो मज़ा नहीं था, पर अभी भी अहम का तड़का हर बेस्वाद चीज़ में स्वाद का अनुभव करा रहा था, देखा घड़ी में 9 बज गए थे, अब तक तो नाश्ता टेबल पर और टिफ़िन तैयार होता था, पर आज तो लग रहा था श्री गणेश होने में वक़्त लग जायेगा।

रितेश ने फ़ोन उठाया और ऑफ़िस में देरी से आने को कहा..

तभी बाऊजी के पास सुलेखा का फोन आया..


सुलेखा बेटा, क्यों चली गयी तुम ऐसे घर छोड़कर, रितेश के कान वही पर थे, बेटा सब अस्त व्यस्त हो गया है।

मुझे माफ़ कर दो बाऊजी पर अब मैं उस घर मे रितेश के साथ नही रह पाऊँगी, मैंने ये बताने को फोन किया है कि आपकी दवाइयाँ बस आज आज की है, रितेश को कह देना की ले आये, वक़्त पर अपनी दवाइयाँ लेना, मैंने फिर से कमला बाई से बात की थी वो आज तो देरी से आएगी पर कल से वक़्त पर आ जायेगी खाना और घर का सारा काम वो कर देगी, रितेश से कह देना की वक़्त पर उसका पेमेंट कर दे। अच्छा प्रणाम बाऊजी फोन रखती हूं।

रितेश का दिल धक धक कर रहा था जैसे दिल को तो कमी महसूस हो रही हो पर ज़ुबान अभी भी अहम के ताले से बंद थी, उसे लगा पिताजी फिर कुछ कहेंगे।

बस इतना बोले कि मेरी दवाइयाँ ले आना, और चले गए। आज रितेश बिना कुछ खाये ही ऑफ़िस निकल गया, पूरा दिन ऑफ़िस में बस सुलेखा के बारे में ही सोच रहा था, पर अभी भी बस गुस्सा ही उसके दिल दिमाग मे दीमक बनकर जम चुका था, तभी घर से फोन आया...

साब जी मैं कमला बाई बोल रही, आपके बाऊजी बाथरुम से गिर गए सर में खून आ रहा है, मैं दवाखाने ले जा रही पास के आप आ जाओ।

समझ नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है, क्योंकि अभी तक सुलेखा बाऊजी का पूरा ध्यान रखती थी, हाँ सुबह सुबह नहाकर आया था तो बाथरूम साफ करना भूल गया था, रोज़ तो याद नहीं आया।

रितेश ने तुरत अस्पताल की तरफ रुख किया, एक बार फोन भी उठाया, सुलेखा को बताने के लिए पर..

डॉ ने बताया कि ज्यादा चोट नहीं लगी है थोड़ा से सर में लगने से खून निकल गया, दवाई लगा दी है, पर बाऊजी इस उम्र में थोड़ा ख़याल रखे हड्डी टूटी तो जुड़ेगी नहीं, रितेश बस जी डॉ कर रहा था, पर बाऊजी ने एक शब्द नहीं बोला जैसे उनकी ख़ामोशी रितेश को कचोट रही हो।

आप चिंता मत करो सब हो जाएगा, हाँ बेटा सब हो जाएगा, तू चिंता मत कर। मैं आज ऑफ़िस से छुट्टी ले लिया हूँ आपका ध्यान रखूंगा।

कब तक छुट्टी लेगा, बहु ने इंतज़ाम कर दिया, ये कमला बाई है ना ये ध्यान रख लेगी। तू ऑफ़िस जा।

रितेश ऑफ़िस चला गया, पर ध्यान तो घर पर ही टिका था, इतने में उसके ऑफ़िस में साथ काम करने वाली राहुल आया, रितेश मैं 15 दिन की छुट्टी पे हूँ।

15 दिन ऐसा क्या हुआ है, ले मिठाई खा मुझे बेटा हुआ है। अब नीता को मेरी जरूरत होगी इसलिए मैं उसके लिए छुट्टी ले रहा हूँ, कुछ दिन पत्नी के नाम, वो इतना कुछ करती है हमारे लिए तो इतना तो बनता है ना बोस।


रितेश याद कर रहा था कि शायद ही उसने कभी सुलेखा के लिए छुट्टी ली हो। घर आया तो देखा कि सुलेखा के माता पिता आये हुए थे, रितेश के पिताजी का हाल चाल पूछने, रितेश ना जाने क्यों उनसे खुद की नज़रें नहीं मिला पा रहा था जैसे कोई पाप किया हो, रितेश ने दोनों के पैर छुए, खुश रहो। अच्छा जी अब हम चलते है, सुलेखा आपकी बहुत चिंता कर रही थी इसलिए हम देखने चले आये, वो इस घर में नहीं आना चाहती, आप अपना ध्यान रखियेगा।

रितेश को इंतजार था कि ये तो कुछ सुनाएंगे,पर किसी ने कुछ नही कहा,

ऐसे लोग किस्मत वालो को मिलते है जिसने उनकी बेटी के साथ बदसलूकी की वही आज तुम्हारे बाऊजी की तबियत पूछने आये।

रितेश के पास कोई जवाब नहीं था। उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। देखते ही देखते 1 महीना गुज़र गया, पोस्ट के जरिये नोटिस आया तलाक़ का, आज उसे देख सच मे रितेश की आँखों में थमा वो आँसू बाहर आया, और वो अपने पिताजी के पैर पकड़ कर बहुत रोया, मुझसे ग़लती हो गई बाऊजी, जाने किस अहम में मैं जी रहा था, मेरी पत्नी मेरा बच्चा मैंने किसी की कद्र नहीं की, कितना सुनाया उसे, कितना सताया, पर उसने एक उफ्फ तक नही की ,और आज उसने अपने बच्चे के लिए इतना बड़ा कदम उठाया, मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर सकता, ना अच्छा बेटा बन पाया ना पति, और अब ईश्वर ने मौका दिया एक अच्छा पिता बनने का तो वो भी मैंने ठोकर मार दी।

कैसे समझाऊँगा मैं उसे, मुझ मे तो उससे नज़रें मिलाने की भी हिम्मत नहीं है।

देर आया सवेर आया तुझे अहसास तो हुआ, जा माफ़ी माँग ले मेरी बहु से उसे घर ले आ, वो इतना बड़ा दिल रखती है कि तुझे माफ़ कर देगी, और एक अच्छा इंसान बन। रितेश ने देर नहीं की जाने में, सुलेखा के घर पहुँचा, सबसे नज़रें नहीं मिला पा रहा था, दीदी जीजाजी आये है नीचे, सुलेखा तुंरत नीचे हॉल में भागी। देखा रितेश हाथ जोड़े खड़ा था, मुझे माफ़ कर दीजिए मैं दोषी हूँ आप सब का बहुत दुःख दिया मैंने आपकी बेटी को और आपने मुझे एक शब्द भी नही कहा, सुलेखा को सामने देख घुटनों पर आ गया रितेश , मुझे माफ़ कर दो सुलेखा, मैं समझ गया कि औरत के बिना एक मर्द का जीवन अधूरा है, तुम्हें मेरी नहीं, मुझे तुम्हारी जरूरत थी, मैं वादा करता हूँ कि आज के बाद एक आँसू तुम्हारी आँखों से नही बहेगा, मैं तुम्हें अपने बच्चे को लेने आया हूँ, अपने घर चलो,वो तुम्हारा घर है, मुझे एक मौका दे दो।

सुलेखा वापस अंदर जाने को मुड़ी। क्या तुम नही चलोगी मेरे साथ, अरे कपड़े पैक करने जा रही हूँ साथ चलने के लिए, अभी आती हूँ,

अरे शुष्मा दामाद जी आये है उनका स्वागत ऐसे करोगी, अच्छे पकवान बनाओ।

सबका ह्र्दय देख आज रितेश खुद को बहुत छोटा महसूस कर रहा था, पर उसने अपनी गृहस्थी को बचा लिया था।

दोस्तों एक मर्द ये भूल जाता है कि वो एक औरत के बिना अधूरा है, उसका अहम हमेशा उससे औरत पर जुर्म कराता है,पर औरत सहनशीलता की मूरत होती है जो लाखों तकलीफ़ सहने के बाद भी पिघल ही जाती है।



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