होली के रंगों पर तुम्हारा हक़ ?
होली के रंगों पर तुम्हारा हक़ ?
खुशी जैसा नाम वैसा काम,
होली का दिन था, और इस फिन का वो होली जाने से हॉली आने तक इंतजार करती थी।
अरे खुशी कहा है, सुबह सुबह कहा चली गयी सुमित्रा खुशी की माँ ने कहा,
तभी आयुष , खुशी का भाई उसकी आवाज आई माँ भूल गयी क्या आज होली है, आज खुशी हाथ नही आने वाली,गयी होगी अपनी टोली के साथ, जब तक घाट घाट का रंग ना लगा लेगी आएगी नही।
बस यही बात रमेश जी , खुशी के पिता को अच्छी नही लगती थी। अच्छे घर की बेटियों के ऐसे लक्षण, कौन शादी करेगा इससे, आवराओ की तरह घूमती रहती हैं।
सुमित्रा देख लेना एक दिन शादी करके आएगी सीधे फिर अपने घर की इज्ज़त बचाती फिरना, कह देता हुँ मेरा कोई रिश्ता नही होगा उससे।
अरे कहा कि बात कहा करते हो।
सुबह की शाम हो गयी, घर और आये सारे मेहमान खुशी के बारे में पूछते पूछते घर की ओर लौट चले।
खुशी तो नदारद थी, तभी दरवाजे की घण्टी बजी, कीर्ति और सुमन, खुशी की पक्की सहेलियां, उन्होंने उसे पकड़ रखा था,
आंटी गलती से खुशी ने भांग का शर्बत पी लिया, वो बेहोश हो गयी।
ये सुनकर आयुष ने खुशी को संभाला, और कमरे में लेटा दिया,
देखो सुमित्रा अपनी बेटी सब नशेड़ी भी हो गयी, कहता हूँ इसका व्याह करदो कोई काण्ड हो उससे पहले, मेरे बाप दादाओं की इज्जत डुबोयेगी ये।
सुमित्रा खामोश थी।
जब खुशी को होश आया तो सबने तहकीकात की,
तो पता चला खुशी की एक सहेली ने जानभुज कर उसे भांग पिलाई।
वैसे खुशी शादी के लायक हो गयी थी पर अभी तक उसकी माँ ने अपने आँचल में उसे छुपा के रख रखा था।
6 महीने ओर बीत गए, तभी खुशी के लिए एक अच्छे परिवार का रिश्ता भी आ गया, वो वैसे भी बहुत सुंदर थी ।कोई भी उसे मना कर ही नही सकता था।
सब कुछ तय हो गया, शादी का वक़्त भी नजदीक आ गया, ससुराल में एक देवर और एक ननद थी।
बहुत ही सुलझा हुआ परिवार था,
विनय ,खुशी का पति, वैसे इतना समय नही मिला था कि दोनों एक दूसरे को अच्छे से जान सके,
अब यो ससुराल में ही पति को जाना जा सकता था।
विदाई में माँ ने बस यही कहा कि अपना बचपन और बचपना यही छोड़कर जा। वहा तू सबकी जिम्मेदारी उठाएगी।
और पिता ने कहा कि मेरी नाक मत कटाना।
जब खुशी विदा होकर जा रही थी तो माँ से मिलने वापस आयी, पिता ओर भाई भी पास में ही थे।
माँ जाते वक्त में आपसे कुछ मांगना चाहती हूं।
ये सुनकर माँ की आँखे भर आयी, बोल मेरी लाडो क्या चाहती है।
तो खुशी ने कहा माँ मेरी जिंदगी में कभी ऐसा पल आ जाये कि मुझे कोई ठिकाना ना मिले तो क्या मुझे आपके घर मे एक कोना दे दोगी उम्रभर के लिए।
आज ये शब्द सुनकर रमेश की आँखे भर आयी। उसने खुशी को गले से लगा लिया,
मुझे माफ़ करदे बेटी, ताउम्र तुझे खुशी ना दे पाया पर नाम जरूर खुशी रख दिया। मेरी संपति पर तेरा बराबर का हक़ है ये वचन है मेरा, कभी ऐसा वक़्त आए तो सोचना मत की क्या करूँ तू सीधे अपने घर पर आना।
ये कहकर रमेश ने अपनी बेटी को विदा किया।
ससुराल में नए लोगो के बीच उसे कुछ वक्त लगा घुलने मिलने में, पर वो तो खुशी थी जो हर किसी को खुशी बंटती ।
अपनी सास को तो माँ बना लिया था उसने, और देवर को तो दोस्त बोलती थी। ननद को कभी कभी चीड़ होती थी, क्योंकि कम ही बहुए होती है जो ससुराल में बेटी बनकर रहती है।
विनय भी धीरे धीरे खुशी के रंग में रंग गया था।
सालभर भी ना बिता की दुःखो का पहाड़ खुशी पर टूटा विनय की एक्सीडेंट में डेथ हो गई। ये गम खुशी को अंदर ही अंदर तोड़ गया।
सब लोग घर मे जैसे हँसना ही भूल गए, खुशी के पिता ने खुशी को वापस घर ले जाने को भी कहा पर खुशी ने जाने से मना कर दिया।
पर अब खुशी मुस्कुराना भूल गयी थी।
ये बात राजीव उसका देवर को अच्छी नही लगती थी।
वो बहुत कोशिश करता था। उसे खुश रखे, संजना जी खुशी की सास भी बहुत कोशिश करती थी कि उसे हर खुशी मिले पर खुशी खुश हो ही नही पाती थी।
होली आने वाली थी। राजीव को याद है खुशी ने पिछली होली में क्या धूम मचाई थी, आज उसने सबको मना लिया था होली खेलने के लिए इस बहाने खुशी भी थोड़ा खुश हो लेगी।
सारा इंतज़ाम होने के बाद राजीव खुशी को कमरे से बाहर लाया। बाहर आंगन में होली की व्यवस्था की गई थी, थोड़े बहुत लोगो को भी बुला लिया था, ताकि रौनक लगे।
जैसे ही खुशी बाहर आई राजीव ने पूरा की पूरा उसे रंगों से भिगो दिया।
ये देख कर खुशी को वो पहले वाले दिन याद आ गए और एक हल्की मुस्कुराहट उसके चेहरे पर बिखर गई।
सभी घरवालों को उसके मुस्कुराते चेहरे को देखकर बहुत खुशी हुई।
उसमें ख़ुशी के माता पिता भी शामिल थे।
कितनी खुशकिस्मत है हमारी बच्ची की ऐसा ससुराल मिला, औऱ कितनी तकदीर बुरी है कि विनय इतनी कम उम्र में उसे छोड़ कर चला गया, क्या मेरी बेटी अपनी पूरी जिंदगी इन अधूरे रिश्तों में काट देगी, एक पत्नी को पति ही पूरा करता है, क्या उसे हक़ नही लाल रंग को अपनी मांग में सजाने का।
राजीव ने गलती से ये सब सुन लिया, सच तो था, ये खुशी अधूरी थी।
तभी कही से किसी महिला ने कटाक्ष किया।
क्या जमाना आ गया ना हया बची है कैसे एक विधवा रंगों से भीगी है वो भी अपने देवर के साथ, शर्म नही आती ऐसी हटखेलिया करते हुए, और घरवाले कैसे है जो ये सब बर्दाश्त कर रहे है। कुछ नियम कानून बचे है या नही समाज मे।
संजना जी और राजीव के कानों से होते हुए ये शब्द सीधे खुशी के दिल पर चोट किये, सारे आंसुओ में होली के हरे, पीले,नीले लाल रंग घुल गए। और खुशी अपने कमरे में भाग गई।
शर्म नही आती आंटी आपको यही अगर आपकी बेटी के साथ हुआ होता तो ये अल्फ़ाज़ नही होते आपके होठो पर। कहा सुनी होली के त्यौहार का मजा खराब कर गयी।
एक बार फिर खुशी के माता पिता ने खुशी को अपने घर ले जाने की बात की पर इस बार राजीव ने यकीन दिलाया कि खुशी को खुश रखना अब उसकी जिम्मेदारी होगी। ये सुनकर वे लोग चले गये।
दिन बीते राजीव ने अपनी जिंदगी का मकसद बना लिया था खुशी को खुश रखने का, और खुशी भी अपना गम भूलने लगी थी।
दिन बीतते गए घर का माहौल सामान्य हो गया। थोड़े दिनों में घर मे फिर शहनाई गूंजी , संजना जी की बेटी का रिश्ता तय हो गया। घर मे वही गाना बजाना, नाच सब शुरू हो गया, खुशी भी खुश होने लगी खुशियों में।
रीना , खुशी की ननद का जोड़ा जब उसके ससुराल से आया तो खुशी ने सबका स्वागत किया औऱ थाल हाथ मे ले किया,
रीना की जेठानी को ये बात अच्छी नही लगी। जब खुशी इधर उधर हुई तो उसने संजना से कहा कि बुरा मत मानिए आपका बहुत बड़ा दिल है और अपनी बेटी की खुशियों पर तो रहम कीजिये, क्यों शगुन की थाल को खुशी को छूने दिया,
ये बात अब संजना जी के मन मे खटक गयी।
महन्दी के दिन राजीव ने जिद की खुशी भी मेहंदी लगवाएगी। जब इस बार लड़के के घर से मेहंदी आयी तो दरवाजा खुशी ने खोला, पर संजना जी ने रोक दिया, ये कहकर की ये काम मे देख लेती हूँ तुम कुछ ओर काम करलो। खुशी को ये बात सामान्य लगी तो कुछ कहा नही।
जब मेहंदी लगाने का वक़्त आया तो खुशी ने कहा कि माँ मैं महन्दी लगाऊं रीना को मुझे बहुत अच्छी मेहंदी लगानी आती है ,पर वहाँ बैठी एक महिला ने कहा अरे संजना जी, ज्यादा मॉर्डन खयालो की मत बनो अपनी बेटी का तो शगुन देखो।
ये बात आज खुशी को चुभ गयी, उसने सोचा कि क्या वो अपशगुनी है।राजीव ने फिर आज हद पार की और तमाशा हो गया।
रीना को ये बात अच्छी नही लगी। मेरी शादी का मजाक बना दिया, कभी कुछ कभी कुछ रोज तमाशा होता है, और भाभी जब एक बार कह दिया जो काम ना करो तो वो करना जरूरी है क्या, माँ कुछ कह नही पाती क्योंकि आपको बुरा ना लगे।
आज राजीव का हाथ उठ गया रीना पर और ये बहुत गलत हुआ, संजना ने भी जब मुँह फेरा तो खुशी की खुशियों में आग लग गयी, वो मायूस होकर चली गयी अपने कमरे में,
अगली सुबह हल्दी की रस्म थी।
पर खुशी ने अपने माता पिता को बुला लिया।
खुशी नीचे आयी, अपने पिता से गले लग गयी । पापा आज वो वक़्त आ गया जब मुझे आपका दिया हुआ वचन चाहिए। आपके घर मे एक कोना चाहिये हमेशा के लिए।
रमेश की आँखे भर आयी, देखिये बहनजी ससुराल आखिर दिखा ही देता है बहु और बेटी में फर्क, पर मैं अभी जिंदा हुँ, मैंने तो पहले भी कई बार खुशी को ले जाने को कहा ताकि मैं उसका घर फिर से बसा सकू ओर वो आपके प्यार के बंधन में कैद रही, और आज आपने उसे उस बन्धन से आसानी से मुक्त कर दिया।
उसी वक़्त शगुन की हल्दी आ चुकी थी। पर संजना खामोश थी ।जैसे वो भी ये शगुन अपशगुन बातों और विश्वास करने लगी थी।
राजीव को कुछ भी अच्छा नही लगा।
राजीव ने खुशी का हाथ सबके सामने पकड़ा और के हाथ मे जो हल्दी थी उसे लेकर खुशी के गालों पर लगा दिया, हंगामा हो गया। राजीव तुम अपनी हद पार रहे हो। संजना ने कहा,
हाँ आज मैं अपनी हद पार कर रहा हूँ। मैं खुशी की जिंदगी में फिर से रंग भरना चाहता हूं। कैसा दस्तूर है दुनिया का, औरत की जिंदगी में मर्द नही तो उससे उसकी जिंदगी के रंग भी छीन लिए जाते है।
ये आज ये हल्दी का रंग मैं खुशी को देता हूँ, अब मैं खुशी से शादी करूँगा।
सब ये सुनकर भौचक्के रह गए, कुछ ने तो ये इल्जाम भी लगाए की जरूर कुछ चक्कर चल रहा होगा दोनो में।
पर रमेश इस फैसले से खुश नजर आए, कोई तो है जिसने मेरी बेटी के दर्द को समझा, पर ना जाने संजना क्यों खामोश हो गयी।
नही राजीव ये तुम क्या कह रहे हो ये नही हो सकता, खुशी ने कहा।
क्यों नही हो सकता दोस्त कहती हो ना मुझे तो दोस्त एक बन्धन में नही बन्ध सकते क्या, आज से इस खुशी के जीवन से खुशी कोई नही छीन सकता।
बहुत ताने मारे गए पर अंततः राजीव की जिद के आगे सब हार गए। अब एक नही फो दो शादियों की तैयारियां हुई।
संजना भी नही चाहती थी खुशी कही भी जाये, लोगो ने कुछ वक़्त के लिए भड़का दिया था। मैं औरत होकर औरत का दर्द नही समझ पाई।
रीना ने भी अपने किये की माफ़ी माँगी।
आज खुशी और रीना दोनों दुल्हन के रूप में बहुत सुंदर लग रही थी। इससे अच्छा क्या हो सकता था कि एक दोस्त उसका हमसफर बनने जा रहा था।
दोस्तो ये कहानी तो यहाँ खत्म हुई पर हमारे समाज मे ये खोखला व्यवहार औरतों की जिंदगी पर विराम लगा देता है, वो रंग जो खुद नही कहते कि हमे यहाँ इस्तेमाल मत करो उन्हें निषेध बना देता है जो ठीक नही ये मानसिकता हटानी चाहिए।
इस बार होली पर खुशी ने अपने खुशियों को होली के रंगों में डुबो दिया, औऱ परिवार के साथ जमकर होली खेली।
सोनिया चेतन क़ानूनगो
जिस तरह से प्रकृति कोई भेदभाव नहीं करती हम मनुष्यों के लिए तो ये समाज क्यों भेदभाव की सीमाओं में औरतों को कैद कर देता है। वे नियम जो किसी की खुशी छीन के उन्हें जड़ से मिटा देना चाहिए।