हो गया ना प्यार तुम्हे फिर से
हो गया ना प्यार तुम्हे फिर से


भाग 1
"कैसे सोच लिया तुमने की तुम मुझे प्रपोज करोगे और मैं हाँ कर दूंगी, इतनी बड़ी गलतफहमी 2 साल से पाल रखी है, और मुझे खबर तक नही ,
तुम मुझसे प्यार नही करती स्नेहा",
"मैंने कब कहा कि मैं तुमसे प्यार करती हूँ, मैंने कब तुम्हे कहा कि मैं तुम्हे हाँ कहने वाली हूँ।"
"और मैं हर दिन तुम्हे i love you बोलता हूँ उसका कोई मतलब नही।"
"देखो समीर तुम मुझे बोलते हो, क्या मैंने कभी भी तुम्हे उसका जवाब दिया, कभी हाँ कहा, मुझे लगा ये सब तुम्हारा बचपना है, ये प्यार व्यार में पड़कर क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करना चाहते हो, ये तो नया जमाना है, यहाँ लोग कसमें वादे नही खाते, तुम्हारा भी अजीब है, मैं हँस कर दो बातें क्या करली तुम तो पीछे ही पड़ गए,क्या कहा था तुमने, तुम मुझसे दोस्ती करना चाहते हो, तो फिर कब तुमने दोस्ती को प्यार का नाम दे दिया।और खुदने मन मे जो सोचा वो सोचा, मुझे भी सोचने के लिए मजबूर करना चाहते हो।"
आज जैसे समीर के दिल पर स्नेहा ने हतोड़ा ही मार दिया था, ना जाने कब से सोच रहा था, की अब तो उसे अहसास हुआ होगा कि मैं उससे कितना प्यार करता हुँ उसके लिए जान दे सकता हूँ ,पर आज जैसे उसकी उम्मीदों पर स्नेहा ने पानी फेर दिया।
2 साल पहले,
"माँ मैं जा रही हूँ , आज कॉलेज का पहला दिन है औऱ मैं लेट नही होना चाहती",स्नेहा बजाज, बहुत बड़े बिज़नेस मेन की बेटी थी, पर स्नेहा का मन बहुत कोमल था, उसे रुपये का कभी घमंड ना था, बजाज की एकलौती बेटी जिसके एक इशारे पर उसके पिता उसकी हर फरमाइश पूरी करते थे,स्नेहा नाम जितना प्यारा था, उतनी ही सुंदर थी वो। हर कोई उसे देखकर उसे पाने की होड़ में लग जाता था, उनमें से आधे लोग उसकी पहचान की वजह से उसे घेरे रहते थे,आज MBA कॉलेज मुंम्बई में उसका पहला दिन था। कॉलेज के सामने ब्लैक रंग की मर्सडीज़ में से स्नेहा ने कदम रखा, ज्यादातर लोग उसकी गाड़ी को देखकर अपना भविष्य सोच रहे थे, उसने कॉलेज में अपना पहला दिन शुरू किया,
"हेलो आप जरा हटेंगे सामने से, मुझे काउंटर से रिसिप्ट लेनी है।"
"तो लाइन में लगो "उधर से जवाब आया,
एक सावला सा लड़का, जो दिखने में हैंडसम था, अच्छी हाइट थी, स्नेहा के आगे खड़ा था,"आप मेरा नाम पूछ सकती है।मेरा नाम समीर है।"और पहले मैं काउंटर पर आया हूँ, आप लाइन में लगिये,अपने आप नम्बर आ जायेगा। तभी पीछे से आवाज आई, अरे हट जा ना, क्यों तकलीफ दे रहा है इन्हें, पहले मैडम को रिसीप्ट लेने दे।
"क्यों, तुझे बड़ी फिक्र हो रही है मैडम की।"
"अपनी बकवास बन्द करो , अपनी रिसीप्ट लो और निकलो, बात करने की तमीज़ नही है तुम्हे",
"तमीज़ तो बहुत है बात करने की, पर कोई आपके जैसा एटीट्यूड नही देता ना"। स्नेहा ने समीर को नजर अंदाज कर दिया, पर पहली मुलाकात कुछ अच्छी नही रही।
जब से कॉलेज में स्नेहा आयी थी लड़को की लाइन लग गयी थी, जब लंच टाइम होता तो कैंटीन में सब उसके आगे पीछे मंडराते रहते,पर समीर ऐसा नही था, वो लड़कियों के पीछे इस तरह नही भटकता था, उसे इंतज़ार था, पहले प्यार का, जो शायद पहली मुलाकात के हिसाब से स्नेहा से तो कभी नहीकरता। दोनो का सेक्शन एक ही था, पर समीर स्नेहा को देखता तक नही।स्नेहा को भी उसमें कोई रुचि थी, लेकिन इसे उसका इस तरह ईगो दिखाना कुछ अच्छा नही लगता था।
"देख पकड़ा गया ना," निहान ने कहा, झूठ मत बोलना , "तू चुपके चुपके स्नेहा को क्यों देख रहा है, वैसे तो अपने आप को बहुत अकड़ दिखाता है, की उसे मैं नही देखता, ऐसा क्या है उसमें और पता नही क्या क्या? आज क्या हुआ।"
"अरे साले तू भी ना बाल की खाल निकालता है, और भी बहुत कुछ है कॉलेज में देखने को , उसे क्या देखूँ",
"देख अब ये वो झूठ हो गया जो तेरी जुबान बोल रही है, तेरी आँखे तो कुछ ओर ही बोल रही है।"
"अच्छा तू बड़ा पढ़ने लगा आँखो को, कब से ये काम शुरू किया",
"अबे तेरा दोस्त हूँ अच्छे से जानता हूँ तुझे, तू कुछ भी बोल पर जानता हूँ तू उसे चुपके चुपके देखता है। "
"सच बोलू देखता तो हूँ, पर सोचता हूँ वो हूर की परी और कहाँ मैं, वो मुझे भी क्लास के उन लोगों में शामिल कर लेगी जो उसके पीछे दुम हिलाते है। यार मैं उस श्रेणी में नही आना चाहता। "
"चल कोई नही धीरे धीरे शायद वो तुझे पसंद करने लगे।"
"अरे यार पहली मुलाकात ही मुक्का लात की हो गयी।मैं प्यार के सपने देख रहा हूँ औऱ वो मुझे दोस्ती के भी लाइन में शामिल नही करेगी।चल जाने दे। "
अगले दिन क्लास म
ें ग्रुप बनने वाले थे किस्मत से स्नेहा के ग्रुप में समीर का नाम भी था, समीर की तो बल्ले बल्ले हो गयी थी।अंदर रसगुल्ले फूट रहे थे, पर चेहरे पर तो अकड़ ही दिखानी थी।जब ग्रुप एक्टिविटी चल रही थी, तो स्नेहा को कुछ समझ नही आ रहा था, तो उसने समीर को देखा, समीर चाहता था कि वो उसके पास आये क्योंकि ग्रुप का लीडर वही था, तो उसे तो उसके पास आना ही था।
"सुनो, "
"क्या, कुछ कहना है आपको।"
"हाँ वो मुझे मेरा रोल समझ नही आ रहा, क्या तुम बता दोगे।"
"हाँ क्यों नही ", बस वहाँ से शुरुआत हुई पहली बात की, जो शायद ढंग से हुई।
वो रात तो समीर की आँखों मे नींद ना थी, शायद वो स्नेहा से कभी दोस्ती करना ही नही चाहता था, वो तो सीधे प्रपोज़ करना चाहता था, पर डरता था कि कही उसने मना कर दिया तो।
आज जब समीर कॉलेज गेट पर खड़ा था, तो स्नेहा को आता देख रुक गया,तभी स्नेहा ने आवाज लगाई, समीर रुको साथ मे चलते हैं। समीर का तो दिल खुश हो गया, नेकी और पूछ पूछ। फिर भी मेन ईगो इंसान का पीछा नही छोड़ता, वो स्नेहा को महसूस नही कराना चाहता था कि बाकी लोगो की भीड़ में वो भी शामिल था, पर बाकी लोग उससे जलने जरूर लग गए थे, क्योंकि स्नेहा अब समीर से बात करने लगी थी।कैंटीन में भी वो अक्सर साथ दिख जाते थे।
"अरे समीर चल ना वहाँ, नेहा के घर पर कल शाम की पार्टी की योजना बना रहे है।स्नेहा तुम भी चलो।"
समीर तो बस इंतज़ार कर रहा था कि कब स्नेहा हाँ कहदे और दोस्ती के नाम पूरा दिन उसके साथ बिताऊँ।
"ठीक है मुझे कोई प्रॉब्लम नही है, कहाँ जाना है",
"नेहा के घर पर कल शाम को पार्टी है।"
"पर मैं नेहा का घर नही जानती।"
"कोई बात नही मैं तुम्हे लेने आ जाऊँगा", मौका देखते ही समीर के मुँह से निकला।
"लेकिन तुम मेरा घर जानते हो क्या कहाँ है।"
"तभी निहान ने कहा, स्नेहा बजाज का घर भला कौन नही जानता",
ये सुन समीर थोड़ा मायूस हो गया। क्योंकि जब भी बात स्नेहा के स्टेटस की होती थी तो समीर को अपना कद उसके आगे बहुत छोटा लगता था, बजाज इंडस्ट्री की एक लोती वारिस। भला मुझसे क्यों प्यार करेगी, मुझ जैसे जाने कितने दिल लेकर लड़के उसके आगे पीछे घूमते होंगे।
"तो ठीक है फिर समीर तुम मुझे लेने आ जाना, मैं इंतजार करूंगी।"
समीर ने भी हामी में सर हिलाया।
"क्या हुआ आज कॉलेज से जल्दी आ गयी",
"हाँ मोम आज क्लास ज्यादा नही थी। "
"पता है आपको कल फ़्रेंडशिप डे है, मेरे कॉलेज की पार्टी है। मुझे वहाँ जाना है।"
"तुम्हे वहाँ जाने की क्या जरूरत है, तुम अपने फार्महाउस में सबको बुला लो वहाँ अच्छे से पार्टी कर लेना।"
"नही माँ सब कुछ निश्चित हो चुका है। सब वही जा रहे है ",
"मेरा दोस्त समीर मुझे लेने आ जायेगा, वो नेहा का घर मुझे पता नही है।'
"तो नेहा से एड्रेस लेलो ड्राइवर छोड़ देगा तुम्हे।"
"नही माँ समीर ने कहा है वो आ जायेगा।"
"ये समीर कौन है।"
"मेरी क्लास में पढ़ता है, मेरा दोस्त है।"
"बस दोस्त ही है ना, कुछ ओर तो नही।देख बेटा इन सब चक्करों से दूर रहना, वैसे भी तुम इतने बड़े रहीस खानदान की बेटी हो, हमारी इच्छा है कि कोई हमसे भी अच्छा परिवार हैसियत में तुम्हारे लिए मिले, किसी ऐसी जगह दिल मत लगा लेना जिसपे तुम्हे पछतावा हो।"
"हाँ मोम ऐसा कुछ नही है, वो बस दोस्त है। "
अगले दिन शाम को जब पार्टी में जाना था, मन तो बहुत खुश था, समीर का, पर ना जाने क्यों स्नेहा के घर जाने से डर लग रहा था, पता नही वो लोग कैसा रिएक्ट करेंगे, कोई उसे तबज्जो देगा भी या नही, वैसे भी मेरी हैसियत ही कहाँ है जो मैं स्नेहा से प्यार की उम्मीद रख रहा हूँ, मुझमे ऐसा क्या है जो स्नेहा मुझे प्यार करेगी, कुछ ना होते हुए भी ईगो कूट कूट के भरी पड़ी है, किस बात पर मैं इतना इतराता हूँ,औऱ ना जाने कितनी ऐसी बातें वो खुद से कर रहा था।
जाने कितनी बार आईने में खुद को देख रहा था, कपड़े तो ब्रांडेड है, कही उसके मम्मी पापा को मिलू तो बेइज्जती ना हो जाये।ठीक ठाक ही लग रहा हूँ।क्या बोलू जाकर नमस्ते आंटी या पैर छू लू, अरे सारा संस्कारो का नाटक वही दिखायेगा क्या। जाने कैसी कैसी बातें उसके दिल औऱ दिमाग़ को छलनी कर रही थी।
दोस्तो ये कहानी है स्नेहा और समीर की, आइये देखते हैं कि क्या हुआ समीर के साथ जब वो गया स्नेहा के घर, क्या उसके मम्मी पापा ने उसकी इंसल्ट करदी।या प्यार से उसकी तारीफ की।
ये जानने के लिए बने रहिये मेरे साथ इस कहानी के अगले भाग में।
धन्यवाद