घर बचाने के लिए प्यार की जरूरत है
घर बचाने के लिए प्यार की जरूरत है
रुक जाइये साहिल, रुक जाइये, मेरे लिए, अपनी माँ के लिए, इस परिवार की खुशी के लिए। मुझे मजबूर मत कीजिये इस तरह, दो हिस्सों में मत बाँटिये।
मेरी क्या गलती है।
नहीं, अब नहीं काव्या, तुम किस मिट्टी की बनी हो, कोई आत्मसम्मान है तुम में या तुम्हारा दिल पत्थर का है। तुम्हें दर्द नहीं होता, थकती नहीं तुम सफाई देते देते। किस बात की सफाई दी रही हो तुम घरवालों को जब तुम्हारी कोई ग़लती ही नहीं।
(देखा सुनीता तेरे भाई को, मैंने कहाँ था ये लड़की एक दिन हमारा घर तोड़ देगी, आज मेरा बेटा इस दहलीज़ को छोड़कर जाना चाहता है। जहाँ उसका जन्म हुआ, इतने सपने सजाए, इतनी यादों का पिटारा इकट्ठा किया, आज ये पिटारा अपने साथ लेकर जाना चाहता है। अपनी माँ बाबा, दादा दादी को छोड़ना चाहता है। वो भी इस कल की आयी लड़की के लिए, अभी शादी को वक़्त ही कितना हुआ है, और देखो, कहावत सिद्ध कर दी की बहू घर तोड़ती है।)
ये अपमान का घूँट काव्या पी रही थी पर असर साहिल के दिल पर हो रहा था, वह फँस गयी थी परिवार और पति की उम्मीदों का तालमेल बिठाते बिठाते, पति को खुश करती तो सास को बुरा लगता, और घरवालों की जिम्मेदारी में बह जाती तो पति कहता कि तुमने मुझसे शादी की है या परिवार से, मेरे लिए वक़्त नहीं है तुम्हारे पास।
6 महीने पहले।
सुधा बहुत खुश थी, आखिर होती भी क्यों ना, अपने एकलौते बेटे की शादी का ख़्वाब जो पूरा करने जा रही थी, लड़की भी लाखों में एक चुनी थी, भव्य परिवार की बेटी, रूप और संस्कार में हीरा थी, बड़े परिवार में रही तो उसे आदत थी सब के साथ खुशी खुशी रहने की, फर्क सिर्फ इतना था कि अभी तक वो सबकी जिम्मेदारी थी, बड़े लाड़ प्यार से पली राजकुमारी की तरह, और शादी के बाद उसको अब जिम्मेदारी लेनी थी।
बहुत दिल से बहू का स्वागत किया, ऑरेंज मैरिज थी तो काव्या और साहिल को भरपूर समय लगना ही था एक दूसरे को जानने के लिए, सगाई और शादी के बीच थोड़ा समय तो मिला था एक दूसरे को जानने का पर करीब से जानना अभी बाकी था।
शादी की रस्मों के साथ शुरुआत हुई औऱ काव्या नए घर का हिस्सा बन गयी।
अभी उसे घर के तौर तरीकों को अच्छे से समझना था, साथ ही साहिल की खुशी का भी ख्याल रखना था।
जैसे जैसे वक़्त बीत रहा था, दोनो के बीच प्यार का धागा मजबूत हो रहा था, एक दूसरे की खुशी का ख्याल उमड़ने लगा था। साथ ही काव्या घर के रंग में रंगने लगी थी, बड़ों को सम्मान में कोई कमी नहीं की थी उसने, पर कहीं ना कहीं पूरे दिन सबकी उम्मीदों पर खरी उतरते उतरते वो खुद को भूलती जा रही थी। अगले महीने काव्या का जन्मदिन था, साहिल बहुत ही उत्साहित था, जाने क्या क्या तैयारियां कर रहा था, सरप्राइज की सोच रहा था, पर समझ नहीं पा रहा था क्या, मतलब क्या क्या ना दे दूँ।
जब काव्या का जन्मदिन आया रात को ही उसे छत पर सरप्राइज दिया, इतना सुंदर सजाया था, काव्या के तो जैसे पैरों तले ज़मीन ना हो, वो आसमान में सैर कर रही थी। ना जाने साहिल की माँ सुधा के कानों में खट पट की आवाज़ पहुँच गयी। इतनी रात को गानों की आवाज़ क्यों आ रही है।
दबे पांव देखने पहुँची देखा तो काव्या वेस्टर्न कपड़ों में साहिल के साथ झूम रही थी।
हे भगवान बहु ने कैसे कपड़े पहने है वो भी आधी रात को साहिल के साथ ऊपर छत पर क्या कर रही है, वो ये भी भूल गयी कि ससुराल है उसका माइका नहीं ।
साहिल ने बहुत ज़िद की थी, वो उसके लिए वो ड्रेस लाया था, उसी की ज़िद रखने के लिए काव्या ने वो कपड़े पहने ताकि आज उसके जन्मदिन के दिन साहिल का दिल ना टूटे। साहिल कोई आ जायेगा अब कमरे में चलते है। अरे कोई नहीं आएगा कोई सोचेगा भी नहीं की इतनी रात को तुम और मैं छत पर होंगे। खुशनुमा रात के साथ काव्या के जन्मदिन की शुरुआत हुई, उसने सोचा भी नहीं था कि साहिल उसके लिए इतना कुछ करेगा।
सुबह अच्छे से तैयार होकर वो सबका आशीर्वाद लेने गयी, सबने खूब आशीर्वाद दिया पर आज सुधा के बस लफ्ज़ ही काव्या को आशीर्वाद दे रहे थे, मन तो रात की बात पर अटका था।
अरे माँ जी आपको पता है आजकल का वक़्त कितना बदल गया है, लड़कियाँ कैसे कैसे कपड़े पहनती है, वो शर्मा जी की बहू बाहर से आई तो जीन्स पहन कर आई, शर्म लिहाज़ सब भूल गयी है, ये भी याद नहीं की ससुराल में है। काव्या सुन रही थी, पर उसने सोचा माँ किसी और कि बातें कर रही है,
पर माँ तो उसे ही ताना मार रही थी।
आज साहिल काव्या के आगे पीछे मंडरा रहा था, पर ये बात सुधा को अच्छी नहीं लग रही थी,जब रसोई में काव्या के पीछे गया तो, माँ का तो सर तन ही गया, अब साहिल ऐसा कर तू खाना भी बना दे यहाँ आकर, आज तक तो तेरे कदम रसोई में पड़े नहीं। क्या क्या सीखा रही हो काव्या, साहिल को।
काव्या को बुरा लगा पर उसने बात को वही टाल दिया,और इशारों से साहिल को बाहर जाने को कहा।
दोस्तों कहानी का अगला भाग बताएगा कि आखिर क्या वजह रही कि साहिल को बेबस होकर फैसला लेना पड़ा...
दोस्तों शादी के बाद अक्सर ये परिस्थिति आती है जब एक आदमी अपनी पत्नी और माँ के कर्तव्यों के बीच उलझ जाता है। साहिल को अभी ये सब महसूस नहीं हो रहा था, पर काव्या को आज एक कड़वाहट की अनुभूति हुई, पर वो उसे टाल गयी, उसे पता था बड़े परिवार में ऐसी बाते होती है, और खासकर उनके जैसे परिवारों में मर्दो की जगह रसोई में नहीं होती वो बस दफ्तर संभालते, हो सकता है जब साहिल मेरे पीछे रसोई में आये तो माँ को अजीब लगा हो।
पर साहिल के इस प्यार औऱ अपनेपन से काव्या मन ही मन खुश थी। शाम का वक़्त हुआ तो काव्या अच्छी खासी थक गई थी सोचा थोड़ा आराम कर लूं।
वो अपने कमरे में चली गयी, क्योंकि एक कमरा ही होता है जहाँ शादी के बाद आपको सुकून मिलता है बाकी घर की कोई जगह आपको सुकून नहीं देती।
तभी एक सुखद अहसास काव्या को महसूस हुआ, देखा तो साहिल था, साहिल तुम क्या कर रहे हो? नीचे सब तुम्हारे बारे में पूछेंगे।
हाँ पर मेरी बीवी थोड़ी थक गई है तो उसकी सेवा करना भी तो मेरा फ़र्ज़ है। देखो दरवाज़ा भी खुला है कोई आ जायेगा।
चलो तुम्हारी ये इच्छा भी पूरी कर देता हूँ।
साहिल ने दरवाज़ा बंद कर दिया।
थोड़ी देर में सुधा बहु को ढूंढती हुई उसके कमरे में आई तो देखा दरवाज़ा बंद था, और अंदर से थोड़ी थोड़ी हँसी ठिठोली की आवाज़ आ रही थी।
अब ये बात भी उसे खटकने लगी। ये कोई वक़्त है साथ मे दरवाज़ा बंद करके बैठने का, आजकल की बहुए कोई शर्म ही नहीं इन्हें।
सुधा ऐसी नहीं थी पर पता नहीं कब उसकी सोच जलन में बदलने लगी। अब तो हर बात उसे असहज लगने लगती।
अच्छा चलो ठीक है थोड़ी देर मैं आता हूँ एक जरुरी फ़ोन आया है। साहिल ने कहा।
ठीक है। कब थकान से काव्या की आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
थोड़ी देर बाद साहिल आया, देखा तो काव्या सो रही है, तभी उसकी माँ ने दस्तक दी,
अरे ये कोई सोने का समय है...
माँ धीरे बोलो वो उठ जाएगी, थक गई है सुबह से, आज जन्मदिन के दिन भी उसने कितना काम किया है, थोड़ी देर के लिए सुकून से सोई है आप चलो मैं लाता हूँ उसे। बेटे के जज्बात देखकर, सुधा खुश तो हुई पर जो आग वो जलन की खुद को लगा चुकी थी वो अब धधकने लगी थी। वो खुद भी प्रयास कर रही थी उसे बुझाने की ओर असमर्थ थी।
एक प्यार भरी छुअन के साथ साहिल ने काव्या को उठाया, अब चलो भी सब तुम्हारा इंतज़ार कर रहे है।
साहिल, अच्छा हुआ तुमने उठा दिया, मैं तो सो ही गयी थी, माँ क्या सोचेगी
माँ को मैंने बोल दिया कि तुम्हें सोने दे। अब चलो नीचे, अरे रुको एक मिनट।
साहिल ने काव्या के आँखो में पट्टी बांध दी, एक और सरप्राइज की तैयारी थी।
अरे क्या कर रहे हो?
तुम बस मेरा हाथ थामो और चलो।
साहिल उसे नीचे हॉल मे लेकर आया।
आँख से पट्टी हटी, वो स्तब्ध थी, सबने मिलकर उसे जन्मदिन की बधाई दी, यहाँ तक कि उसके मायके वाले भी थे, उसकी माँ, पापा, भाई भाभी सब, उसने सोचा नहीं था कि साहिल उसकी भावनाओं की इतनी कद्र करेगा, उसकी आँखों की नमी बता रही थी, की वो कितनी शुक्रगुजार थी।
काव्या ने सबका आशीर्वाद लिया, सुनीता अपनी भाभी के लिए बहुत ही प्यारा नेक सेट लायी थी, लगभग सबने उसे गिफ्ट दिया।
वो बहुत खुश थी, आज सुधा भी बहुत खुश थी,
आज का दिन काव्या के लिए यादगार था, उसने सोचा भी नहीं था कि इतना अच्छे से उसका जन्मदिन ससुराल में इस तरह मनाया जाएगा।
अगले दिन की शुरुआत वही काम से शुरू हुई जैसा कि रोज होता आया था,
अरे बहू आज कुछ बना रही हो क्या??
जी माँ मैंने सोचा आज साहिल के लिए प्याज की कचौरी बनाती हूँ।
पर बेटा वो तो प्याज की कचौरी खाता ही नहीं ।
माँ मैं आज खिला दूँगी उनको इतनी स्वादिष्ट बनाउंगी।
पता नहीं इस बात में कुछ गलत तो नहीं था पर सुधा को चुभ गयी, वो काव्या की बराबरी करने लगी।
चलो मैं बेसन के लड्डू बना देती हूं, उंगलियां चाट चाट के खाता है।
आज नाश्ते मे जब काव्या ने कचौरी परोसी तो साहिल को बहुत पसंद आई, ऐसा नहीं था कि उसे बेसन के लड्डू जो खाकर माँ के हाथ के बने हो पसंद नहीं थे, पर बचपन से वो उनका दीवाना था, पर आज उसे काव्या के द्वारा बनाई कचौरी की तारीफ की, क्योंकि माँ तो जानती थी, उसे लड्डु पसंद है, पर काव्या ने पहली बार साहिल के लिए कुछ नया बनाया था, और वो अपनी तारीफ सुनने के लिए बेताब थी।
साहिल ने कहा वाह काव्या क्या कचौरी बनाई है,
वो ख़ुशी से महक गयी, और क्या चाहिए एक पत्नी को।
पर ना जाने क्यों माँ अपने आप को साहिल और काव्या के बीच महसूस कर रही थी। सुधा को अचानक अपने साहिल से दूरी महसूस होने लगी। उसे लगने लगा कि बहू के आने से उसकी महत्व खत्म हो रही है
एक माँ ये क्यों नहीं समझती की महत्ता कभी किसी की कम नहीं होती, पर जो माँ उसकी आँखों के सामने अपने बेटे को किसी और के साथ बांट नहीं पा रही थी वो ये क्यों नहीं समझ पा रही थी कि एक बेटी अपनी माँ बाप, अपना घर, इच्छाएं, अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा छोड़ कर आई है सिर्फ उसके बेटे के लिए,जिसके लिए उसने अपनी पूरी जिंदगी नाम करदी, जो आगे जाकर उसके वंश को बढ़ाएगी, नाम भी उसी का आगे बढ़ेगा, वो क्या किसी से कुछ छिनेगी, वो तो बस प्यार औऱ मोह की भूखी है, एक माँ तलाश कर रही है एक सास में, पर एक बेटे की माँ शायद ये समझ नहीं पाए।
धीरे धीरे गलतफहमियां बढ़ती गयी, अब तो साहिल को भी समझ आने लगा था, इस वजह से काव्या साहिल से दूर दूर रहने लगी थी, हर वक़्त डर सताता कही माँ आ गयी तो, जाओ तुम साहिल यहाँ से, कभी साहिल बाहर जाने की कहता तो अब तो काव्या को माँ से पूछने में भी डर लगने लगा था, कहीं माँ कुछ गलत ना समझ ले,
ऐसे ही कई उतार चढ़ाव साहिल और काव्या की जिंदगी में बढ़ते गए। पर आगे जानने के लिए बने रहिये मेरे साथ अगले भाग में जो जल्दी ही प्रकाशित होगा।
दोस्तों हर इंसान की जिंदगी में उतार चढ़ाव आते है, ओर वो खुद की उत्तरदायी होता है उन्हें बढ़ाने या कम करने मे,
साहिल की माँ चाहती तो अपनी परेशानी का हल खुद ढूंढ सकती थी, क्योंकि इस पड़ाव से वो कई सालों पहले खुद भी गुजर चुकी थी, जब वो इस घर मे एक बहु के रूप में आई थी, पर कहते है ना वक़्त के साथ अहसास बदल जाते है, सिर्फ एक रिश्ता रहे इंसानियत का तो लम्बा टिकता है और हमारे समाज मे प्यार की तुलना रिश्तों का टैग लगा कर की जाती है।
साहिल और काव्या के मन मुटाव बढ़ते जा रहे थे। पर साहिल ने आज एक कोशिश की अपने रिश्ते को सहेजने की,
हेलो काव्या ,
क्या कर रही हो?
इस तरह साहिल का फोन ऑफ़िस से आया तो काव्या खुश हो गयी।
मैं कुछ नहीं माँ के साथ काम मे मदद कर रही थी।
अच्छा सुनो, मैंने नैनीताल की टिकट बुक की है इस शनिवार की टिकट मिली है। हम कुछ दिनों के लिए बाहर जाकर आते है, शादी के बाद मैं तुम्हें कहीं बाहर भी नहीं ले गया।
काव्या तो उछल पड़ी। सच, कब जाएंगे।
सुधा देख रही थी।
पर काव्या के जज्बात उमड़ पड़े।
चलो मतलब तुम खुश हो, अच्छा अभी ऑफ़िस में बहुत काम है। शाम को बात करते है।
क्या हुआ बहु, इतनी खुश, साहिल ने क्या कहा।
माँ साहिल मुझे लेकर नैनीताल जाने के लिए कह रहे थे, बोल रहे थे कि शादी के बाद हम कही पर भी नहीं गए तो वो जाना चाहते है।
चलो अच्छा है, वरना हमारे जमाने मे तो पहले माँ बाऊजी से पूछते थे, पर आज की पीढ़ी तो खुद ही निर्णय कर लेती है, आज के बच्चे शादी होते ही अपनी दुनिया मे व्यस्त हो जाते है।
माँ ऐसा नहीं है, वो आपसे पूछने ही वाले थे, मैं भी आपसे पूछ कर ही कोई काम करूँगी।
रहने दो बहु, अब दिखावा मत करो।
तुम दोनों को वैसे भी बड़ों की कोई कद्र नहीं है।
काव्या को समझ नहीं आ रहा था माँ ऐसा क्यों कह रही है, उसने कब कद्र नहीं की बड़ों की,
जब सुधा जाने लगी तो पता नहीं क्यों रुककर उसने काव्या को बोला।
देखो बहु मैंने मेरे साहिल को बहुत लाड़ प्यार से पाला है, अभी तक तो वो ऐसा नहीं था, मान मर्यादा में रहना जानता था, पर जबसे तुम्हारे साथ हुआ, अपने घर वालो को पूछना ही भूल गया, उस दिन भी जब तुम्हारा जन्मदिन था कम से कम एक बार पूछ सकता था कि तुम्हारे मायके वाले भी आ रहे है , पर तुम दोनों ने खुद की बिना पूछे निश्चय कर लिया।
लेकिन माँ मुझे नहीं पता था कि साहिल ने आप से नहीं पूछा,
बेटा हमने दुनिया देखी है साहिल आगे पीछे घूमता है तुम्हारे, ऐसा क्या होगा जो वो तुम्हें ना बताए।
पर माँ मुझे नहीं पता था, वो हैरान थी कि आज ये कैसा गुब्बारा फूटा है, आज माँ का इतना बदला रूप उसकी खुशी को काफ़ूर कर गया,
थोड़ी देर पहले साहिल का फोन उसे बेइंतहा खुशी दे गया, और माँ का ये स्वभाव उसे अंदर तक तोड़ गया।
वो समझ नहीं पा रही थी, की गलत क्या है, क्या एक पति अपनी पत्नी के लिए कोई निर्णय नहीं ले सकता, क्या एक पति अपनी खुशी से खुद अपनी
पत्नी के लिए कुछ करे तो वो ग़लत है,
वो समझ नहीं पा रही थी कि ग़लती क्या है।
पर इतना समझ गयी थी माँ खुश नहीं थी उनके बाहर जाने से।
फिर से वो एक अजीब सी असमंजस वाली स्थिति में फँस गयी, जहाँ एक तरफ पति की इच्छा का मान था, दूसरी तरफ सास की इच्छा का मान था, इन दोनों के बीच उसकी खुद की क्या इच्छा थी वो शायद मायने ही नहीं रखती थी।
शाम को जब साहिल आया तो बनावटी चेहरे के साथ काव्या अपने आँसू छुपा रही थी। पर आज साहिल बहुत खुश था। साथ मे फूलों का गुलदस्ता भी लाया था, पर छुपा कर क्योंकि माँ की भावनाओं को वो दुखी नहीं करना चाहता था...
अरे साहिल तू आ गया,
जा बहु मेरे साहिल के लिए पानी ले आ, थक गया है।
काव्या हैरान थी जो माँ अभी किसी और रुप मे थी वो अचानक बदल गयी, इतनी मिठास बोली मे पर उसने जाने दिया।
बेटा साहिल मुझे तुझे कुछ बताना था, देख बेटा थोड़े दिनों से मेरा मन इतना अशान्त है, कई दिनों से सोच रही हूँ घर मे पूजा कराने की। सोचा हवन भी करा लूँ। काव्या सब सुनकर समझ भी गयी थी। एक झलक साहिल ने काव्या को देखा, वो उसका मायूस चेहरा देखकर सब समझ गया।
अगर वो मना करता तो माँ को बुरा लगता, ये सोच कुछ नहीं बोला, जैसा आप सबको ठीक लगे माँ।
ना जाने क्या सोच कर सुधा को खुशी मिली। पर वो ये भूल गयी कि अपनों से कैसे जीतना या हारना। जिन्हें दुखी करके वो खुशी महसूस कर रही थी, वो उसकी खुद के बच्चे थे।
साहिल जैसे ही कमरे में पहुँचा वैसे ही काव्या भी वहाँ पहुँच गयी।।
क्या हुआ था काव्या।
कुछ नहीं मैंने माँ को बताया था कि तुमने नैनीताल जाने की बात की है।
तो माँ को पता था कि हम जाने वाले है फिर भी माँ ने जान बूझ कर ये पूजा का कार्यक्रम बनाया।
क्या हो गया माँ को जो माँ मेरी एक मुस्कुराहट के लिए क्या क्या कर देती थी वो आज मुझे खुश होता देख खुश नहीं हो पा रही।
साहिल शायद मेरे लिए झुकाव तुम्हारा, माँ के बर्ताव की वजह बन गया।
पर काव्या ये तो कोई बात नहीं हुई, तुम भी मेरी जिम्मेदारी हो। तुम यहाँ मेरे लिए आई हो अपना सब छोड़कर। तो क्या मेरी जिम्मेदारी नहीं बनती। इसका मतलब ये नहीं है कि माँ की महत्ता कुछ कम हो गयी है। माँ मेरे लिए बहुत अजीज है जिनकी जगह कोई नहीं के सकता तुम भी नहीं, तुमने अपनी जगह खुद बनाई है।
अब क्या करूँ इन टिकट का, माँ से बात करके देखता हूँ, शायद वो समझ जाएंगी।
नहीं साहिल रहने दो, उन्हें लगेगा की मैंने तुम्हें कहा है उन्हें मनाने को।
साहिल औऱ काव्या ने ये इच्छा तो कुर्बान कर दी अपनी माँ को खुश करने के लिए। पर क्या आगे भी ऐसी ही इच्छाओं की बलि उन्हें देनी पड़ी,
आइये देखते है अगले अंक में, जो जल्दी प्रकाशित होगा
दोस्तों कहानी को आगे बढ़ाते हुए मुझे ये महसूस हुआ कि अगर हम चाहे तो रिश्ते हम एक बगिया की तरह महका सकते है, नहीं तो फूल मुरझाने में वक़्त नहीं लगाते।
यहाँ गलतफहमियां इस कदर बढ़ रही थी, काव्या और साहिल निर्दोष थे पर माँ को बुरा ना लगे, इसलिए एक के बाद एक अपनी इच्छाओं की बलि दे रहे थे।
देखो बहु साहिल ने हां कर दी पूजा के लिए, अब देखना इस घर के विघ्न कैसे हरते है,
जी माँ अच्छा है, मन भी शांत हो जाएगा।
अरे तुम अपने मायके वालों को न्योता दे दो, पूजा में तो जितने लोग आये कम है, मेरी जीजी भी आ रही है अपनी बहू के साथ, सीख लेना उससे वो बहुत होशियार है सब कामों में...
जी माँ जैसा आप कहे, काव्या को बस दुःख इस बात का हो रहा था, की माँ जानती थी कि साहिल ने बाहर जाने का कार्यक्रम बनाया है, जानने के बाद भी उन्हें एक शिकवा नहीं था, की वो अपने बेटे की इच्छा समझ नहीं रही थी, जब वो अपने बेटे की इच्छा नकार गयी तो मैं तो बहु हूँ, ना जाने माँ को ऐसा क्यों लगता है कि मैं उनसे उनका बेटा छीन लुंगी।
ये सारी सोच उसके मन में दस्तक देती लेकिन वो घर की सुख शांति के लिए उन्हें अपने दिल मे ही कैद कर लेती।
अब जिंदगी थोड़ी उलझने लगी थी काव्या की माँ औऱ पति के बीच, वो चाह कर भी दोनो के बीच कुछ बोल नहीं सकती थी।
शाम से ही पूजा की तैयारियों में व्यस्त काव्या भूल ही गयी थी उन्हें कहीं जाना भी था, पर साहिल को बहुत बुरा लगा, वो था भी ऐसा अगर कोई बात बुरी लगे तो उसे झट से अपने चेहरे पर ले आता था, निस्स्वार्थ था, गुस्से में भी और प्यार मे भी, वो काव्या की तरह मुखोटा नहीं पहन सकता था, कभी कभी काव्या को खुशी का नाटक करते देख उसे जलन होती थी कि ये सब कर कैसे लेती है।
अगली सुबह सास की बहन औऱ नेहा उनकी बहू भी आ गए थे, नेहा बहुत चंट थी, अपनी चिकनी, चुपड़ी बातों से सबको अपनी तरफ कर लेती थी, चापलूसी करने में एक नम्बर,
ऊपर से काव्या की सास को तो उसने नजरबंद कर रखा था, अपनी चतुराई से।
सास ने हिदायत भी तो दी थी काव्या को किस शिक्षा ले।
काव्या ने सबका स्वागत किया।। पूरे दिन का सिलसिला बस महमानों की आवाजाही में बीत गया, अपने मायके में भी उसने फोन कर दिया था।
काव्या क्या बात है बेटा सब ठीक है ना,
काव्या की माँ ने कहा,
हाँ माँ में ठीक हूँ आप चिंता मत करो, बस थोड़ी सी थकावट हो गयी, काम ज्यादा था ना.
तू थोड़े दिन के लिए घर आजा, सब तुझे बहुत याद जर रहे है। तू कहे तो मैं बात करूँ तेरी सास से।
नहीं माँ मैं बात कर लूंगी, और फीका सा जवाब देकर वो चली गयी। पर माँ तो भांप गयी थी कोई तो बात है।
आज साहिल और काव्या के बीच कोई बात नहीं हुई थी, मन खिंचा खिंचा था, वो दोनों नहीं चाहते थे घर मे ऐसा माहौल।
जैसे तैसे काम सिमट गया, पूजा हवन सब अच्छे से सम्पन्न हो गया।
परन्तु मेहमान वही टिक गए।
अब तो नेहा ने भांप लिया था कि मौसीजी और काव्या के बीच कोई तो मन मुटाव था, जिसका फायदा वो भरपूर उठा रही थी।
काव्या को बुरा जब लगा जब मां ने सबके सामने काव्या को टोकते हुए कहा, देखो बहू कुछ सीखो नेहा से किस तरह बड़ों का आदर करती है, बड़ों का मान करती है, हर काम मे पहले अपनी सास की सलाह लेती है,
प्रवीण भी माँ से पूछे बिना मजाल एक काम कर दे। आज तक कोई शिकायत का मौका नहीं दिया जीजी को।
आज आँसू अपना रास्ता देख रहे थे काव्या की आँखों में साहिल दूर खड़ा सब सुन भी रहा था, और काव्या की खामोशी उसे कचोट भी रही थी । पर वो मजबूर था...
रात हुई सब सोने की तैयारी में थे।
साहिल ऊपर अपने कमरे में जा ही रहा था कि मौसी ने उसे रोक लिया।
अरे साहिल जब से मैं आयी हूँ तसल्ली से एक बार बात नहीं किया, कहाँ तो आगे पीछे घूमता रहता था, शादी हो गयी तो बड़ा हो गया क्या,
नहीं मौसी ऐसा कुछ भी नहीं है, अरे काव्या भी खिंची खिंची नजर आ रही है कोई अनबन हुई क्या तुम्हारे बीच, वो भी ऐसा लगता है खुश नहीं है।
नहीं मौसी हम सब खुश है, इंसान खुश रहने के लिए एप्ने मन को अगर अपने नियंत्रण में रखे तो अच्छा होता है,
अरे वाह बहू ने बहुत कुछ सीखा दिया तुझे, इतनी बड़ी बड़ी बातें।
नहीं मौसी बहू ने नहीं अक्सर ये बड़े सीखा जा जाते है जिन्हें अहसास भी नहीं होता कि वो क्या कर रहे है औऱ किसके लिए।
ये बात उसकी माँ को बड़ी अजीब लगी पर काव्या समझ गयी थी।
थक हार के दोनों अपने कमरे में पहुँचे। तभी साहिल ने काव्या से कहा आज मैने शायद मौसीजी से अच्छे से बात नहीं की थोड़ी देर में उनके पास बैठकर आता हूँ। मैं भी चलू।
नहीं रहने दो ।
काव्या को अजीब लगा।
साहिल नीचे गया, जैसे ही उसने उनके कमरे में जाना चाहा, माँ की आवाज़ सुनाई दी।
माँ और मौसी बात कर रही थी।
तभी उसे सुनाई दिया।
अरे सुधा मैं कहती थी ना तुझ से। इन बहुओं को अपने हाथ की कठपुतली बना के रखना चाहिए वरना कब ये तेरे बेटे को लेकर उड़न छू हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा।
देख मुझे मैं कैसे मेरी बहु को इशारे से चलाती हूँ मजाल मेरा बेटा एक शब्द बोल दे।
पर तेरे बेटे की लगाम तो तूने बहू के हाथ दे दी।
पर जीजी, काव्या तो ऐसी नहीं है वो मेरी हर बात सुनती है, कभी जवाब नहीं देती, जब मैं नई नई सास बनी तो आपने जैसा बोला मैंने वैसा ही किया।
मैंने पूरी कोशिश की मेरा बेटा मेरा ही रहे, बहू के कब्जे में ना आ जाये।
ये सुन कर साहिल के पैरों तले जमीन नहीं थी, वो सोच भी नहीं सकता था माँ को मौसीजी इस तरह से बहका भी सकती है। वो बड़ी थी फिर भी उन्होंने ये सब किया,
पर अब बहुत हो गया, अब मुझे एक निर्णय लेना ही होगा। ताकि माँ को सही रास्ते पर लाया जा सके।
देखिए अगले अंक में साहिल ने क्या फैसला लिया।
तो बने रहिये मेरे साथ।
दोस्तों साहिल और काव्या का रिश्ता सिर्फ गलतफहमियों की वजह से घुट रहा था, और वो गलतफहमियां कोई और नहीं उनके अपने उनकी जिंदगी में घोल रहे थे।
साहिल जब वापस कमरे में पहुँचा तो आशा भरी निगाहों से काव्या इंतज़ार कर रही थी कि शायद साहिल कुछ अच्छी बातों का पिटारा खोलेगा पर मायूस निगाहें कुछ बयान नहीं कर सकी।
काव्या समझ गयी थी, वो बिना कुछ बात किये रह गयी।
साहिल भी सो गया, वो रात खामोशी में जहर घोल रही थी।
सुबह का मंजर देखने योग्य नहीं था, काव्या की आँखे नीर बरसा रही थी।
क्या हो गया साहिल तुम्हें रुक जाओ, कुछ तो कहो ? अचानक ये कपड़े पैक करके तुम कहाँ जा रहे हो।
नीचे सब इकट्ठा हो गए, सुधा स्तब्ध थी, ये क्या हुआ,
देखो काव्या मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ , तुम्हें मेरे साथ चलना है तो चलो, वरना मैं अकेला भी चला जाऊँगा,
लेकिन क्यों साहिल, तुम जा कहा रहे हो।
रहने दे बहु, अपने आप को क्या साबित करना चाहती हो तुम, जो तुम्हें करना था वो तो तुम कर चुकी हो। यही चाहती थी ना तुम, की मेरा बेटा मुझसे अलग हो जाये, कितनी मिन्नतों से शादी करके मेरे साहिल की जिंदगी में तुम्हें लायी थी मैं, और तुम ने मेरे बेटे को ही मुझसे छीन लिया।
क्यों मां इतनी मिन्नतों से जब तुम काव्या को लायी थी इस घर मे तो क्या सोच कर लायी थी। या एक लड़की जब शादी करके आती है क्या सोचकर आती है। कि वो आते ही उसका घर तोड़ देगी।
जब आपकी शादी पापा से हुई थी तो क्या आप यही सोचकर आयी थी।
क्या पापा ने आपके आत्मसम्मान में कोई कमी रखी, या दादी ने कभी आप पर शादी के बाद ये इल्जाम लगाया कि तूने मेरे बेटे को मुझसे अलग कर दिया, बल्कि आप तो इस परिवार से जुड़ने के लिए, अपने बीते परिवार की नींव छोड़कर आयी थी ।
तो फिर आपने कैसे सोच लिया कि काव्या आपके बेटे को आपसे अलग कर देगी। वो भी तो अपने परिवार की नींव छोड़कर आयी है, आपके परिवार को अपना बनाने।
फिर क्यूँ आप दूसरों की बातों में आ गयी।
अगर पापा ने वो किया होता जो आप चाहती है कि मैं काव्या के साथ करू तो आपको कैसा लगता,
जिस इंसान के साथ जुड़ कर आपने बाकी सबसे रिश्ते बनाये थे, कोई आपको उसी इंसान से दूर रहने को कहता तो आप क्या करती माँ।
माँ निशब्द थी, और घर मे सभी निशब्द थे।
कड़वे वचन सुधा की छाती चीर रहे थे, वो ऐसी नहीं थी सबको पता था, पर अपनी बहन के ज्ञान ने उसे अंधा बना दिया था।
माँ आप जानती थी मैं बाहर जाने का कार्यक्रम बनाया हूँ काव्या के साथ, फिर भी उसी दिन का कार्यक्रम आपने घर मे रखा, मैंने तो चाहा कि आपको बता दूँ। आप तो जानती है ना मुझे, मेरी ज़िद के लिए मैं क्या क्या कर जाता हूँ, और अंत मे आपको झुकाना ही पड़ता है।
पर आज में ज़िद करता तो आप इल्जाम काव्या पर लगाती, जबकि काव्या ने खुद मना कर दिया था, बाहर जाने से।
आपको क्या लगा माँ इतने दिनों से घर मे जो उथल पुथल हो रही है उससे सब खुश है। मुझे अंदाज़ा नहीं है कि घर मे क्या हो रहा है।
पर मैंने कुछ नहीं कहाँ, पर जब मैं कल रात को मौसीजी से मिलने आ रहा था तो मैंने आपकी औऱ मौसी की बात सुनी, बहुत बुरा लगा, अपने घर परिवार को कैसे तोड़ना है आप उसका ज्ञान ले रही थी।
और आप मौसी आप तो बड़ी है, आप अपनी छोटी बहन को ये ज्ञान दे रही थी। आपने सोचा कभी की जो व्यवहार से आप अपना घर सवार रही है, उसमे आपके बेटे और बहू आपकी दिल से इज़्ज़त करते है।
वो सिर्फ आपकी इच्छा इसलिए पूरी करते है क्योंकि वो आपको खुश रखना चाहते है। पर ऐसी खुशी की उम्मीद आप कब तक करेगी।
मैं और काव्या भी इसी रास्ते पर चलने लगे थे, पर फिर लगा कि ये गलत है , जब मैं मेरी माँ से इतना प्यार करता हूँ तो दिखावा क्यों, किसी के आ जाने से किसी का प्यार छीन नहीं जाता, हर इंसान अपने हिस्से के प्यार औऱ इज़्ज़त का हक़दार होता है।
जैसे कभी माँ काव्या की जगह नहीं ले सकती, वो मेरी पत्नी है ठीक वैसे ही काव्या कभी माँ की जगह नहीं ले सकती , तो झगड़ा किस बात का।
सुधा को समझ आ गया था, वो क्या गलती करने जा रही थी।
तभी उसकी बड़ी बहन ने कहा देख तेरे बेटे को कितनी जबान चल रही है, पर कैची तो कोई और ही है।
नहीं जीजी, मैं खुद कैची हूँ जो बेटे बहु की गृहस्थी को काटने चली थी, मैं खुद अपने परिवार में आग लगाने चली थी। नई नई सास बनी तो आपसे तौर तरीके सीख रही थी। पर ये भूल गयी थी कि मेरी बहु अपनी माँ को छोड़कर आयी है एक माँ ढूंढने मुझ में, काव्या ने बहुत कोशिश की, पर मैं माँ नहीं बन सकी।
मुझे माफ़ कर दो काव्या।
नहीं माँ आप मुझे शर्मिंदा मत कीजिए, मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मुझे ऐसा परिवार मिला।
मौसीजी अब मुझे लगता है आपको अपने प्रस्थान करना चाहिए वहाँ भी बहुत कुछ ठीक करना होगा आपको।
जीजी की निगाहें सुधा को ताक रही थी।
हाँ सही कहा साहिल ने चलो काव्या हम तैयारी करते है।
और इस तरह एक परिवार तो बच गया टूटने से, पर बहुत से परिवार ऐसे होते है जो खुद अपने हाथों अपने सुखी परिवार की नींव को कुचलते है।
तो ये थी काव्या और साहिल की कहानी, ऐसी ही रोचक कहानियों के लिए आप मुझसे जुड़े रहिये।