बचपन आज का
बचपन आज का
नमस्कार दोस्तो मैं सोनिया चेतन क़ानूनगो इस दिलचस्प के साथ एक ऐसे खूबसूरत पड़ाव की चर्चा करने जा रही हूँ जिससे खूबसूरत और कुछ नहीं।
जी हाँ वो है आपका अपना ख़ुद का बचपन।
जब पलकें बन्द करती हूँ तो बचपन की वो हसीन यादें दिल के समंदर में गोते लगाती, मेरे चेहरे पर एक भीनी मुस्कुराहट छोड़ जाती है।
हां ये सच है हमारा बचपन तकनीक संसाधनों से परिपूर्ण नहीं था, और शायद यही महत्वपूर्ण बात है कि हमारे वक़्त ये मोबाइल, कंप्यूटर, इन सबका प्रभाव नहीं था।
बचपन में हम हमारे दोस्तों के साथ दूसरे के घरों में बिन्दास खेला करते थे।
मिट्टी के घर बनाते थे, हमारे बागीचे में एक अमरूद का पेड़ था, जो बहुत घना था, उसके नीचे शीतल हवा का अनुभव तो होता ही था, के पक्षियों की आवाजें मधुर संगीत सुनाती थी, उसके नीचे बैठकर हम सभी दोस्त मिल कर, मिट्टी के घरौंदे बनाते थे, तितलियों को अपनी थैली में कैद करना चाहते थे, तो उनके पीछे भागते थे। बड़ी बड़ी टंकियों पर चढ़ जाते
थे, जो तोते अमरूद काट कर जाते थे उन्हें बड़े मजे से स्वाद ले लेकर खाते थे।
उस वक़्त इतने खिलौने तो नहीं थे हमारे पास पर छुपन छुपाई में कब दिन निकल जाता था, पता ही नहीं चलता था,
उस वक़्त दोस्तों की टोली के साथ सतोलिया हमारा पसंदीदा खेल होता था, गुड्डे गुड़िया की शादी करना, फिर एक दूसरे के घर दावत पर बुलाना , कई कई बार तो हमारी इस उधेड़बुन में हमारे घरवाले भी सम्मिलित हो जाते थे।
शायद आज के बच्चे ये सब नहीं जानते , या ये कहे कि माहौल ही नहीं है आज के बच्चों के परिवेश का, इसीलिए आज के बच्चे तकनीकी के गुलाम हो गए।
उस वक़्त ना हमारे घरवालों के हाथों में हमने मोबाइल देखा जो जिद करते, आज घरवालों को मोबाइल से फुर्सत नहीं मिलती तो बच्चे भी आदत का शिकार हो गए।
एक हमारा वक़्त था जब आलीशान पार्क तो होते थे, पर नानी के यहाँ लगें नीम के पेड़ पर टंगे झूले किसी जन्नत से कम नहीं थे।
वो बचपन बेशक आज के बचपन से बहुत खूबसूरत था।